Saturday, October 12, 2024
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Human Embryo Model: मानव भ्रूण मॉडल, विज्ञान की नई खोज ,जानिए क्यों उठ रहे हैं इसको लेकर सवाल ?

Human Embryo Model: मानव भ्रूण मॉडल पर की गई नई वैज्ञानिक खोज ने चिकित्सा और जैवविज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर स्थापित किया है। इस खोज ने मानव भ्रूण के विकास को समझने और जटिल रोगों के इलाज के लिए नए रास्ते खोले हैं, लेकिन साथ ही साथ कई नैतिक और कानूनी प्रश्न भी खड़े कर दिए हैं। यह खोज न केवल चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति मानी जा रही है, बल्कि इससे जुड़े विवाद भी गंभीर हैं, क्योंकि इसका सीधा संबंध मानव जीवन और उसकी उत्पत्ति से है।

मानव भ्रूण मॉडल क्या है ?

मानव भ्रूण मॉडल विज्ञान के क्षेत्र में एक ऐसा नवीन दृष्टिकोण है, जिसमें वैज्ञानिक भ्रूण को कृत्रिम रूप से प्रयोगशाला में तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। यह भ्रूण मॉडल असली मानव भ्रूण के विकास के प्रारंभिक चरणों की नकल करता है, जिससे वैज्ञानिकों को यह समझने में मदद मिलती है कि मानव जीवन का प्रारंभ कैसे होता है।

यह मॉडल मानव स्टेम कोशिकाओं का उपयोग करके तैयार किया गया है, जो प्राकृतिक गर्भाधान प्रक्रिया के दौरान भ्रूण के रूप में विकसित होती हैं। भ्रूण के इन कृत्रिम मॉडल्स को प्रयोगशाला में उन शुरुआती स्थितियों में रखा जाता है, जिनमें वास्तविक भ्रूण विकसित होता है। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि ये मॉडल पूरी तरह से विकसित भ्रूण नहीं होते; वे केवल भ्रूण के पहले कुछ दिनों के विकास की नकल करते हैं।

ये कैसे काम करता है ? Human Embryo Model

मानव भ्रूण मॉडल बनाने के लिए स्टेम कोशिकाओं को विशेष प्रकार के जैविक कारकों के साथ प्रयोगशाला में विकसित किया जाता है। इन कोशिकाओं को गर्भाशय के समान पर्यावरण में रखा जाता है, जहां वे विभाजित होती हैं और भ्रूण के विभिन्न अंगों और संरचनाओं का निर्माण शुरू करती हैं। इस प्रक्रिया को वैज्ञानिक ‘ऑर्गानोइड’ कहते हैं। ये ऑर्गानोइड भ्रूण के प्रारंभिक अंगों और संरचनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जैसे कि हृदय, मस्तिष्क, और यहां तक कि प्लेसेंटा।

हालांकि, इन भ्रूण मॉडलों में एक महत्वपूर्ण अंतर यह है कि इन्हें गर्भाशय में प्रत्यारोपित नहीं किया जा सकता, और ये पूर्ण रूप से जीवित इंसान में विकसित नहीं हो सकते। इनका उद्देश्य केवल शुरुआती भ्रूण विकास को समझना और चिकित्सा अनुसंधान को आगे बढ़ाना है।

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वैज्ञानिक लाभ Human Embryo Model

मानव भ्रूण मॉडल का सबसे बड़ा लाभ यह है कि इससे वैज्ञानिकों को भ्रूण के शुरुआती विकास के चरणों को समझने में मदद मिलती है। यह ज्ञान गर्भधारण से संबंधित विभिन्न समस्याओं जैसे गर्भपात, जन्म दोष, और बांझपन जैसी समस्याओं के कारणों को समझने में उपयोगी हो सकता है।

इसके अलावा, भ्रूण के इन कृत्रिम मॉडल्स के माध्यम से वैज्ञानिक जीन एडिटिंग और अन्य नई जैविक तकनीकों का परीक्षण कर सकते हैं, जो न केवल चिकित्सा अनुसंधान को आगे बढ़ाने में मददगार हो सकती हैं, बल्कि इनसे भविष्य में कैंसर, आनुवंशिक रोग, और अन्य जटिल बीमारियों का इलाज भी संभव हो सकता है।

नैतिक सवाल 

विज्ञान की इस खोज से कई नैतिक सवाल खड़े हो गए हैं। मानव भ्रूण का प्रयोग लैब में करना और उसे कृत्रिम रूप से विकसित करना कई लोगों को नैतिक रूप से गलत लगता है। यह प्रश्न उठता है कि क्या मानव जीवन की शुरुआत से जुड़ी ऐसी प्रक्रियाओं के साथ प्रयोग करना उचित है?

कई धार्मिक और नैतिक संगठनों ने इस प्रकार के प्रयोगों की आलोचना की है। उनका तर्क है कि भ्रूण चाहे प्राकृतिक हो या कृत्रिम, वह एक संभावित मानव जीवन का प्रतीक है और इस प्रकार इसके साथ किसी भी प्रकार का वैज्ञानिक परीक्षण करना मानव गरिमा के खिलाफ है।

इसके अलावा, यह सवाल भी उठता है कि अगर भविष्य में इन मॉडल्स का विकास और अधिक उन्नत हो जाता है, तो क्या इससे मानव जीवन को कृत्रिम रूप से बनाने का मार्ग प्रशस्त होगा? और अगर ऐसा हुआ तो इसके सामाजिक और नैतिक प्रभाव क्या होंगे?

कानूनी स्थिति

वैश्विक स्तर पर मानव भ्रूण के साथ जुड़े प्रयोगों पर अलग-अलग देशों में अलग-अलग कानूनी व्यवस्थाएं हैं। कई देशों ने भ्रूण के प्रयोगों पर सख्त नियंत्रण रखा है, और कुछ ने इसे पूरी तरह से प्रतिबंधित कर दिया है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम में मानव भ्रूण पर 14 दिन से अधिक समय तक प्रयोग करने की अनुमति नहीं है। इसके पीछे तर्क यह है कि 14 दिनों के बाद भ्रूण में तंत्रिका तंत्र का विकास शुरू हो जाता है, जिसे नैतिक रूप से संवेदनशील माना जाता है।

हालांकि, कई वैज्ञानिक और चिकित्सा शोधकर्ता इस सीमा को बढ़ाने की मांग कर रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि 14 दिन के बाद भ्रूण के विकास से जुड़े और महत्वपूर्ण प्रश्नों के उत्तर मिल सकते हैं।

भारत में भी भ्रूण पर किए जाने वाले प्रयोगों को लेकर सख्त नियम हैं। भारतीय जैव-चिकित्सा अनुसंधान परिषद (ICMR) ने भ्रूण अनुसंधान पर गाइडलाइंस जारी की हैं, जिनके तहत भ्रूण का उपयोग केवल विशेष परिस्थितियों में ही किया जा सकता है, और वह भी सख्त वैज्ञानिक और नैतिक नियमों के तहत।

भविष्य की दिशा

मानव भ्रूण मॉडल से जुड़े नैतिक और कानूनी सवालों के बावजूद, इस क्षेत्र में अनुसंधान तेज गति से आगे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस तकनीक से भविष्य में कई गंभीर बीमारियों का इलाज खोजा जा सकेगा। स्टेम सेल तकनीक और भ्रूण विकास के अध्ययन में आ रही नई-नई तकनीकें भविष्य में कई जटिल बीमारियों के उपचार के लिए नए रास्ते खोल सकती हैं।

हालांकि, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि इस प्रकार के अनुसंधान को सख्त नैतिक और कानूनी नियंत्रण के तहत किया जाए। वैज्ञानिक समुदाय को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रकार के अनुसंधान से मानव गरिमा, नैतिकता और समाज के मूल्यों का उल्लंघन न हो।

मानव भ्रूण मॉडल विज्ञान के क्षेत्र में एक बड़ी और महत्वपूर्ण खोज है, जो भ्रूण विकास को समझने और विभिन्न जटिल बीमारियों का इलाज खोजने के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त करती है। हालांकि, इस तकनीक से जुड़े नैतिक और कानूनी सवालों का समाधान खोजना भी उतना ही आवश्यक है। समाज और वैज्ञानिक समुदाय को मिलकर इस दिशा में संतुलन स्थापित करना होगा ताकि वैज्ञानिक प्रगति और नैतिकता के बीच सही तालमेल बिठाया जा सके।

यह खोज न केवल विज्ञान के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण क्रांति साबित हो सकती है, बल्कि इससे जुड़ी नैतिक बहसें हमें मानव जीवन के प्रति हमारी ज़िम्मेदारियों को भी समझने में मदद कर सकती हैं।

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