Friday, November 8, 2024
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Tulsi Vivah 2024: आखिर क्यों मनाया जाता है तुलसी विवाह, कैसे करें तुलसी पूजन?

Tulsi Vivah 2024: हिंदू धर्म में कार्तिक मास को बहुत महत्व दिया जाता है। इस महीने में कई बड़े-बड़े व्रत और त्योहार आते हैं, जिसे लोग बहुत धूमधाम से मनाते हैं। कार्तिक मास में आने वाले त्यौहारों में से एक त्यौहार तुलसी विवाह भी है, जिसे महिलाएं बहुत श्रद्धा के साथ मनाती हैं। जितना महत्व साल में आने वाली सभी एकादशी का होता है, उतना ही तुलसी विवाह का भी होता है। तुलसी विवाह का पर्व भी भगवान विष्णु को ही समर्पित होता है।

कब मनाया जाता है तुलसी विवाह? | Tulsi Vivah 2024

तुलसी विवाह हर साल कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन देवउठनी एकादशी भी मनाई जाती है।

इस वर्ष कब है तुलसी विवाह? | Tulsi Vivah 2024

इस वर्ष तुलसी विवाह 12 नंवबर 2024 दिन मंगलवार को मनाया जाएगा।

कैसे मनाया जाता है तुलसी विवाह?

हिंदू धर्म में पूजनीय माने जाने वालों पौधों में से सबसे ऊपर तुलसी के पौधे का स्थान आता है। तुलसी के पौधे में साक्षात माता लक्ष्मी का निवास माना जाता है। हिंदू धर्म के ग्रंथों के अनुसार भगवान विष्णु को तुलसी सबसे ज्यादा प्रिय होती है।

तुलसी विवाह के दिन भगवान विष्णु के शालिग्राम रुप के साथ तुलसी के पौधे का विवाह रचाया जाता है। शालिग्राम एक काले रंग का पत्थर होता है, जो गंडक नदी से प्राप्त होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शालिग्राम भगवान विष्णु का ही एक अवतार माने जाते हैं। इसमें साक्षात भगवान विष्णु निवास करते हैं।

भगवान विष्णु ने क्यों लिया शालिग्राम भगवान का रूप? | Tulsi Vivah 2024

उस काल में जलंधर नाम का एक शक्तिशाली और पराक्रमी राक्षस था। उसका विवाह वृंदा नाम की कन्या से हुआ। वृंदा भगवान विष्णु की बहुत बङी भक्त थी और बहुत पतिव्रता थी। उसकी भक्ति के कारण जलंधर को अजेय होने का वरदान मिला।

जंलधर ने वरदान मिलने के बाद उसका दुरुपयोग करना शुरु कर दिया। वह स्वर्ग की सभी कन्याओं को परेशान करता था। सभी कन्याएं रक्षा मांगने के लिए भगवान विष्णु के पास गईं। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रुप धारण करके वृंदा के पतिव्रता धर्म को छल से भंग करा दिया जिससे जलंधर का वरदान नष्ट हो गया और वह युद्ध में मारा गया।

जब वृंदा को ये पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का श्राप दिया। देवताओं के कहने पर वृंदा ने अपना श्राप वापिस ले लिया, लेकिन भगवान विष्णु अपने कर्म से लज्जित थे, तो उन्होनें अपने श्राप को जीवित रखने के लिए अपना एक रुप पत्थर के रुप में प्रकट किया। जो भगवान शालीग्राम कहलाए।

भगवान विष्णु के श्राप को वापिस लेने के बाद वृंदा अपने पति जलंधर के साथ ही सती हो गई। वृंदा की राख से तुलसी का पौधा पैदा हुआ। सभी देवी-देवताओं ने वृंदा की पवित्रता को बनाए रखने के लिए भगवान विष्णु के शालीग्राम रुप का विवाह तुलसी के पौधे से कराया। तब से लेकर आज तक हर साल देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है।

भगवान विष्णु को तुलसी क्यों प्रिय है?

वृंदा के सती होने के बाद भगवान विष्णु ने वृंदा को वरदान दिया कि अगले जन्म में तुम तुलसी के रुप में प्रकट होगी। तुम मुझे माता लक्ष्मी से भी ज्यादा प्रिय होगी। मैं तुम्हारे बिना भोजन भी ग्रहण नहीं करुंगा और तुम्हारा स्थान मेरे शीर्ष पर होगा। यही कारण है कि भगवान विष्णु को तुलसी का पत्ता बहुत प्रिय होता है और जब भी भगवान जी को भोग लगाया जाता है, तो भोग में तुलसी (Tulsi Vivah 2024) का पत्ता जरुर रखा जाता है। माना जाता है कि तुलसी के पत्ते के साथ ही भगवान भोग ग्रहण करते हैं।

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