Mahavir Jayanti 2024: महावीर जयंती पर 24वें जैन तीर्थांकर वर्धमान महावीर का जन्म जन्मोत्सव मनाया जाता है। दरअसल, चैत्र शुक्ल त्रयोदशी तिथि के दिन 599 ई.पू. महावीर स्वामी का जन्म बिहार के वैशाली जिले में कुंडग्राम में हुआ था। इनके जन्मोत्सव को ही महावीर जयंती के नाम से जाना जाता है। इस वर्ष महावीर जयंती 21 अप्रैल रविवार को है। महावीर जयंती जैन समुदाय का विशेष पर्व होता है। इस जयंती को भगवान महावीर स्वामी के जन्म के उत्सव के रूप में मनाया जाता है। महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर थे। उनके पिता राजा सिद्धार्थ और माता रानी त्रिशला थीं और बचपन में उनका नाम वर्द्धमान था।
क्यों मनाई जाती है महावीर जयंती? | kyon manaee jaatee hai Mahavir Jayanti ?
हिंदू धर्म की तरह जैन धर्म का भी कोई संस्थापक नहीं है। जैन धर्म 24 तीर्थंकरों के जीवन और शिक्षा पर आधारित है। जैन धर्म में तीर्थंकर का मतलब “वो आत्माएं जो मानवीय पीड़ा और हिंसा से भरे इस सांसारिक जीवन को पार कर आध्यात्मिक मुक्ति के क्षेत्र में पहुंच गई हैं”, सभी जैनियों के जीवन में 24वें तीर्थंकर महावीर जैन का ख़ास महत्व है।महावीर जैन धर्म के तपस्वियों में से अंतिम तीर्थंकर थे।
लेकिन, जहां औरों की ऐतिहासिकता अनिश्चित है वहीं, महावीर जैन के बारे में पक्के तौर पर कहा जा सकता है कि उन्होंने इस धरती पर जन्म लिया था। अहिंसा के इस उपदेशक का जन्म क्षत्रिय जाति में हुआ था। कथनो के अनुसार महावीर जैन गौतम बुद्ध के समकालीन थे। दिलचस्प बात ये है कि महावीर भी उसी मगध क्षेत्र यानी आज के बिहार के थे जहां के गौतम बुद्ध थे।
महावीर जयंती से जुड़ी कुछ रोचक बातें | Mahavir Jayanti se judee kuchh rochak baaten
ब्राह्मणों द्वारा प्रचारित उस युग के वैदिक विश्वासों के आधिपत्य के ख़िलाफ़ उठे आंदोलनों के सबसे करिश्माई प्रवक्ता महावीर और गौतम बुद्ध थे। महावीर के अनुयायियों ने पुनर्जन्म के सिद्धांत जैसे कुछ वैदिक विश्वासों को तो अपनाया लेकिन गौतम बुद्ध की तरह जाति बंधनों, देवताओं की सर्वोच्चता में विश्वास और पशु बलि की प्रथाओं को अपनाने से मना कर दिया था। महावीर के अनुयायियों के अनुसार मुक्ति का मार्ग त्याग और बलिदान है लेकिन मुक्ति के इस मार्ग में जीवात्माओं की बलि शामिल नहीं है।
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दो ग्रंथों में मिलता है जैन धर्म का उल्लेख
गौतम बुद्ध की तरह महावीर ने किसी मध्यम मार्ग का उपदेश नहीं दिया था। महावीर ने अपने अनुयायियों को असत्य और वासना, लालच और सांसरिक वस्तुओं का मोह छोड़ने, हर प्रकार की हत्याएं और हिंसा बंद करने का संदेश दिया है। कुछ बौद्ध ग्रंथों में भी महावीर का उल्लेख है लेकिन आज हम उनके बारे में जो कुछ भी जानते हैं उसका आधार दो जैन ग्रंथ हैं। ग्रंथो के अनुसार कहा जाता है कि महावीर ने 30 साल उम्र में भ्रमण करना शुरू किया और वो 42 साल की उम्र तक भ्रमण करते रहे।
- प्रचारात्मक कल्पसूत्र:- ये ग्रंथ महावीर के सदियों बाद लिखा गया।
- आचारांग सूत्र हैं:- इस ग्रंथ में महावीर को भ्रमरणरत, नग्न, एकाकी साधु के रूप में दिखाया गया है।
वर्धमान महावीर कैसे बने?
इन्होंने ज्ञान की प्राप्ति के लिए कठोर तप किया। 30 वर्ष की आयु में राजसी सुखों का त्याग करके तप का आचरण किया। 12 साल 6 महीने और 5 दिनों के कठोर तप से इन्होंने अपनी इच्छाओं और विकारों पर नियंत्रण पा लिया और कैवल्य की प्राप्ति। इस कठोर तप को करने के कारण वर्धमान महावीर कहलाए। महावीर स्वामी ने कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति के बाद चार तीर्थों की स्थापना की साधु, साध्वी, श्रावक और श्राविका। यह सभी तीर्थ लौकिक तीर्थ न होकर एक सिद्धांत हैं। इसमें महावीर स्वामी ने जैन धर्म के सिद्धांत सत्य, अहिंसा, अपिग्रह, अस्तेय ब्रह्मचर्य का पालन करते हए अपनी आत्मा को ही तीर्थ बानने की बात बतायी है।
कल्पसूत्र ग्रंथ में किस चीज का किया गया है वर्णन ?
कल्पसूत्र ग्रंथ में अशोक वृक्ष के नीचे घटित उस क्षण का वर्णन है। वहां उन्होंने अपने अलंकार, मालाएं और सुंदर वस्तुओं को त्याग दिया। आकाश में चंद्रमा और ग्रह नक्षत्रों के शुभ संयोजन की बेला में उन्होंने ढाई दिन के निर्जल उपवास के बाद दिव्य वस्त्र धारण किए। वो उस समय बिल्कुल अकेले थे। अपने केश लुंचित कर (तोड़कर) और अपना घरबार छोड़कर वो संन्यासी हो गए।
बौद्ध सन्यासी जहां अपना सिर मुंडवाते हैं वहीं, जैन शिष्य खुद अपने मुट्ठियों से बाल का लुंचन (उखाड़ना) करते हैं। महावीर और जैन परंपरा की शिक्षाएं 20वीं सदी के भारत में तब राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हो गईं थीं जब महात्मा गांधी ने इतिहास के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य ब्रिटिश राज को हटाने के लिए अहिंसा का प्रयोग किया।
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महावीर स्वामी का उपदेश कहां कहां फैला ?
महावीर के पवित्र उपदेश संपूर्ण भारत में फैले। विशेषकर पश्चिमी भारत के गुजरात, राजस्थान में और दक्षिण भारत में कई लोगों ने जैन धर्म अपनाया। कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में आपको सबसे प्रसिद्ध जैनतीर्थ मिलेगा। एक विशालकाय प्रतिमा, जो एक पर्वत की बाहुबली चोटी को काटकर गढ़ी गई है । जैन परंपरा के अनुसार बाहुबली या गोम्मट पहले तीर्थंकर के पुत्र थे। कर्नाटक के श्रवण बेलगोला में 17 मीटर ऊंची और आठ मीटर चौड़ी ये प्रतिमा एक चट्टान से बनी विश्व की सबसे विशाल मानव निर्मित प्रतिमा है।
जैन प्रतिमाओं का सहज रूप तप की अंतिम अवस्था को दर्शाता है। कठोर जैन निरामिष (मांसरहित) भोजन में ना केवल मांस और अंडों का सेवन निषेध है बल्कि कंदमूल भी वर्जित है। शायद इसलिए कि उन्हें उखाड़ने से ज़मीन के अंदर, आसपास के पौधों और छोटे जीव-जंतुओं को कष्ट पहुंच सकता है।
जैन समुदाय में मतभेद !
जैन समुदाय में इस बात पर मतभेद है कि महिलाएं ज्ञान और मुक्ति के मार्ग पर चल सकती हैं या नहीं ? एक जैन ग्रंथ के अनुसार, महावीर स्त्रियों को दुनिया का सबसे बड़ा प्रलोभन मानते हैं और कठोरतम जैन परम्पराओं के अनुसार, स्त्रियां संन्यासी नहीं हो सकती हैं, क्योंकि उनके शरीर में अंडाणुओं का निर्माण होता है, जोकि मासिक धर्म के स्राव के दौरान मारे जाते हैं। महावीर के समय में ही इन कठोर जैन आचारों का पालन कठिन था और आधुनिक भारत में तो ये और भी कठिन है।
असल में कठिन मार्ग के कारण ही ये धर्म भारत से बाहर उस तरह से नहीं फ़ैल पाया जैसे कि बौद्ध धर्म ने अपनी पहचान बनाई थी। जैन समुदाय आज अपनी व्यवहारिक कुशलता और व्यावसायिक नैतिकता के लिए जाना जाता है और आज वो देश के सबसे धनी अल्पसंख्यक समुदाय में से एक हैं।
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