Thursday, March 20, 2025
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History : भारत में अंग्रेजों का प्रवेश कैसे हुआ था ?

History :: भारत का इतिहास अनेक उतार-चढ़ावों से भरा रहा है। विभिन्न विदेशी आक्रमणकारियों ने समय-समय पर भारत में प्रवेश किया और अपने प्रभुत्व को स्थापित करने का प्रयास किया। इनमें से एक प्रमुख शक्ति ब्रिटिश साम्राज्य था, जिसने न केवल भारत पर शासन किया बल्कि भारतीय समाज, अर्थव्यवस्था और राजनीति को भी गहराई से प्रभावित किया। इस लेख में हम जानेंगे कि भारत में अंग्रेजों का प्रवेश कैसे हुआ और उन्होंने अपने शासन की नींव कैसे रखी।

अंग्रेजों का भारत में प्रवेश

अंग्रेजों का भारत में आगमन 1600 ईस्वी में हुआ जब इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ प्रथम ने ईस्ट इंडिया कंपनी को भारत में व्यापार करने की अनुमति दी। इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य एशियाई देशों के साथ व्यापार करना था, विशेष रूप से मसालों, सूती वस्त्रों और रेशम का।

1608 ईस्वी में ईस्ट इंडिया कंपनी के पहले व्यापारी कैप्टन हॉकिन्स ने मुगल सम्राट जहाँगीर के दरबार में प्रवेश किया और भारत में व्यापार की अनुमति माँगी। प्रारंभ में, मुगलों ने इन विदेशी व्यापारियों को अधिक महत्व नहीं दिया, लेकिन समय के साथ अंग्रेजों ने अपनी व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ाया। 1615 में सर थॉमस रो ने जहाँगीर के दरबार में आकर व्यापारिक सुविधाएँ प्राप्त करने में सफलता हासिल की। इसके बाद, अंग्रेजों ने सूरत, मद्रास, बंबई और कलकत्ता में अपने व्यापारिक केंद्र स्थापित किए।

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व्यापारिक से राजनीतिक प्रभुत्व की ओर बढ़ता कदम | History

अंग्रेजों ने भारत में व्यापार के बहाने धीरे-धीरे अपनी जड़ें जमानी शुरू कीं। 18वीं शताब्दी में भारत की राजनीतिक स्थिति कमजोर हो रही थी। मुगल साम्राज्य का पतन हो रहा था और क्षेत्रीय शक्तियाँ जैसे मराठा, बंगाल, अवध और मैसूर अपने-अपने क्षेत्रों में शक्ति हासिल करने का प्रयास कर रही थीं। इस राजनीतिक अस्थिरता का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया।

1757 में प्लासी की लड़ाई (Battle of Plassey) अंग्रेजों के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुई। इस युद्ध में अंग्रेजों ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराया। यह जीत मुख्य रूप से अंग्रेजों के षड्यंत्र और नवाब के सेनापति मीर जाफर के विश्वासघात के कारण संभव हुई। इस जीत के बाद, अंग्रेजों ने बंगाल की सत्ता पर नियंत्रण प्राप्त कर लिया और भारतीय राजनीति में निर्णायक भूमिका निभाने लगे।

बक्सर की लड़ाई और अंग्रेजों की विजय

1764 में बक्सर की लड़ाई (Battle of Buxar) में अंग्रेजों ने मुगल सम्राट शाह आलम द्वितीय, अवध के नवाब शुजाउद्दौला और बंगाल के मीर कासिम की संयुक्त सेना को हराया। इस युद्ध के बाद अंग्रेजों को बंगाल, बिहार और उड़ीसा की दीवानी (राजस्व वसूली का अधिकार) प्राप्त हुई। इस प्रकार, ईस्ट इंडिया कंपनी न केवल एक व्यापारिक शक्ति रही, बल्कि वह भारत में प्रशासनिक सत्ता की ओर भी बढ़ने लगी।

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अंग्रेजी शासन की स्थापना और विस्तार

प्लासी और बक्सर की लड़ाइयों के बाद अंग्रेजों ने भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अपना विस्तार करना शुरू कर दिया। उन्होंने राजाओं और नवाबों को आपस में लड़वाकर और कूटनीतिक चालें चलकर पूरे भारत पर अपना प्रभुत्व स्थापित किया। लॉर्ड वेलेस्ली की ‘सब्सिडियरी एलायंस’ (सहायक संधि) नीति और लॉर्ड डलहौजी की ‘डॉक्ट्रिन ऑफ लैप्स’ (हड़प नीति) ने भारतीय राज्यों को अंग्रेजों के अधीन कर दिया।

भारत में अंग्रेजों का प्रवेश एक व्यापारिक कंपनी के रूप में हुआ, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में दखल देना शुरू किया और अंततः पूरे देश पर शासन स्थापित कर लिया। प्लासी और बक्सर की लड़ाइयाँ इस प्रक्रिया में निर्णायक साबित हुईं। अंग्रेजों की नीति और भारतीय शासकों की कमजोरियों के कारण ब्रिटिश सत्ता भारत में मजबूती से स्थापित हो गई। यह इतिहास भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के लिए भी प्रेरणा बना और अंततः 1947 में भारत ने ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त की।

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