Monday, March 17, 2025
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Bulldozer action cases : सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय जाने को कहा, क्या लगाए गए हैं आरोप

Bulldozer action cases सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को संभल के अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्यवाही की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया और याचिकाकर्ता को संबंधित उच्च न्यायालय में जाने को कहा। दरअसल, याचिका में दावा किया गया था कि सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्ष अपने आदेश में बिना पूर्व नोटिस और सुनवाई का मौका दिए बगैर बुलडोजर कार्रवाई पर रोक लगाने का आदेश दिया था। याचिका में आरोप लगाया गया कि संभल में प्राधिकरण के अधिकारियों द्वारा अदालत के आदेश की अवमानना की गई।

सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय जाने को कहा

याचिका में याचिकाकर्ता ने कहा है कि 13 नवंबर 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में बुलडोजर से तोड़फोड़ की कार्रवाई पर रोक लगा दी थी। अदालत के आदेश के बावजूद 10-11 जनवरी 2025 को संभल स्थित उसकी संपत्ति में बिना किसी पूर्व सूचना और उसका पक्ष सुने बगैर तोड़फोड़ की गई। याचिकाकर्ता का कहना है कि यह अदालत के बीते साल नवंबर में दिए गए आदेश की अवमानना है।

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याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को उच्च न्यायालय जाने को कहा। अदालत ने कहा कि 13 नवंबर 2024 के अपने फैसले में उसने स्वतंत्रता दी थी कि यदि कोई उल्लंघन हुआ है, तो क्षेत्राधिकार वाला उच्च न्यायालय शिकायत पर विचार करने का हकदार होगा। न्यायालय का यह रुख बताता है कि स्थानीय विवादों को उच्च न्यायालय के स्तर पर सुलझाया जाना अधिक उचित होगा।

याचिकाकर्ता का आरोप- बगैर नोटिस की गई तोड़फोड़

जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस के विनोद चंद्रन की पीठ ने याचिकाकर्ता मोहम्मद गयूर की तरफ से पेश हुए वकील चांद कुरैशी से कहा कि “वे याचिका उच्च न्यायालय में दायर करें। यह मामला उच्च न्यायालय द्वारा बेहतर तरीके से निपटाया जा सकता है।” याचिका में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट ने पूरे देश में एकतरफा बुलडोजर से तोड़फोड़ की कार्रवाई पर रोक लगाई थी और 15 दिन पहले नोटिस जारी करने का आदेश दिया था। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का पालन नहीं किया गया और संभल में स्थित उसकी संपत्ति में बिना किसी पूर्व नोटिस के तोड़फोड़ की गई।

सुप्रीम कोर्ट का पूर्व आदेश और उसकी व्याख्या

उल्लेखनीय है कि शीर्ष अदालत ने अपने नवंबर 2024 के फैसले में स्पष्ट किया था कि वे सार्वजनिक स्थानों जैसे कि सड़कों, गलियों, फुटपाथों, रेलवे लाइनों या नदी या जल निकायों में अनधिकृत संरचनाओं को छोड़कर किसी की संपत्ति में तोड़फोड़ से पूर्व नोटिस देने का आदेश दिया था। इस आदेश का उद्देश्य नागरिकों को उनके मौलिक अधिकारों से वंचित होने से बचाना था।

याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि उसके मामले में इस आदेश का उल्लंघन हुआ है, क्योंकि संपत्ति निजी थी और किसी सार्वजनिक भूमि पर स्थित नहीं थी। इसलिए, अदालत के आदेश के तहत, उसे पूर्व सूचना मिलनी चाहिए थी। लेकिन अधिकारियों ने मनमाने ढंग से कार्रवाई की, जिससे उसे आर्थिक और मानसिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा।

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