एडवोकेट ममता रानी ने फरवरी में सुप्रीम कोर्ट के समक्ष एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वालों के लिए पंजीकरण और सामाजिक सुरक्षा की मांग की गई थी। सोमवार को भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी पारदीवाला की पीठ ने याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि यह गलत है और याचिका के उद्देश्य पर सवाल उठाती है।
याचिका में लिव इन रिलेशनशिप को विनियमित करने वाले नियमों और दिशानिर्देशों की कमी के परिणामस्वरूप लिव इन पार्टनर के बीच अपराधों में उल्लेखनीय वृद्धि जैसे बलात्कार और हत्या के बारे में चिंता जताई गई थी। याचिका में श्रद्धा वालकर और निक्की यादव हत्याकांड का हवाला दिया गया था। इसमें कहा गया था कि गोपनीय तरीके से चल रहे ऐसे संबंध लगातार जघन्य अपराध की वजह बन रहे हैं। याचिका में लिव-इन पार्टनरशिप के पंजीकरण के लिए दिशानिर्देश स्थापित करने के लिए कहा गया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने इस पर सुनवाई करते हुए कहा- “क्या आप इन लोगों की सुरक्षा को बढ़ावा देने की कोशिश कर रहे हैं या लोगों को लिव इन रिलेशनशिप में नहीं रहने देना चाहते हैं?”
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याचिका में कहा गया है कि जहां अदालतों का उद्देश्य नागरिकों की रक्षा करना है, जिसमें रिश्तों में रहने वाले भी शामिल हैं, ऐसे रिश्तों को दर्ज करने से इनकार करना स्वतंत्रता से जीने के मौलिक अधिकार (अनुच्छेद 19), जीवन सुरक्षा के अधिकार (अनुच्छेद 21) और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है और ऐसे रिश्तों में रहने वाले व्यक्तियों को पंजीकरण द्वारा संरक्षित किया जाना चाहिए।