Supreme Court ने हाल ही में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट और राज्य सरकार द्वारा बर्खास्त की गई दो महिला जजों की बर्खास्तगी को खारिज कर दिया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने इस मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि इन महिला जजों की बर्खास्तगी अवैध और मनमानी थी। कोर्ट ने यह भी कहा कि हाई कोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार इन जजों का प्रदर्शन कुछ और ही बयां करता है।
इस फैसले के साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बर्खास्त जजों को बहाल करने का निर्देश दिया और महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने का आह्वान किया। यह फैसला न्यायपालिका में महिलाओं के प्रति समानता और संवेदनशीलता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मामला क्या है ?
मध्य प्रदेश में दो महिला सिविल जजों, जज अदिति कुमार शर्मा और जज सरिता चौधरी, को 2023 में बर्खास्त कर दिया गया था। इन दोनों जजों ने क्रमशः 2018 और 2017 में मध्य प्रदेश न्यायिक सेवा में प्रवेश किया था। हालांकि, उनके खिलाफ प्रदर्शन और अनुशासनात्मक मुद्दों को लेकर आरोप लगाए गए थे। मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की फुल कोर्ट ने इन आरोपों के आधार पर उन्हें बर्खास्त करने का फैसला किया था। हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को सौंपे गए एक सीलबंद लिफाफे में इन जजों के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी दर्ज की थी, जिसके आधार पर उनकी बर्खास्तगी का आदेश दिया गया था।
जज अदिति शर्मा ने अपनी बर्खास्तगी के खिलाफ स्पष्टीकरण देते हुए बताया कि उनके जीवन में कई व्यक्तिगत संकट आए थे। उन्होंने बताया कि उनकी अचानक शादी हो गई, उन्हें कोविड-19 का संक्रमण हुआ, उनका गर्भपात हो गया और फिर उनके भाई को कैंसर का पता चला। इन सभी परिस्थितियों ने उनके कामकाज को प्रभावित किया। हालांकि, हाई कोर्ट ने इन तथ्यों को पर्याप्त महत्व नहीं दिया और उनके खिलाफ प्रदर्शन की शिकायतों को आधार बनाकर उन्हें बर्खास्त कर दिया।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में स्व-संज्ञान लिया और इन दोनों जजों की बर्खास्तगी को अवैध और मनमानी करार दिया। कोर्ट ने कहा कि हाई कोर्ट की रिपोर्ट के अनुसार इन जजों का प्रदर्शन संतोषजनक था और उन्हें बर्खास्त करने का फैसला उचित नहीं था। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशीलता दिखाना आवश्यक है, खासकर तब जब वे व्यक्तिगत और पारिवारिक संकटों से गुजर रही हों।
सुप्रीम कोर्ट ने इन दोनों जजों को बहाल करने का निर्देश दिया और कहा कि उन्हें उनके कनिष्ठों की पुष्टि की तिथि से परिवीक्षा पर रखा जाएगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि उन्हें 15 दिनों के भीतर सेवा में वापस लिया जाए और उन्हें मौद्रिक लाभों की गणना पेंशन लाभ आदि के उद्देश्य से की जाए। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी कहा कि अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों पर कानून के अनुसार निर्णय लिया जाएगा।
न्यायपालिका में महिलाओं की स्थिति पर टिप्पणी
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इस मामले में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं के प्रवेश, उनकी संख्या में वृद्धि और वरिष्ठ पदों पर उनकी पदोन्नति को समझना महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि न्यायपालिका में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व न्याय की गुणवत्ता को बढ़ाएगा और लैंगिक समानता को भी बढ़ावा देगा।
जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि गर्भावस्था और गर्भपात जैसे मुद्दों पर महिलाओं के साथ भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि गर्भपात का महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और इसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव आत्महत्या तक की ओर ले जा सकता है। उन्होंने यह भी कहा कि बार-बार गर्भपात होने से महिलाओं के स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ता है और यह उनकी पहचान और सामाजिक कलंक को भी प्रभावित करता है।
महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशीलता
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में महिला न्यायिक अधिकारियों के प्रति संवेदनशीलता दिखाने पर जोर दिया। कोर्ट ने कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों की संख्या में वृद्धि होना पर्याप्त नहीं है, जब तक कि उनके लिए काम करने का एक आरामदायक माहौल सुनिश्चित नहीं किया जाता। कोर्ट ने यह भी कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों को व्यक्तिगत और पारिवारिक संकटों के दौरान समर्थन दिया जाना चाहिए और उनके साथ संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए।
जस्टिस नागरत्ना ने यह भी कहा कि महिला न्यायिक अधिकारियों को अक्सर मासिक धर्म के दौरान दर्द से राहत के लिए दवाएं लेनी पड़ती हैं ताकि वे सुबह से रात तक कोर्ट में बैठ सकें। उन्होंने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में उनके साथ संवेदनशीलता से पेश आना चाहिए और उन्हें समर्थन दिया जाना चाहिए।