Waqf Amendment Bill: वक्फ संशोधन बिल पर बनी संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) की बैठक 29 जनवरी को समाप्त हो गई, जिसमें सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भा.ज.पा.) के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सदस्यों द्वारा प्रस्तावित सभी 14 संशोधनों को स्वीकार कर लिया गया। इस बैठक में विपक्षी दलों द्वारा पेश किए गए सभी बदलावों को खारिज कर दिया गया। यह विधेयक पिछले साल अगस्त में लोकसभा में पेश किया गया था और इसके तहत देश में मुस्लिम धर्मार्थ संपत्तियों के प्रबंधन को लेकर 44 विवादास्पद बदलाव करने की बात की जा रही थी।
जेपीसी की बैठक में कई महत्वपूर्ण बदलावों को मंजूरी दी गई। इनमें से सबसे प्रमुख बदलाव यह था कि पहले वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में दो गैर-मुस्लिम सदस्य अनिवार्य होने का प्रावधान था। अब इस प्रावधान में बदलाव किया गया है, जिससे यह सुनिश्चित किया गया कि वक्फ परिषदों में कम से कम दो सदस्य इस्लाम धर्म से नहीं होंगे। हालांकि, यह संख्या और बढ़ सकती है।
इसके अलावा, एक अन्य संशोधन के अनुसार, अब यह निर्णय कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं, राज्य सरकार द्वारा नामित अधिकारियों द्वारा लिया जाएगा। पहले इसे जिला कलेक्टर पर छोड़ा गया था। इस बदलाव से यह सुनिश्चित किया गया कि संपत्तियों के वक्फ के मुद्दे पर अधिक स्थानीय और सटीक निर्णय लिए जा सकेंगे।
ये भी पढ़ें : Delhi Assembly Elections: ताहिर हुसैन ने मुस्तफाबाद से शुरू किया चुनाव प्रचार,मिली है कस्टडी पैरोल
वहीं, एक और महत्वपूर्ण बदलाव के तहत यह तय किया गया है कि यह कानून पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं होगा। इसका मतलब यह है कि जो वक्फ संपत्तियां पहले से पंजीकृत नहीं हैं, उनके फैसले भविष्य में तय मानकों के आधार पर किए जाएंगे। हालांकि, कांग्रेस के जेपीसी सदस्य इमरान मसूद ने इस पर सवाल उठाया था, और उन्होंने कहा कि 90 प्रतिशत वक्फ संपत्तियां पंजीकृत नहीं हैं, जिससे यह मामला और जटिल हो सकता है।
इन तीन प्रमुख बदलावों के अलावा, भाजपा के अन्य सदस्यों द्वारा 11 और संशोधन पेश किए गए थे। इनमें से एक प्रमुख संशोधन तेजस्वी सूर्या द्वारा पेश किया गया, जिसमें यह प्रावधान था कि भूमि दान करने की इच्छा रखने वाले व्यक्तियों को यह सिद्ध करना होगा कि वे कम से कम पांच वर्षों से इस्लाम का पालन कर रहे हैं और यह स्वीकार करना होगा कि दान में कोई साजिश शामिल नहीं है। यह संशोधन खासतौर पर उन लोगों के लिए था जो संपत्ति वक्फ में दान करते हैं।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे ने इस संशोधन विधेयक को लेकर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यह विधेयक गरीब मुसलमानों को उनके अधिकार दिलाने और कांग्रेस पार्टी की वोट बैंक की राजनीति को बेनकाब करने के लिए लाया गया है। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया कि इस विधेयक के माध्यम से हिंदू समाज को दोयम दर्जे का नागरिक बनाने की साजिश का पर्दाफाश किया गया है।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, 29 जनवरी को प्रस्तावित 14 बदलावों को स्वीकार करने के लिए मतदान किया जाएगा और जेपीसी की अंतिम रिपोर्ट 31 जनवरी तक पेश की जा सकती है। पहले इस रिपोर्ट को 29 नवंबर 2024 तक पेश करने की डेडलाइन दी गई थी, लेकिन अब इस समय सीमा को बढ़ाकर 13 फरवरी कर दिया गया है। यह तारीख बजट सत्र के अंतिम दिन भी है, जो इस मुद्दे की गंभीरता को और बढ़ा देती है।
जेपीसी की बैठक के दौरान कई बार हंगामा हुआ, जिसमें विपक्षी और सत्तारूढ़ दल के बीच तीखी बहसें हुईं। एक घटना में भाजपा सांसद निशिकांत दुबे के प्रस्ताव पर 10 विपक्षी सांसदों को निलंबित कर दिया गया था। पिछले साल अक्टूबर में हुई बैठक के दौरान नेताओं के बीच मारपीट की स्थिति बन गई थी। झड़प के दौरान टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कांच की पानी की बोतल उठाकर मेज पर मारी, जिससे वह खुद घायल हो गए थे।
इससे यह स्पष्ट होता है कि वक्फ संशोधन बिल पर बनी जेपीसी की बैठक केवल विधायी मामलों तक सीमित नहीं रही, बल्कि इसने राजनीतिक तनाव और विपक्षी दलों के साथ सत्तारूढ़ दल के बीच की बढ़ती खाई को भी उजागर किया। इस विवाद के बीच, बिल के पारित होने से यह सुनिश्चित किया जाएगा कि देश में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में अधिक पारदर्शिता और नियंत्रण हो, लेकिन इसके साथ ही यह भी स्पष्ट है कि इस पर विपक्षी दलों की आलोचनाएं और विरोध जारी रहेगा।