Tuesday, September 17, 2024
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Supreme Court : मनी लॉन्ड्रिंग केस में सुप्रीम कोर्ट ने ईडी को लगाई फटकार, जानिए आखिर क्या है मामला

Supreme Court: ये मामला भारतीय न्याय प्रणाली और संवैधानिक अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखने की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) से यह सवाल उठाया है कि क्या मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपियों को दस्तावेज देने से इनकार करना उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। यह मुद्दा एक व्यापक संवैधानिक सवाल को छूता है जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता, निष्पक्ष सुनवाई, और कानून के शासन से जुड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी और सवाल

बता दे कि ये मामला 2022 में सरला गुप्ता बनाम प्रवर्तन निदेशालय केस की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आया। इस केस में जस्टिस ए.एस. ओका, जस्टिस ए. अमानुल्लाह, और जस्टिस ए.जी. मसीह की पीठ ने मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपियों को दस्तावेजों की आपूर्ति से जुड़ी अपील पर सुनवाई की। कोर्ट ने ED से पूछा कि क्या एजेंसी द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों को आरोपियों को न देने का निर्णय उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है, खासकर अनुच्छेद 21 के तहत, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है।

जस्टिस ओका ने कहा कि “हमारा मकसद न्याय देना है।” कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि समय बदल रहा है, और न्यायपालिका को इस बदलाव के साथ तालमेल बिठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि “क्या हम इतने कठोर हो सकते हैं कि जब कोई व्यक्ति केस का सामना कर रहा हो, तो हम कहें कि दस्तावेज सुरक्षित हैं?” कोर्ट ने यह भी कहा कि पारदर्शिता न्यायिक प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसलिए, ऐसे दस्तावेज जो किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता और जमानत के लिए महत्वपूर्ण हो सकते हैं, उन्हें प्रदान किया जाना चाहिए।

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संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन ? Supreme Court

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार दिया गया है, और यह किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही छीना जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मौकों पर यह स्पष्ट किया है कि “निष्पक्ष सुनवाई” एक मौलिक अधिकार है और इसके अभाव में जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार का कोई अर्थ नहीं रह जाता।

सुप्रीम कोर्ट का यह सवाल उठाना कि क्या आरोपियों को दस्तावेज देने से मना करना उनके अनुच्छेद 21 के अधिकार का उल्लंघन है, इस संदर्भ में अत्यधिक महत्वपूर्ण है। न्यायिक प्रक्रिया के दौरान आरोपी को अपने बचाव के लिए पूर्ण अवसर प्रदान किया जाना चाहिए, और यदि आरोपी उन दस्तावेजों से वंचित रहता है जिन पर जांच एजेंसी भरोसा कर रही है, तो यह उनके मौलिक अधिकारों का हनन हो सकता है।

ED की दलील

प्रवर्तन निदेशालय (ED) की ओर से अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एस.वी. राजू ने कोर्ट में यह तर्क दिया कि यदि आरोपी को दस्तावेजों के बारे में पता है, तो वह उन्हें मांग सकता है। लेकिन अगर उसे दस्तावेजों का कोई ज्ञान नहीं है, तो वह केवल अनुमान के आधार पर जांच नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि एजेंसी द्वारा जब्त किए गए दस्तावेजों की पूरी सूची आरोपी को दी जाती है, और केवल आवश्यक और उचित परिस्थितियों में ही आरोपी उन्हें मांग सकता है।

हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। न्यायमूर्ति अमानुल्लाह ने सवाल उठाया कि “सब कुछ पारदर्शी क्यों नहीं हो सकता?” उन्होंने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया में पारदर्शिता का होना आवश्यक है, खासकर जब यह जीवन और स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकारों से जुड़ा हो।

अदालत की चिंता | Supreme Court

सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग के मामलों में आरोपी को अक्सर हजारों दस्तावेज मिल सकते हैं, लेकिन ED केवल कुछ ही दस्तावेजों पर भरोसा करती है। इस संदर्भ में, आरोपी यह पूछ सकता है कि जो दस्तावेज उसके घर से जब्त किए गए हैं, उन्हें उसे क्यों नहीं दिया जा सकता। सरकारी वकील का यह तर्क कि “आरोपी को सभी दस्तावेजों तक पहुंच की अनुमति नहीं दी जा सकती” भी न्यायालय ने खारिज किया।

अदालत ने यह भी कहा कि तकनीक के इस युग में, यह कोई बड़ी बात नहीं है कि दस्तावेजों को स्कैन कर आरोपी को उपलब्ध कराया जाए। इसके अलावा, यदि आरोपी जमानत या मामले को खारिज करने के लिए इन दस्तावेजों पर निर्भर है, तो उसे उनका अधिकार होना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट का फैसला सुरक्षित

अंततः, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है। यह मामला न केवल मनी लॉन्ड्रिंग के संदर्भ में महत्वपूर्ण है, बल्कि इससे जुड़े मौलिक अधिकारों के सवाल भी उठाता है। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से यह साफ हो सकता है कि क्या जांच एजेंसी आरोपी को दस्तावेज देने से इनकार कर सकती है या नहीं, और क्या यह संविधान के अनुच्छेद 21 का उल्लंघन है।

सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी भारतीय न्याय व्यवस्था में पारदर्शिता और निष्पक्षता की आवश्यकता को उजागर करती है। मनी लॉन्ड्रिंग जैसे मामलों में जहां आरोपी के पास अपने बचाव के लिए सीमित संसाधन होते हैं, वहां उन्हें उन दस्तावेजों तक पहुंचने का अधिकार होना चाहिए, जिन पर जांच एजेंसी भरोसा कर रही है।

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