Saturday, October 12, 2024
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Thiland: समलैंगिक विवाह विधेयक को मिला शाही समर्थन, सेम सेक्स मैरिज अब थाइलैंड में संभव

Thiland : थाईलैंड के राजा द्वारा संसद द्वारा पारित विवाह समानता विधेयक का समर्थन करने के बाद थाईलैंड आधिकारिक तौर पर दक्षिण-पूर्व एशिया का पहला और एशिया में समलैंगिक जोड़ों के विवाह को मान्यता देने वाला तीसरा देश बन गया है। यह एक ऐतिहासिक क्षण है, जिसने थाईलैंड के LGBTQ समुदाय के अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बढ़ाया है। शाही समर्थन का प्रकाशन मंगलवार की देर रात आधिकारिक शाही राजपत्र में किया गया, जिसके बाद विधेयक अगले 120 दिनों में लागू हो जाएगा।

थाईलैंड में लंबे समय से समलैंगिक विवाह के अधिकार की मांग चल रही थी, और यह विधेयक संसद के भीतर जून 2023 में भारी प्रयासों के बाद पारित हुआ। LGBTQ अधिकार कार्यकर्ता इसे एक बड़ी जीत के रूप में देख रहे हैं, खासकर एक ऐसे देश में जो अपनी समृद्ध LGBTQ संस्कृति और सहिष्णुता के लिए पहले से ही जाना जाता है। यह कानून न केवल थाईलैंड के लिए, बल्कि एशिया के अन्य देशों के लिए भी एक प्रेरणास्रोत हो सकता है, जहां समलैंगिक अधिकारों के लिए संघर्ष जारी है।

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थाईलैंड का सामाजिक और सांस्कृतिक परिप्रेक्ष्य

थाईलैंड एक बौद्ध बहुल राष्ट्र है, जहां पारंपरिक और रूढ़िवादी मूल्य अभी भी समाज में गहराई से जड़े हुए हैं। इसके बावजूद, स्थानीय मीडिया में प्रकाशित जनमत सर्वेक्षणों के अनुसार, जनता में समान विवाह के लिए व्यापक समर्थन देखा गया है। यह संकेत है कि थाईलैंड जैसे पारंपरिक समाज में भी आधुनिकता और प्रगतिशील सोच का उदय हो रहा है। हालांकि, LGBTQ लोगों का कहना है कि उन्हें अभी भी रोजमर्रा की जिंदगी में भेदभाव और सामाजिक बाधाओं का सामना करना पड़ता है, फिर भी यह विधेयक उनके अधिकारों की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

थाईलैंड का LGBTQ समुदाय और वहां की सरकार ने धीरे-धीरे इस दिशा में कदम उठाए हैं। इस विधेयक के माध्यम से अब समलैंगिक जोड़ों को वही कानूनी अधिकार मिलेंगे जो विषमलैंगिक जोड़ों को पहले से प्राप्त थे। हालांकि, इस कानून के लागू होने के बाद भी LGBTQ समुदाय को समग्र समाज में पूर्ण स्वीकृति प्राप्त करने के लिए संघर्ष जारी रखना होगा।

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वैश्विक संदर्भ और थाईलैंड की स्थिति

थाईलैंड एशिया का तीसरा देश है जिसने समलैंगिक विवाह को मान्यता दी है। ताइवान और नेपाल पहले ही इस दिशा में कदम उठा चुके हैं। समलैंगिक विवाह को सबसे पहले नीदरलैंड ने 2001 में कानूनी मान्यता दी थी, जिसके बाद यह अन्य देशों में भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया। आज, दुनिया भर में 30 से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को वैध कर दिया है। समलैंगिक विवाह की इस वैश्विक आंदोलन में थाईलैंड का कदम महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह दक्षिण-पूर्व एशिया में एक प्रगतिशील दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है।

यह कदम विशेष रूप से महत्वपूर्ण है क्योंकि थाईलैंड दक्षिण-पूर्व एशिया के सबसे लोकप्रिय पर्यटन स्थलों में से एक है और अपनी LGBTQ समुदाय के प्रति सहिष्णुता के लिए पहले से ही जाना जाता है। इसके अलावा, थाईलैंड की अर्थव्यवस्था में पर्यटन एक बड़ा योगदान देता है, और LGBTQ पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए यह नया कानून एक सकारात्मक संकेत होगा। यह कानून देश के भीतर और बाहरी दुनिया में थाईलैंड की छवि को और मजबूत करेगा, जो अपने विविधता और खुलेपन के लिए पहले से ही प्रसिद्ध है।

भारत में समलैंगिक विवाह की स्थिति

भारत में भी समान लिंग विवाह की मांग लंबे समय से चल रही है। हाल ही में इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में वाद दायर किया गया था, जिसमें समलैंगिक जोड़ों को विवाह का कानूनी अधिकार देने की मांग की गई थी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह विधायिका का काम है कि वह कानून बनाए, और इस पर कोर्ट कुछ नहीं कर सकती। यह निर्णय LGBTQ समुदाय और उनके समर्थकों के लिए एक बड़ा झटका था, जो इस मामले में अधिक सक्रियता की उम्मीद कर रहे थे।

भारतीय समाज में समलैंगिक विवाह का मुद्दा अब भी संवेदनशील है। यहां पारंपरिक और रूढ़िवादी सोच अभी भी प्रबल है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में। हालांकि, शहरी क्षेत्रों में धीरे-धीरे LGBTQ अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ रही है, और कई युवा लोग समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों का समर्थन कर रहे हैं। भारतीय समाज में LGBTQ समुदाय को अब भी भेदभाव, हिंसा, और सामाजिक अस्वीकृति का सामना करना पड़ता है। बावजूद इसके, पिछले कुछ वर्षों में समलैंगिक अधिकारों के प्रति सरकार और न्यायपालिका में कुछ सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिले हैं।

भारत में LGBTQ अधिकारों के संघर्ष की दिशा में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर 2018 में आया, जब सुप्रीम कोर्ट ने धारा 377 को निरस्त कर दिया। इस धारा के तहत समलैंगिकता को आपराधिक कृत्य माना जाता था। हालांकि, इस निर्णय ने समलैंगिकता को कानूनी मान्यता दी, लेकिन विवाह के अधिकार की लड़ाई अब भी अधूरी है। LGBTQ कार्यकर्ता और उनके समर्थक इसे एक बड़ी कानूनी और सामाजिक लड़ाई मानते हैं, जो अभी भी जारी है।

अन्य एशियाई देशों में स्थिति

थाईलैंड और भारत के अलावा, अन्य एशियाई देशों में भी समलैंगिक विवाह के अधिकार की मांग धीरे-धीरे उठ रही है। हांगकांग की शीर्ष अदालत भी हाल ही में इस मुद्दे पर विचार कर रही थी, लेकिन विवाह के पूर्ण अधिकार देने से कुछ ही दूर रह गई थी। इसी तरह, जापान, दक्षिण कोरिया, और अन्य देशों में भी इस पर विचार चल रहा है, लेकिन कानूनी मान्यता देने की प्रक्रिया धीमी है।

हालांकि एशिया के कई देशों में समलैंगिक विवाह को अभी तक कानूनी मान्यता नहीं मिली है, लेकिन LGBTQ अधिकारों के लिए समर्थन बढ़ रहा है। सामाजिक और धार्मिक बाधाओं के बावजूद, एशियाई समाजों में बदलाव की हवा चल रही है। थाईलैंड का यह कदम इस परिवर्तन को और गति देने में सहायक हो सकता है।

थाईलैंड में विवाह समानता विधेयक का पारित होना LGBTQ अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह न केवल थाईलैंड के LGBTQ समुदाय के लिए, बल्कि समूचे एशियाई महाद्वीप के लिए एक प्रेरणादायक घटना है। यह दिखाता है कि प्रगतिशील विचारधारा और समाज में विविधता की स्वीकृति धीरे-धीरे मजबूत हो रही है, भले ही इसके लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी हो।

भारत जैसे देशों में यह विधेयक एक प्रेरणा के रूप में काम कर सकता है, जहां समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता की मांग अभी भी जारी है। LGBTQ समुदाय के लिए यह लड़ाई केवल कानूनी अधिकारों की नहीं है, बल्कि समाज में अपनी पहचान और सम्मान की भी है। थाईलैंड का यह कदम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रेरणा साबित हो सकता है।

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