UNSC : भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारत के पास अब तक विटो पावर नहीं है। इसको लेकर अकसर चर्चा होती रहती है। कूटनीति में जो दिखता है, आवश्यक नहीं कि वही वास्तविकता हो। दरअसल, भारत की संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) में स्थायी सदस्यता न मिलने के पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं। इस आर्टिकल में हम आपको भारत के पास अब तक विटो पावर ने होने के कुछ कारणों के बारे बताने जा रहे हैं।
फ्रांस और रूस ने की थी भारत की वकालत
संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) की 79वीं बैठक में फ्रांसीसी राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने की वकालत की। रूस भी भारत की स्वतंत्रता के बाद से ही इस मांग का समर्थन करता रहा है। लेकिन, अब तक यह वास्तविकता नहीं बन पाई है।
नए देशों को स्थायी सदस्यता न मिलना
संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी सुरक्षा परिषद में नए देशों को स्थायी सदस्यता न मिलने को एक समस्या बताया है। उन्होंने इसे ‘आउटडेटेड’ करार दिया, क्योंकि वैश्विक राजनीति में बड़े बदलाव आ चुके हैं, लेकिन सुरक्षा परिषद में वही पुराने पांच सदस्य (P5) अभी भी वर्चस्व बनाए हुए हैं।
भारत को स्थायी सदस्यता न मिलने के प्रमुख कारण
भारत को सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता न मिलने के पीछे कई कारण जिम्मेदार हैं:
1. चीन की असहमति
चीन, जो स्वयं सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य है, भारत के स्थायी सदस्यता प्राप्त करने का कड़ा विरोध करता रहा है। वह इसे अपने क्षेत्रीय प्रभुत्व के लिए खतरा मानता है। चीन ने कई मौकों पर भारत की स्थायी सदस्यता की राह में वीटो पावर का इस्तेमाल किया है।
2. अमेरिका की पूर्ववर्ती नीतियाँ
अमेरिका अब भारत की स्थायी सदस्यता का समर्थन कर रहा है, लेकिन ऐतिहासिक रूप से ऐसा नहीं था। 1950 और 1960 के दशक में भारत समाजवादी नीतियों और सोवियत संघ के साथ नजदीकी संबंधों के कारण अमेरिका के लिए असहज रहा। इस दौरान अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने भारत का विरोध किया।
3. ब्रिटेन का विरोध
ब्रिटेन, जो अब भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में दिखता है, पहले अमेरिका की नीतियों का अनुसरण करते हुए भारत का विरोध करता था। हालांकि, बदलते वैश्विक परिदृश्य में अब वह भी भारत का समर्थन कर रहा है।
4. चीन-पाकिस्तान गठजोड़
चीन जब भारत की स्थायी सदस्यता का विरोध करता है, तब वह पाकिस्तान को भी वीटो पावर देने की मांग उठाने लगता है। यह भारत के बढ़ते प्रभाव को रोकने की उसकी रणनीति का हिस्सा है।
5. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का स्थिर ढांचा
सुरक्षा परिषद के स्थायी सदस्यों (P5) का ढांचा 1945 के बाद से अपरिवर्तित बना हुआ है। किसी भी नए देश को जोड़ने की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और राजनैतिक सहमतियों पर निर्भर है।
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अमेरिका की बदली हुई रणनीति
21वीं सदी में भारत की विदेश नीति और वैश्विक प्रभाव के कारण अमेरिका का रुख बदला है। अमेरिका अब भारत को एक प्रमुख रणनीतिक साझेदार मानता है, खासकर चीन के बढ़ते प्रभाव को संतुलित करने के लिए।
भविष्य की संभावनाएँ
अब जबकि अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और रूस भारत की स्थायी सदस्यता के पक्ष में हैं और सवाल यह है कि चीन और उसके सहयोगी देश इसे कब तक रोक पाएंगे। भारत का बढ़ता वैश्विक कद, उसकी आर्थिक शक्ति और अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक पहल उसे सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट के करीब ला रही है।
भारत की सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता की राह में कई बाधाएँ हैं, लेकिन भारत के बढ़ते वैश्विक प्रभाव और कूटनीतिक सफलताओं को देखते हुए यह कहना गलत नहीं होगा कि आने वाले समय में भारत सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बन सकता है। इसके लिए भारत को अपनी रणनीतिक और कूटनीतिक पहल को और सशक्त बनाना होगा।