The First Shivling of World:भगवान शिव को संसार का पालनकर्ता माना जाता है। इतना ही नहीं उन्हें सभी देवों का भी देव माना जाता है इसलिए उन्हें महादेव के नाम से भी जाना जाता है। दुनिय़ा भर मे भगवान शिव के भक्तो की सबसे ज्य़ादा भीङ देखी जाती है। सनातन धर्म मे सदिय़ों से भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग की पूजा की मान्य़ता है।
भारत देश में सबसे ज्य़ादा मंदिर भगवान शिव के ही पाए जाते हैं। बङे और प्रसिद्ध मंदिरो के अलावा य़हाँ हर दूसरी गली मे शिवलिंग देखा जा सकता है। लेकिन कब से शुरुआत हुई शिवलिंग की पूजा की। सबसे पहले कब और क्यों की गई शिवलिंग की पूजा जानते हैं इसके बारे में।
कहाँ हैं दुनिया का सबसे पहला शिवलिंग ?
शिव महापुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों के अनुसार दारुकावन के खरगोन जिले से 50 किलोमीटर दूर मंडलेश्वर में भगवान शिव के सबसे पहले शिवलिंग की स्थापना की गई। यह मंदिर गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
इस शिवलिंग को किसने किया स्थापित ? The First Shivling of World
धार्मिक मान्यता है की हजारों साल पहले भगवान शिव की धर्मपत्नी माता पार्वती ने इस शिवलिंग की स्थापना की थी। कहा जाता है की माता पार्वती ने ऋषियों के श्राप से मुक्ति पाने के लिए इस शिवलिंग की स्थापना की थी।
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कैसे हुआ शिवलिंग स्थापित ?
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार भगवान शिव और माता पार्वती दारुकावन में भ्रमण करने गए। वन में कुछ ऋषि तपस्या कर रहे थे और वहाँ उनकी पत्नीयाँ भी मौजूद थी। माता पार्वती ने भगवान शिव से उनकी तपस्या भंग करने की जिद की। भगवान शिव ने एक बालक का नग्न रूप धारण कर के नृत्य किया जिससे ऋषियों की तपस्या भंग हो गई। ऋषि ये बात नहीं जानते थे की वह भगवान शिव हैं। जिससे सभी ऋषियों को क्रोध आ गया। उन्होंने क्रोध में आकर भगवान शिव को श्राप दे दिया। श्राप मिलते ही भगवान शिव का लिंग वहीं गिर गया। तभी उनके लिंग से भगवान विष्णु और ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए। उन्होंने बताया की ये स्वयं भगवान शिव हैं।
ऋषियों ने कहा की श्राप वापिस नहीं लिया जा सकता लेकिन भगवान शिव को श्राप मुक्त करने का उपाय बताया। उन्होंने बताया की उनके इस गिरे हुए लिंग को शिवलिंग के रूप में यहीं स्थापित होना पड़ेगा और जब महिलायों द्वारा इसपर जल चढ़ाया जाएगा और इसकी पूजा की जाएगी तो धीरे-धीरे भगवान शिव के श्राप का असर खत्म हो जाएगा। तब भगवान शिव और माता पार्वती ने पास के नर्मदा नदी से एक पत्थर लिया और अनादि लिंग के रूप में इसकी स्थापना की। जिसे आज गुप्तेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गुप्तेश्वर मंदिर का महत्व
इस मंदिर के पुजारियों द्वारा ऐसा बताया जाता है की यहाँ आधी रात में मंदिर की घंटियों की आवाज सुनाई देती है। मंदिर के ठीक सामने नंदी भगवान की बहुत बड़ी मूर्ति है मान्यता है की इनके कान में अपनी कोई भी मनोकामना कहने पर वह अवश्य पूरी होती है।