Supreme Court ने शुक्रवार को छत्तीसगढ़ पुलिस को कड़ी फटकार लगाई। पुलिस ने जानबूझकर एक व्यक्ति पर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत आरोप जोड़े थे। सुप्रीम कोर्ट ने इसे कानून के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला बताया और कहा कि ऐसा सिर्फ इसलिए किया गया ताकि व्यक्ति को पहले दिए गए गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण के आदेश को निष्प्रभावी किया जा सके।
कोर्ट ने कार्रवाई को जल्दबाजी में बताया
जस्टिस एएस ओका की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पुलिस की कार्रवाई को जल्दबाजी में उठाया गया कदम बताया। उन्होंने पुलिस की कड़ी आलोचना की और कहा कि यह कार्यवाही पूरी तरह से अनुचित थी। कोर्ट ने मौखिक टिप्पणी में कहा कि संबंधित पुलिस अधिकारी ने ‘अत्यंत अनुचित’ काम किया है। इसके साथ ही, न्यायालय ने चेतावनी दी कि यदि इस तरह की मनमानी कार्यवाही दोहराई गई, तो संबंधित पुलिस अधिकारी के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी।
मनीष राठौर को जमानत मिली
सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी मनीष राठौर को जमानत दे दी। खंडपीठ ने अपने 2 जनवरी के अंतरिम आदेश को भी पूर्ण कर दिया, जिसमें उसे एक आपराधिक मामले में गिरफ्तारी से सुरक्षा प्रदान की गई थी। कोर्ट ने यह भी पाया कि पुलिस अधिकारी ने जानबूझकर एक और एफआईआर में UAPA के आरोप जोड़ने के लिए सत्र न्यायाधीश का दरवाजा खटखटाया था। यह एफआईआर पहले से ही दर्ज थी और इसमें आरोपी को 2 जनवरी से पहले ही जमानत मिल चुकी थी।
पुलिस अधिकारी के बचाव की कोशिश
राज्य के वकील ने पुलिस अधिकारी के आचरण का बचाव करने की कोशिश की। उन्होंने तर्क दिया कि आरोपी पहले जमानत पर छूट गया था और उसके नक्सली गतिविधियों में शामिल होने के सबूत हैं। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि यह कानून का दुरुपयोग है।
सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख
सुप्रीम कोर्ट ने छत्तीसगढ़ पुलिस की कार्रवाई को गलत ठहराया और स्पष्ट किया कि पुलिस ने जानबूझकर UAPA कानून का गलत इस्तेमाल किया। अदालत का मानना था कि पुलिस सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बेअसर करने का प्रयास कर रही थी। कोर्ट ने कहा कि पुलिस अधिकारी का व्यवहार कानून की मूल भावना के खिलाफ है।
UAPA का दुरुपयोग और कोर्ट की टिप्पणी
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि UAPA एक विशेष कानून है, जिसका उपयोग केवल गंभीर मामलों में किया जाना चाहिए। यदि इसे किसी व्यक्ति को फंसाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, तो यह न्याय प्रक्रिया के दुरुपयोग का स्पष्ट मामला बन जाता है।
जस्टिस ओका ने कहा, “पुलिस को यह समझना चाहिए कि वह कानून के रखवाले हैं, न कि इसे तोड़ने वाले। इस तरह की हरकतें न केवल आम नागरिकों के संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया पर भी सवाल खड़ा करती हैं।” कोर्ट ने यह भी कहा कि इस तरह की हरकतें पुलिस की निष्पक्षता पर संदेह उत्पन्न करती हैं।
अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की संभावना
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि भविष्य में पुलिस इस तरह का आचरण दोहराती है, तो संबंधित पुलिस अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की जाएगी। अदालत ने कहा कि कानून का पालन करना पुलिस की जिम्मेदारी है, न कि उसका दुरुपयोग करना।