Tuesday, September 24, 2024
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Supreme Court : NRI सीट मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को लगाई फटकार

Supreme Court: एनआरआई कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पंजाब सरकार को दी गई फटकार और इस संबंध में हुए कानूनी घटनाक्रम ने मेडिकल शिक्षा में प्रवेश प्रक्रिया के प्रति एक महत्वपूर्ण सवाल खड़ा किया है। यह मामला पंजाब सरकार द्वारा MBBS कोर्स में एनआरआई (अनिवासी भारतीय) कोटे में किए गए बदलावों से संबंधित है, जिसमें एनआरआई उम्मीदवारों के करीबी रिश्तेदारों और आश्रितों को भी शामिल किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार के इस कदम को लेकर गंभीर आपत्ति जताई है और इसे ‘धोखाधड़ी’ करार दिया है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।

एनआरआई कोटा : क्या है विवाद ? Supreme Court

मामले की शुरुआत तब हुई जब पंजाब सरकार ने अपने मेडिकल कॉलेजों में एनआरआई कोटे के तहत MBBS की सीटों पर प्रवेश के नियमों में बदलाव किया। बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज द्वारा चंडीगढ़ और पंजाब राज्य के मेडिकल अंडरग्रेजुएट (यूजी) कोर्सेज में एडमिशन के लिए जारी किए गए प्रॉस्पेक्टस में यूजी कोटा की अंतिम तिथि 16 अगस्त और पंजाब राज्य के लिए 15 अगस्त निर्धारित की गई थी। लेकिन याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि प्रदेश सरकार ने 20 अगस्त को फॉर्म सबमिट होने के बाद अचानक एडमिशन प्रक्रिया में बदलाव कर दिया।

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इस बदलाव में सबसे विवादास्पद फैसला यह था कि एनआरआई कोटे में एनआरआई उम्मीदवारों के साथ-साथ उनके करीबी रिश्तेदारों और आश्रितों को भी प्रवेश दिया जाएगा। इसका मतलब यह था कि जिनके पास एनआरआई मामा, चाचा, मौसा, या अन्य रिश्तेदार हैं, वे भी इस कोटे का फायदा उठाकर एमबीबीएस की सीट प्राप्त कर सकते थे। इस कदम को हाई कोर्ट में चुनौती दी गई, जिसने इसे अवैध करार देते हुए पंजाब सरकार के इस बदलाव को रद्द कर दिया। हाई कोर्ट के फैसले को पंजाब सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जहां सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा और पंजाब सरकार को कड़ी फटकार लगाई।

सुप्रीम कोर्ट की सख्त टिप्पणी | Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले में सुनवाई करते हुए पंजाब सरकार पर तीखी टिप्पणी की। कोर्ट ने कहा कि एनआरआई कोटे में किए गए इस बदलाव का मकसद केवल पैसे उगाहना है। अदालत ने इसे शिक्षा प्रणाली के साथ धोखाधड़ी करार दिया और कहा कि यह पूरी तरह से गलत है कि योग्य और मेरिट वाले छात्रों को एमबीबीएस की सीटें नहीं मिल पा रही हैं, जबकि लोग अपने एनआरआई रिश्तेदारों के नाम पर दाखिला ले रहे हैं।

चीफ जस्टिस ने पंजाब सरकार के फैसले पर कड़ी नाराजगी जाहिर करते हुए कहा, “यह कैसे संभव है कि एक छात्र जिसके पास एनआरआई मामा, चाचा या मौसा हैं, वह एनआरआई कोटे का फायदा उठाकर मेडिकल कॉलेज में दाखिला ले ले। यह शिक्षा प्रणाली के साथ खिलवाड़ है और ऐसा नहीं होना चाहिए।” सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे को बेहद गंभीरता से लेते हुए पंजाब सरकार को अपनी प्रवेश प्रक्रिया में सुधार करने का निर्देश दिया और एनआरआई कोटे में किए गए इस बदलाव को अस्वीकार कर दिया।

हाई कोर्ट का आदेश और याचिकाकर्ताओं के तर्क

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में इस मामले को लेकर दायर याचिका में याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि राज्य सरकार ने एनआरआई कोटे की सीटों के नियमों में मनमाने ढंग से बदलाव किया था, जिससे मेरिट वाले छात्रों के साथ अन्याय हुआ है। याचिका में बताया गया था कि 22 अगस्त को जारी एक नोटिफिकेशन के बाद एनआरआई कोटा 15 प्रतिशत कर दिया गया था और कुछ मेडिकल कॉलेजों में जनरल सीटों को कम कर उन्हें एनआरआई कोटा में बदल दिया गया था। विशेष रूप से, डॉ. बी.आर. अंबेडकर स्टेट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज, मोहाली में जनरल कैटेगरी की सीटों को कम कर उन्हें एनआरआई कोटे में स्थानांतरित कर दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का आरोप था कि प्रॉस्पेक्टस में जो नियम और शर्तें तय की गई थीं, उन्हें बीच में ही बदल दिया गया था, जिससे कई योग्य छात्रों को नुकसान हुआ।

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं के तर्कों को स्वीकार करते हुए पंजाब सरकार के फैसले को अवैध करार दिया और एनआरआई कोटे के नियमों में किए गए बदलावों को रद्द कर दिया था। पंजाब सरकार ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

पंजाब में एनआरआई कोटे की सीटों की स्थिति

पंजाब में वर्तमान समय में एनआरआई कोटे के तहत एमबीबीएस की लगभग 185 सीटें और बीडीएस की 196 सीटें हैं। एनआरआई कोटे का मुख्य उद्देश्य उन अनिवासी भारतीयों को लाभ पहुंचाना था जो अपने बच्चों को भारतीय मेडिकल कॉलेजों में पढ़ाना चाहते हैं। हालांकि, इस कोटे का गलत उपयोग करने और इसके माध्यम से अनुचित लाभ उठाने के मामले सामने आने के बाद इसे लेकर सवाल उठने लगे।

पंजाब सरकार द्वारा किए गए हालिया बदलावों में एनआरआई कोटे का दायरा बढ़ाकर इसमें एनआरआई उम्मीदवारों के करीबी रिश्तेदारों और आश्रितों को भी शामिल कर लिया गया था। इस बदलाव ने मेरिट सिस्टम को दरकिनार कर ऐसे उम्मीदवारों को लाभ पहुंचाने की संभावना पैदा कर दी, जिनके पास एनआरआई रिश्तेदार थे, भले ही वे खुद एनआरआई नहीं थे। यही कारण था कि यह मामला हाई कोर्ट में पहुंचा और बाद में सुप्रीम कोर्ट में।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का असर

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का पंजाब सरकार और राज्य के मेडिकल कॉलेजों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा। एनआरआई कोटे में किए गए बदलावों को रद्द करने के बाद अब राज्य सरकार को अपनी प्रवेश प्रक्रिया में सुधार करना होगा और मेरिट आधारित प्रणाली को अधिक प्राथमिकता देनी होगी। इसके अलावा, इस फैसले से यह संदेश भी गया है कि शिक्षा प्रणाली में किसी भी प्रकार की धांधली को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, खासकर जब यह छात्रों के भविष्य से जुड़ा हो।

सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला केवल पंजाब तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इसका असर पूरे देश की मेडिकल शिक्षा प्रणाली पर भी पड़ सकता है। एनआरआई कोटे को लेकर कई अन्य राज्यों में भी सवाल उठते रहे हैं और इस फैसले के बाद अन्य राज्यों की सरकारें भी अपने कोटे सिस्टम पर पुनर्विचार कर सकती हैं।

एनआरआई कोटा मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब सरकार को जो फटकार लगाई है, वह शिक्षा प्रणाली में पारदर्शिता और मेरिट की प्राथमिकता सुनिश्चित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस फैसले से स्पष्ट संदेश गया है कि किसी भी तरह की अनियमितता या धांधली को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। पंजाब सरकार को अब अपनी प्रवेश प्रक्रिया में बदलाव कर मेरिट आधारित प्रणाली को और सख्त करना होगा, ताकि योग्य छात्रों को उनके हक से वंचित न किया जा सके।

 

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