Tuesday, October 8, 2024
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क्या नेतन्याहू करेंगे फिलिस्तीन को नक्शे से गायब, UNGA में दिखाए गए मैप में काले रंग में दिखा फिलिस्तीन

फिलिस्तीन: इजरायल और हिज़्बुल्लाह के बीच जारी संघर्ष लगातार गंभीर होता जा रहा है, और हालात शांत होते दिखाई नहीं दे रहे। अमेरिका की तरफ से संघर्ष को रोकने के लिए सीजफायर का प्रस्ताव दिया गया था, जिसे इजरायल ने खारिज कर दिया। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सेना को हिज़्बुल्लाह के खिलाफ पूरी ताकत से लड़ाई जारी रखने का आदेश दिया है। इस संघर्ष के लिए नेतन्याहू ने सीधे तौर पर ईरान को जिम्मेदार ठहराया है, जो हिज़्बुल्लाह, हमास, और यमन के हौथियों जैसे समूहों को वित्तीय और सैन्य समर्थन दे रहा है।

नेतन्याहू का संयुक्त राष्ट्र महासभा में संबोधन

नेतन्याहू ने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में अपने संबोधन के दौरान ईरान की कड़ी आलोचना की और साथ ही दो नक्शे भी दिखाए, जिन्होंने व्यापक विवाद पैदा किया। इन नक्शों में मध्य पूर्व के विभिन्न देशों को दो रंगों में दिखाया गया था। पहला नक्शा “अभिशाप” (The Curse) के नाम से जाना गया जिसमें ईरान, इराक, सीरिया और यमन को काले रंग से रंगा गया था। वहीं दूसरे नक्शे में “आशीर्वाद” (The Blessing) के रूप में मिस्र, सऊदी अरब, सूडान, और भारत सहित कुछ देशों को हरे रंग में दिखाया गया। इन नक्शों में सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि फिलिस्तीन का अस्तित्व पूरी तरह से मिटा दिया गया था।

हरे रंग वाले देशों का संदेश

हरे रंग वाले देशों में भारत, मिस्र, सूडान और सऊदी अरब प्रमुख रूप से शामिल थे। इन देशों को नेतन्याहू ने आशीर्वाद के तौर पर दिखाया, जो उनके नजरिए में इजरायल के सहयोगी माने जाते हैं। भारत का नाम इस सूची में होना कोई आश्चर्यजनक नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत और इजरायल के बीच संबंधों में अभूतपूर्व सुधार हुआ है। रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में दोनों देश नजदीकी सहयोग कर रहे हैं।

सऊदी अरब के साथ भी इजरायल के संबंध धीरे-धीरे सुधर रहे हैं, खासकर अमेरिका की मध्यस्थता में हुए सामान्यीकरण समझौते के बाद। हालांकि, फिलहाल गाजा में हो रही हिंसा के चलते यह समझौता अधर में लटका हुआ है। सऊदी अरब ने साफ किया है कि जब तक फिलिस्तीनी राज्य की स्थापना नहीं होती, तब तक इजरायल के साथ पूर्ण संबंध स्थापित करना संभव नहीं होगा।

मिस्र के साथ इजरायल के संबंध ऐतिहासिक रूप से जटिल रहे हैं, खासकर गाजा पट्टी को लेकर। फिर भी हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच ऊर्जा और सुरक्षा के क्षेत्र में सहयोग मजबूत हुआ है। मिस्र इजरायल से गैस का आयात करता है, और दोनों देशों के बीच क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर भी एक नया सहयोग उभरा है।

सूडान का नाम भी हरे रंग के देशों में शामिल किया गया है, जो अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद इजरायल के साथ अपने संबंध सामान्य कर चुका है। 2021 में हुए इस समझौते को अमेरिकी मध्यस्थता में अंजाम दिया गया, जो सूडान के लिए एक बड़ा परिवर्तन था, क्योंकि इससे पहले सूडान ने इजरायल को दशकों तक दुश्मन माना था।

काले रंग वाले देशों का संदेश

काले रंग से रंगे देशों में ईरान, इराक, सीरिया और यमन शामिल थे, जिन्हें नेतन्याहू ने “अभिशाप” (Curse) के रूप में प्रस्तुत किया। यह देश इजरायल के सबसे बड़े विरोधी माने जाते हैं और इजरायल की सुरक्षा के लिए खतरा पैदा करते हैं। नेतन्याहू ने अपने भाषण में ईरान को सबसे ज्यादा निशाने पर लिया, जिसे उन्होंने क्षेत्रीय स्थिरता को कमजोर करने का मुख्य दोषी ठहराया। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि ईरान लेबनान में हिज़्बुल्लाह, गाजा में हमास और यमन में हौथियों को सैन्य और आर्थिक मदद प्रदान करता है।

ईरान और इजरायल के बीच तनाव कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में इस संघर्ष ने एक नई दिशा ले ली है। ईरान की ओर से हिज़्बुल्लाह जैसे समूहों को दिए जा रहे समर्थन ने इजरायल की सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ा दिया है। इसी के चलते इजरायल ने हिज़्बुल्लाह के खिलाफ युद्ध को पूरी ताकत से जारी रखने का संकल्प लिया है।

संघर्ष का व्यापक प्रभाव

इजरायल और हिज़्बुल्लाह के बीच का यह संघर्ष न केवल इन दोनों पक्षों को प्रभावित कर रहा है, बल्कि पूरे मध्य पूर्व पर इसका गहरा प्रभाव पड़ सकता है। क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा पैदा हो गया है, और अगर जल्द ही इस मुद्दे का कोई समाधान नहीं निकला गया, तो आने वाले समय में हालात और बिगड़ सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में लोगों की जानें जा सकती हैं और संपत्तियों का भारी नुकसान हो सकता है।

मध्य पूर्व में यह संघर्ष न केवल इजरायल और उसके विरोधी देशों तक सीमित है, बल्कि यह वैश्विक शक्ति संघर्ष में भी बदल सकता है। अमेरिका इजरायल के सबसे बड़े समर्थक के रूप में उभर रहा है, जबकि ईरान को रूस और चीन जैसे देशों का समर्थन प्राप्त हो सकता है। इस प्रकार, यह संघर्ष न केवल क्षेत्रीय संतुलन को बिगाड़ सकता है, बल्कि वैश्विक स्थिरता को भी प्रभावित कर सकता है।

फिलहाल, इजरायल और हिज़्बुल्लाह के बीच शांति की संभावना कम दिख रही है। नेतन्याहू की आक्रामक नीतियों और हिज़्बुल्लाह के साथ जारी संघर्ष ने मध्य पूर्व में तनाव को और बढ़ा दिया है। ईरान और इजरायल के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए, यह आवश्यक हो गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय इस मामले में हस्तक्षेप करे और एक स्थायी समाधान की दिशा में काम करे।

हालांकि, इजरायल ने अमेरिकी सीजफायर प्रस्ताव को खारिज कर दिया है, जिससे साफ होता है कि वह हिज़्बुल्लाह के खिलाफ अपनी लड़ाई को जारी रखने का इरादा रखता है। नेतन्याहू का मानना है कि यह संघर्ष इजरायल की सुरक्षा और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए आवश्यक है।

इस स्थिति को देखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि यह संघर्ष कब खत्म होगा। हालांकि, यह स्पष्ट है कि अगर इस समस्या का कोई समाधान नहीं निकला गया, तो इसका असर न केवल इजरायल और हिज़्बुल्लाह पर, बल्कि पूरे मध्य पूर्व और विश्व राजनीति पर भी पड़ेगा।

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