करवा चौथ का अर्थ ‘करवा‘ जिसका मतलब मिटटी का मटका और ‘चौथ‘ का मतलब चार जिससे चाँद को अर्घ देते है।
कथा :
सबसे प्रसिद्ध कथा सावित्री और सत्यवान की है सावित्री ने कड़ी तपस्या प्रार्थना कर के अपने पति सत्यवान के प्राण यम के दूत से मांग लिया।
उसी के साथ एक कथा और भी है,
वीरवती और उसके सात भाई। उसके सारे भाई अपनी बहन से बहुत प्रेम करते थे। उनके सभी भाई अपनी बहन को व्रत रखे नहीं देख सकते थे। तभी उन्होंने विश्वास दिलाया की चाँद निकल आया है। वीरवती ने व्रत का पारण कर लिया, तभी वीरवती को खबर मिली की उसके पति की मृत्यु हो गयी। तभी वीरवती पुरे साल तक भगवान् से प्रार्थना करते रही और वीरवती की भक्ति देख भगवान् ने उसके पति के प्राण लौटा दिए।
करवा चौथ व्रत के है कुछ खास नियम :
हिन्दू धर्म की शादीशुदा महिलाएं करती है निर्जला व्रत और अपने पति के लिए करती है। महिलायें अपने पति के लम्बी उम्र और अच्छे स्वास्थ के लिए करती है गणेश जी की पूजा। परन्तु कुछ कुवारी कन्याएँ भी रखती है व्रत। विवाहित महिलाये संध्या काल लेकिन चाँद निकलने से पूर्व ही भगवान् शिव, गौरी एवं गणेश जी अर्थात शिव परिवार की पूजा करतीं है।
पूजा विधि में सबसे महत्वपूर्ण यह है की महिलाओं को कुछ नए कपडे, कुछ गहने, और कुछ सौंदर्या प्रासादन के सामान जैसे : नेल पोलिश, लिपस्टिक, बिंदी, सिन्दूर, हिना एवं कुछ सामान जैसे :चप्पल, चूड़ी, झुमके, नैक पीस, इत्यादि, और पूजा का सामान कुछ इस प्रकार है – थाली, करवा, और करवा दीपक, छन्नी।
भारत के कुछ जगहों पर ब्र्हामन को दान दक्षिणा देने का प्रचलन है।
उत्तर प्रदेश में महिलायें प्रातः 3 – 4 उठ कर फेनी, दूध एवं चीनी को खा कर पुरे दिन रखती है व्रत। अन्य क्षेत्र की महिलायें 3 – 4 बजे प्रातः उठकर स्नान कर के आदि से निर्वित हो कर नए वस्त्र पहन कर, कुछ खाने व् पिने के बाद पुरे दिन जबतक चाँद न दिखे, व्रत रखते है।
सूर्य उदय से पूर्व जो खाना होता है वो खा सकते है।
गर्भवती महिलाये ये व्रत रख सकती है लेकिन उनके लिए कुछ विशेष रिवाज है जैसे : दूध, खोया, खीर, और फल व्रत में खा सकती है।
लड़की की माँ या उनकी सांस अपनी बहु या बेटी के लिए सरगी देती है। यह सबसे महत्वपूर्ण रिवाज है। इसमें कुछ इस प्रकार के सामान रखते है, मिठाई, स्नैक्स, ड्राई फ्रूट्स, माठरी, उपहार और कुछ सजावट के सामान।
दोपहर में सभी औरतें एकसाथ एक सर्किल में बैठ गयी अपनी थालियों को साथ में रखते है। जिसमे नारियल, फ्रूट्स, ड्राई फ्रूट्स, दिया, एक गिलास कच्ची लस्सी, मीठी मठरी और गिफ्ट्स जिसे अपनी सांस को देती है। माँ गौरा की पूजा करती है। थालिया एक दूसरे को देते है ऐसे घुमाते रहते है इसे थाली बाटना कहते है। ये विधि सात बार होता है।
“वीरों कुड़िये करवाड़ा, सर्व सुहागन करवाड़ा,
ऐ कट्टी न अटेरी ना, कुम्भ चरखरा फेरी न,
गवांद पेअर पाईं न , सुई च धागा पाईं न ।
रूठड़ा मानायीं न, सुथरा जागायीं न,
भाइन प्यारी वीरां, चानन छाडे ते पानी पीन।
वे वीरो कुरिये कवारा, वे सर्व सुहागन करवाड़ा।“
अपनी सांसु माँ के पैर छूने और गिफ्ट में ड्राई देने का मतलब है सम्मान। चाँद को छन्नी से देखने के बाद पति को देखने के बाद दीपक दिखाना मिठाई खिलाना, पानी चाँद को अर्पण करने के बाद कच्ची लस्सी चाँद को अर्पण करें मंत्र का उच्चारण करते रहे।
“सिर दही, पैर कड़ी, अर्क देंदी, सर्व सुहागन, चौबारे खड़ी। “
अब सभी बड़ो से लें आशीर्वाद फिर करें व्रत का पारण।
खाने में ये होना चाहिए – साबुत दाल जैसे : रेड बीन्स, हरी दाल, पूड़ी, चावल और मिठाई