Supreme Court ने उत्तर प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और पूछा है कि कुशीनगर में मस्जिद में तोड़फोड़ कर उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के 13 नवंबर 2024 के आदेश का उल्लंघन क्यों किया। इस आदेश में बिना पूर्व नोटिस दिए और दूसरे पक्ष को सुने बिना किसी भी तोड़फोड़ कार्रवाई पर रोक लगाने के निर्देश दिए गए थे। फिलहाल, सुप्रीम कोर्ट ने कुशीनगर मामले में आगे किसी भी प्रकार की तोड़फोड़ पर रोक लगा दी है।
सुप्रीम कोर्ट की सख्त प्रतिक्रिया
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और पूछा है कि क्यों न संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अदालत की अवमानना के लिए कार्रवाई की जाए? सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से नाराजगी व्यक्त की है और प्रशासन की कार्यवाही पर गंभीर सवाल उठाए हैं। अदालत ने आदेश पारित करते हुए कुशीनगर मामले में आगे किसी भी तरह की तोड़फोड़ पर रोक लगा दी है।
मामले की पृष्ठभूमि
कुशीनगर जिले में प्रशासन द्वारा मदनी मस्जिद के एक हिस्से को तोड़ दिया गया। आरोप लगाया गया कि मस्जिद का निर्माण अतिक्रमण करके किया गया था। प्रशासन ने इस महीने की शुरुआत में बुलडोजर से मस्जिद के कथित अवैध हिस्से को गिरा दिया। यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के 13 नवंबर 2024 के आदेश के बावजूद की गई, जिसमें बिना पूर्व सूचना और पक्षकार को सुने बिना किसी भी विध्वंस पर रोक लगाई गई थी।
याचिकाकर्ता के आरोप
याचिकाकर्ता का दावा है कि प्रशासन द्वारा की गई जांच में यह स्पष्ट हो गया था कि मस्जिद के निर्माण में किसी भी प्रकार का अतिक्रमण नहीं हुआ था। एसडीएम की रिपोर्ट में भी इसका उल्लेख किया गया था, फिर भी प्रशासन ने तोड़फोड़ की कार्रवाई की। याचिकाकर्ता का यह भी आरोप है कि उस पर दबाव बनाने के लिए प्रशासन ने फर्जी एफआईआर दर्ज की।
याचिकाकर्ता ने याचिका में दावा किया है कि:
- प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश की अवमानना की है।
- मस्जिद के ध्वस्त किए गए हिस्से के पुनर्निर्माण या मुआवजा देने का आदेश दिया जाए।
- किसी भी प्रकार की और तोड़फोड़ कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाई जाए।
न्यायपालिका बनाम प्रशासन
इस मामले में प्रशासन और न्यायपालिका के बीच टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व के आदेश को न मानना और तोड़फोड़ को अंजाम देना गंभीर अवमानना का मामला बन सकता है। यदि उत्तर प्रदेश सरकार उचित जवाब देने में असमर्थ रहती है, तो संबंधित अधिकारियों पर अवमानना की कार्यवाही की जा सकती है।
संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन?
यह मामला संविधान के अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार) और अनुच्छेद 25 (धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार) से भी जुड़ा हुआ है। यदि मस्जिद का निर्माण कानूनी रूप से सही था और प्रशासन ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को दरकिनार करते हुए कार्रवाई की, तो यह मौलिक अधिकारों का उल्लंघन माना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश न केवल धार्मिक स्थलों की सुरक्षा से जुड़ा है बल्कि संवैधानिक मूल्यों की रक्षा से भी संबंधित है।
उत्तर प्रदेश सरकार के लिए कठिनाई
इस घटना ने उत्तर प्रदेश सरकार के लिए एक संवेदनशील स्थिति पैदा कर दी है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी होने के बाद राज्य सरकार को यह स्पष्ट करना होगा कि उन्होंने अदालत के आदेश की अवहेलना क्यों की। यदि सरकार उचित स्पष्टीकरण देने में विफल रहती है, तो इससे प्रशासन की विश्वसनीयता पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं।
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अगले कदम
सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई में यह तय किया जाएगा कि प्रशासन की कार्रवाई अदालत की अवमानना थी या नहीं। यदि अदालत को लगता है कि आदेश की अवमानना की गई है, तो संबंधित अधिकारियों पर कड़ी कार्रवाई हो सकती है।
इस मामले का असर न केवल कुशीनगर बल्कि पूरे देश में प्रशासनिक कार्यवाही और न्यायपालिका के आदेशों की पालना से जुड़े मामलों पर पड़ेगा। सुप्रीम कोर्ट के इस हस्तक्षेप से यह संदेश जाता है कि किसी भी सरकारी एजेंसी को कानून से ऊपर नहीं समझा जा सकता।