Same Sex Marriage Verdict : समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) से बड़ा झटका लगा है। सुप्रीम कोर्ट ने सममलैंगिक शादी को मान्यता देने से इनकार करते हुए इसे संसद के जिम्मे बढ़ा दिया है। CJI ने कहा कि यह संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को निर्देश देते हुए कहा- इस मुद्दे पर कमेटी बनाकर एक कानून लागू करने के बारे में विचार करे। साथ ही उन्होंने निर्देश दिए कि उनके साथ किसी तरह का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। इससे पहले सितंबर 2018 में धारा-377 को खत्म करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक संबंधों को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया था। इस फैसले से पहले भारत में भी समलैंगिक संबंधों को अपराध माना जाता था।
ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है – सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाते हुए अहम टिप्पणी की और कहा कि शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने से इनकार करते हुए कहा कि ये संसद के अधिकार क्षेत्र का मामला है। उन्होंने समलैंगिकों को बच्चा गोद लेने का अधिकार दिया और केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिकों के लिए उचित कदम उठाने का आदेश भी दिया।
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CJI ने कहा कि एक सामाजिक संस्था के रूप में विवाह को विनियमित करने में राज्य का वैध हित है और अदालत विधायी क्षेत्र में प्रवेश नहीं कर सकती है और उसे एक कानून के माध्यम से समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मान्यता देने का निर्देश नहीं दे सकती है।
सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 की बहुमत से फैसला सुनाया
सुप्रीम कोर्ट ने 3-2 की बहुमत से इस मसले पर अपना फैसला सुनाया है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संवैधानिक बेंच ने याचिकाओं पर 10 दिन सुनवाई की थी। इस संवैधानिक बेंच में जस्टिस संजय किशन कौल, एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा भी शामिल थे। CJI चंद्रचूड़ और जस्टिस एसके कौल ने समलैंगिक कपल (Same Sex Marriage) के पक्ष में फैसला दिया। लेकिन जस्टिस एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने विरोध में फैसला दिया। यानी बहुमत समलैंगिक लोगों की दलीलों के खिलाफ रहा। हालांकि इस बात पर सभी जज सहमत थे कि शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है।
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सरकार का मत सेम सेक्स मैरेज के खिलाफ
आपको बता दें कि सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई से पहले 56 पन्नों का हलफनामा भी दाखिल किया था। इसमें कहा गया था कि समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को मंजूरी नहीं दी जा सकती। केंद्र का कहना था कि समलैंगिक शादी भारतीय परिवार की अवधारणा के खिलाफ है। भारतीय परिवार की अवधारणा पति-पत्नी और उनसे पैदा हुए बच्चों से होती है। केंद्र के मुताबिक, शादी के कॉन्सेप्ट में शुरुआत से ही दो विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों का मेल माना गया है। सामाजिक, सांस्कृतिक और कानूनी तौर पर विवाह के विचार और अवधारणा में यही परिभाषा शामिल है। इसमें कोई छेड़छाड़ नहीं की जानी चाहिए।
याचिकाकर्ताओं ने कहा यह हमारे लिए बड़ी जीत है
समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि भले ही फैसला हमारे पक्ष में नहीं आया है फिर भी हमारे लिए यह बड़ी जीत है। विवाह समानता मामले में कुछ याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुईं वरिष्ठ अधिवक्ता गीता लूथरा ने कहा, ‘भले ही विवाह का अधिकार नहीं दिया गया है लेकिन सीजेआई ने कहा है कि भारत के संविधान के आधार पर जो अधिकार सामान्य लोगों को दिए गए हैं वही अधिकार LGBTQIA समुदाय को भी दिए जाने चाहिए।
सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की खास बातें
सेम सेक्स मैरिज (Same Sex Marriage) पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिया कि समलैंगिकों के लिए सेफ हाउस और डॉक्टर की व्यवस्था करे। साथ ही एक फ़ोन नंबर भी हो, जिसपर वो अपनी शिकायत कर सकें। इसके अलावा यह भी सुनिश्चित करें कि उनके साथ किसी तरह का सामाजिक भेदभाव न हो, पुलिस उन्हे परेशान न करे और जबरदस्ती घर न भेजे, अगर वो घर नहीं जाना चाहते हैं तो।
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- चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि समलैंगिकता कोई शहरी अवधारणा नहीं है और यह समाज के उच्च वर्गों तक ही सीमित नहीं हैं।
- उन्होंने कहा कि अदालत कानून नहीं बना सकती, वह केवल इसकी व्याख्या कर सकती है और इसे प्रभावी बना सकती है।
- सीजेआई चंद्रचूड़ के अनुसार यह कहना गलत है कि विवाह एक स्थिर संस्था है और इसे बदला नहीं जा सकता।
- उन्होंने कहा कि अगर विशेष विवाह अधिनियम को खत्म कर दिया गया तो यह देश को आजादी से पहले के युग में ले जाएगा।
- विशेष विवाह अधिनियम की व्यवस्था में बदलाव की आवश्यकता है या नहीं, यह संसद को तय करना है।
- जीवन साथी चुनने की क्षमता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार से जुड़ी है।
- उन्होंने कहा कि संबंधों के अधिकार में जीवन साथी चुनने का अधिकार, उसकी मान्यता शामिल है; इस प्रकार के संबंध को मान्यता नहीं देना भेदभाव है।
- समलैंगिक लोगों सहित सभी को अपने जीवन की नैतिक गुणवत्ता का आकलन करने का अधिकार है।
- समलैंगिक और विपरीत लिंग के संबंधों को एक ही सिक्के के दो पहलुओं के रूप में देखा जाना चाहिए।
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