Friday, November 22, 2024
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Supreme Court On Bail: ” बेल न देना मौलिक अधिकार का उल्लंघन ” – सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court On Bail: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है, जिसमें कहा गया है कि गैर कानूनी गतिविधियों से संबंधित विशेष कानूनों (जैसे कि UAPA – गैर कानूनी गतिविधि अधिनियम) के मामलों में भी जमानत का सिद्धांत लागू होता है। अदालत ने यह स्पष्ट किया है कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, और यह सिद्धांत सभी प्रकार के आपराधिक मामलों में लागू होना चाहिए, चाहे वे विशेष कानूनों के अंतर्गत आते हों या नहीं।

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय

यह फैसला उस मामले के संदर्भ में आया है जिसमें जलालुद्दीन खान नामक व्यक्ति पर आरोप था कि उसने बैन किए गए संगठन पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) के सदस्यों को अपने घर किराए पर दिया था। इस पर राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने आरोप लगाया कि खान ने आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देने की साजिश में भी भूमिका निभाई थी। एनआईए की विशेष अदालत और पटना हाई कोर्ट ने खान की जमानत अर्जी खारिज कर दी थी, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा। सुप्रीम कोर्ट ने खान की जमानत अर्जी को स्वीकार करते हुए उसे जमानत पर रिहा कर दिया।

आर्टिकल 21 का महत्व | Supreme Court On Bail

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 का हवाला दिया, जिसमें जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार सुनिश्चित किया गया है। अदालत ने यह कहा कि अगर किसी व्यक्ति को जमानत का हकदार माना जाता है और फिर भी उसे जमानत नहीं दी जाती है, तो यह उसके मौलिक अधिकारों का हनन होगा।

जमानत का सिद्धांत | Supreme Court On Bail

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह भी कहा कि अदालतों को जमानत मामलों में निर्णय लेने के समय संकोच नहीं करना चाहिए। अभियोजन पक्ष के आरोप चाहे जितने गंभीर हों, अदालत की यह जिम्मेदारी है कि वह कानून के मुताबिक जमानत अर्जी पर निष्पक्ष निर्णय ले। कोर्ट ने जमानत के सिद्धांत पर जोर देते हुए कहा कि जमानत नियम है और जेल अपवाद, और यह सिद्धांत विशेष कानूनों में भी लागू होता है।

सुप्रीम कोर्ट का दृष्टिकोण

इस फैसले के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि विशेष कानूनों के अंतर्गत आने वाले मामलों में भी जमानत का सिद्धांत लागू होना चाहिए। यह निर्णय इस बात पर जोर देता है कि न्यायपालिका को आरोपी के मौलिक अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए और किसी भी आरोपी को अनावश्यक रूप से हिरासत में नहीं रखा जाना चाहिए, जब तक कि उसके खिलाफ पर्याप्त सबूत न हों।

सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में अन्य मामलों में भी इसी सिद्धांत का पालन किया है। उदाहरण के लिए, दिल्ली के पूर्व डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के मामले में भी अदालत ने कहा था कि देश भर के ट्रायल कोर्ट और हाई कोर्ट जमानत के सिद्धांत को भूल रहे हैं, और यह समय है कि वे इसे समझें।

नतीजे और प्रभाव

पटना हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल आरोपी जलालुद्दीन खान की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया। जलालुद्दीन की अर्जी स्वीकार करते हुए उसे जमानत दे दी। पुलिस के मुताबिक, आरोपी ने बैन संगठन पीएफआई के लोगों को ट्रेनिंग के लिए घर दिया। साथ ही आतंकवाद की घटनाओं को अंजाम देने के लिए होने वाली प्लानिंग में शामिल था। वहीं, आरोपी ने अपने ऊपर लगाए गए इल्जाम को नकारा और कहा कि वह पीएफआई का सदस्य नहीं है। उसका रोल सिर्फ इतना है कि उसका घर किराये पर दिया गया था।

इस मामले में एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज कर दी थी जिसके बाद पटना हाई कोर्ट से भी आरोपी को जमानत नहीं मिली तब मामला सुप्रीम कोर्ट के सामने आया। सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी को राहत देते हुए जमानत दे दी। सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय का व्यापक प्रभाव हो सकता है, खासकर उन मामलों में जहां विशेष कानूनों के तहत आरोप लगाए जाते हैं। यह फैसला आने वाले दिनों में नजीर के रूप में उपयोग हो सकता है, जिससे अन्य मामलों में भी जमानत के सिद्धांत को सही ढंग से लागू किया जा सकेगा।

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