How Aurangzeb Died : मुगल बादशाह औरंगजेब, जिसे आलमगीर के नाम से भी जाना जाता है, मुगल साम्राज्य का छठा शासक था। वह शाहजहाँ और मुमताज़ महल का पुत्र था और 1658 में सत्ता संभालने के बाद 1707 तक शासन किया। औरंगजेब को उसकी धार्मिक नीतियों, साम्राज्य विस्तार और कठोर शासन प्रणाली के लिए जाना जाता है। हालांकि, उसका अंत एक वृद्ध, असंतुष्ट और अकेले शासक के रूप में हुआ। इस लेख में हम औरंगजेब की मृत्यु के कारणों, उसके अंतिम दिनों और ऐतिहासिक प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
औरंगजेब के जीवन के आखिरी दिन कैसे थे ?
कूर बादशाह औरंगजेब का शासनकाल लगभग 50 वर्षों तक चला, जो मुगल इतिहास में सबसे लंबी अवधि में से एक था। लेकिन, उसके अंतिम वर्ष कठिनाइयों से भरे हुए थे। दक्षिण भारत में मराठों के साथ लगातार युद्ध, प्रशासनिक समस्याएँ और अपने ही पुत्रों के विद्रोह ने उसे मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर कर दिया था।
1. बढ़ती उम्र और स्वास्थ्य समस्याएँ औरंगजेब 80 वर्ष की आयु तक पहुँच चुका था। बढ़ती उम्र के साथ उसे कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ा। कहा जाता है कि उसे गठिया (arthritis), कमजोरी, और संभवतः मधुमेह जैसी बीमारियाँ थीं। अत्यधिक थकान और मानसिक तनाव ने उसके स्वास्थ्य को और अधिक प्रभावित किया।
2. परिवारिक कलह और उत्तराधिकार की चिंता औरंगजेब ने अपने शासनकाल में अपने भाइयों को हराकर सत्ता हासिल की थी, लेकिन अपने अंतिम वर्षों में उसे अपने ही पुत्रों के विद्रोह का सामना करना पड़ा। उसके पुत्र मुअज्जम, आज़म और कामबख्श में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष चल रहा था। यह पारिवारिक कलह उसके मानसिक शांति को छीन रही थी।
3. दक्षिण भारत में युद्ध और असफलताएँ औरंगजेब ने अपनी शक्ति का विस्तार करने के लिए दक्षिण भारत में मराठों के खिलाफ लंबे युद्ध लड़े। हालांकि, यह युद्ध अत्यधिक खर्चीले और थकाने वाले साबित हुए। वह मराठों को पूरी तरह से पराजित नहीं कर सका और दक्षिण में उसकी स्थिति कमजोर होती गई। उसके कई प्रमुख सेनानायक भी इन युद्धों में मारे गए।
औरंगजेब की कब और कैसे हुई ? How Aurangzeb Died
औरंगजेब की मृत्यु 3 मार्च 1707 को अहमदनगर (वर्तमान महाराष्ट्र) में हुई। उसकी मृत्यु प्राकृतिक कारणों से हुई, लेकिन बढ़ती उम्र, युद्धों की थकान और मानसिक तनाव ने इसे और तेजी से घटित किया।
1. अंतिम समय की घटनाएँ औरंगजेब अपने अंतिम दिनों में अत्यधिक अकेला और उदास महसूस करता था। उसने अपने जीवन के कार्यों पर पुनर्विचार किया और कहा जाता है कि उसने अपने पुत्रों को पत्र लिखे, जिनमें उसने अपनी गलतियों को स्वीकार किया।
2. अंतिम शब्द और पछतावा ऐसा कहा जाता है कि मृत्यु से पहले औरंगजेब ने कहा था, “मैंने अपने जीवन में जो कुछ भी किया, वह व्यर्थ था। अब मैं अकेला और असहाय हूँ। मुझे नहीं पता कि मेरा अंत कैसा होगा।” यह शब्द उसके मानसिक अवसाद और पछतावे को दर्शाते हैं।
3. सरल अंतिम संस्कार औरंगजेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उसका अंतिम संस्कार बहुत साधारण तरीके से किया जाए। उसने यह भी कहा था कि उसके कफ़न का खर्च उसकी खुद की अर्जित धन से निकाला जाए। उसकी इच्छा के अनुसार, उसे खुलदाबाद (महाराष्ट्र) में एक साधारण मकबरे में दफनाया गया, जो आज भी देखा जा सकता है।
औरंगजेब की मृत्यु के बाद कमजोर हुआ मुगल साम्राज्य
1. उत्तराधिकार युद्ध औरंगजेब के तीन पुत्रों – मुअज्जम (बाद में बहादुर शाह प्रथम), आज़म और कामबख्श ने सत्ता के लिए युद्ध छेड़ा। अंततः मुअज्जम विजयी हुआ और 1707 में बहादुर शाह प्रथम बना, लेकिन साम्राज्य की स्थिति अब पहले जैसी नहीं रही।
2. साम्राज्य का पतन औरंगजेब की मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य कमजोर पड़ गया। मराठों, सिखों और अन्य क्षेत्रीय शक्तियों ने अपनी स्वतंत्रता को मजबूत किया। इसके बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भी धीरे-धीरे भारत में अपनी पकड़ बनानी शुरू की।
3. इतिहासकारों की दृष्टि इतिहासकारों की नजर में औरंगजेब एक विवादित शासक रहा है। कुछ उसे एक कठोर और धार्मिक रूप से कट्टर बादशाह मानते हैं, जबकि कुछ उसे एक मेहनती और अनुशासित शासक मानते हैं। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि उसके शासनकाल ने मुगल साम्राज्य की स्थिरता को गहरा नुकसान पहुँचाया।
औरंगजेब की मृत्यु सिर्फ एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि एक महान साम्राज्य के अंत की शुरुआत थी। उसके कठोर शासन और धार्मिक नीतियों ने उसे कई दुश्मन बना दिए, जबकि लगातार युद्धों ने उसकी शक्ति को कमजोर कर दिया। उसकी मृत्यु के बाद मुगल साम्राज्य की शक्ति धीरे-धीरे समाप्त होती गई और कुछ ही दशकों में यह पूरी तरह से ब्रिटिश उपनिवेशवाद के अधीन आ गया।
औरंगजेब का जीवन और मृत्यु इतिहास के छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण अध्ययन का विषय है, जो दिखाता है कि किस प्रकार अत्यधिक विस्तार और कठोर नीतियाँ किसी भी साम्राज्य के पतन का कारण बन सकती हैं।