Sunday, September 29, 2024
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Supreme Court : मैरिटल रेप पर सुप्रीम कोर्ट ने एक हफ्ते के लिए टाली सुनवाई

Supreme Court: मैरिटल रेप यानी वैवाहिक बलात्कार एक ऐसा संवेदनशील और विवादित विषय है, जो भारत के सामाजिक, कानूनी और सांस्कृतिक ढांचे में गहराई से जुड़ा हुआ है। हाल के वर्षों में इस विषय पर देश भर में व्यापक बहस और कानूनी चुनौतियाँ उभर कर सामने आई हैं। सुप्रीम कोर्ट में मैरिटल रेप के मामलों पर सुनवाई को लेकर एक बार फिर चर्चा हो रही है, और इसके निर्णय का देश के कानूनी ढांचे और समाज पर गहरा प्रभाव पड़ सकता है।

सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई

हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने मैरिटल रेप के मामले की सुनवाई एक हफ्ते के लिए टाल दी है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से इस सप्ताह सुनवाई न करने का आग्रह किया था, क्योंकि उन्हें इस मामले में सरकार की तरफ से जवाब दाखिल करना था। चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस जे.बी. पारदीवाला की बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। मेहता के अनुरोध पर कोर्ट ने मामले की सुनवाई को अगले हफ्ते के लिए स्थगित कर दिया, जब इस पर विस्तार से चर्चा की जाएगी।

मैरिटल रेप और भारतीय कानून | Supreme Court

भारतीय कानून में मैरिटल रेप को स्पष्ट रूप से अपराध नहीं माना गया है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 375 में बलात्कार की परिभाषा दी गई है, लेकिन इसमें विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा किए गए यौन संबंधों को बलात्कार की श्रेणी से बाहर रखा गया है, बशर्ते महिला की उम्र 18 साल से अधिक हो। इसे “वैवाहिक बलात्कार अपवाद” के रूप में जाना जाता है।

हालांकि, यह अपवाद एक लंबे समय से विवाद का विषय रहा है। महिलाओं के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठनों और कई कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि यह कानून महिलाओं के साथ हो रहे यौन शोषण को वैधता प्रदान करता है और उनके अधिकारों का हनन करता है।

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बीएनएस धारा 63

भारतीय कानून में मैरिटल रेप को अपराध न मानने का प्रमुख कारण आईपीसी की धारा 63 के तहत दिया गया अपवाद है। इस धारा के अनुसार, यदि कोई पति अपनी पत्नी के साथ उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाता है, तो उसे बलात्कार नहीं माना जाएगा, बशर्ते पत्नी की उम्र 18 वर्ष से अधिक हो। यह धारा विशेष रूप से विवाह संस्था को संरक्षित करने के उद्देश्य से बनाई गई थी, लेकिन इसे लेकर समय-समय पर आलोचना होती रही है।

सरकार का रुख

2016 में भारत सरकार ने मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने के विचार को खारिज कर दिया था। सरकार ने कहा था कि भारत में सामाजिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को देखते हुए इसे लागू करना उचित नहीं होगा। गरीबी, अशिक्षा, सामाजिक रीति-रिवाज और विवाह को एक संस्कार के रूप में देखने वाली मानसिकता जैसे कारक इसे लागू करने में बाधा बन सकते हैं।

साल 2017 में, सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट में भी मैरिटल रेप को अपराध न मानने के कानूनी अपवाद को बनाए रखने का समर्थन किया था। सरकार का मानना था कि यदि इसे अपराध घोषित किया गया, तो इससे विवाह की संस्था अस्थिर हो जाएगी और इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। विशेष रूप से यह चिंता व्यक्त की गई थी कि पत्नियां इस कानून का गलत इस्तेमाल कर अपने पतियों को सजा दिलाने के लिए इसे हथियार के रूप में इस्तेमाल कर सकती हैं।

सामाजिक और कानूनी विवाद

मैरिटल रेप के मुद्दे पर समाज और कानून के बीच एक बड़ी खाई नजर आती है। एक तरफ, विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है, जहां पति और पत्नी के बीच संबंध को निजी मामला समझा जाता है। वहीं, दूसरी ओर, महिलाओं के अधिकारों और उनकी स्वायत्तता के संदर्भ में, यह तर्क दिया जाता है कि विवाह किसी व्यक्ति को यौन हिंसा करने का लाइसेंस नहीं दे सकता है।

2017 में दिल्ली हाई कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट ने भी मैरिटल रेप के मामले में टिप्पणी की थी, जिसके बाद इस मुद्दे पर चर्चा और तेज हो गई। दिल्ली हाई कोर्ट ने सुझाव दिया था कि “संवैधानिक नैतिकता” के आधार पर मैरिटल रेप को अपराध माना जाना चाहिए, क्योंकि यह महिला के अधिकारों का उल्लंघन है।

विदेशों में भी ये है अपराध

भारत उन कुछ देशों में से एक है जहां अब भी मैरिटल रेप को स्पष्ट रूप से अपराध नहीं माना जाता है। संयुक्त राष्ट्र और कई अंतर्राष्ट्रीय मानवाधिकार संगठनों ने भी भारत से इस कानूनी अपवाद को हटाने की मांग की है। उनका मानना है कि किसी भी महिला के साथ, चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, उसकी इच्छा के खिलाफ यौन संबंध बनाना अपराध होना चाहिए।

कई देशों में मैरिटल रेप को अपराध घोषित कर दिया गया है, और इसे महिलाओं के अधिकारों की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना गया है। उदाहरण के लिए, यूनाइटेड किंगडम, संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में मैरिटल रेप को कानूनन अपराध माना गया है।

भारत में बदलती स्थिति

भारत में महिलाओं के अधिकारों के प्रति जागरूकता और संवेदनशीलता बढ़ने के साथ-साथ मैरिटल रेप को अपराध घोषित करने की मांग भी तेज हो रही है। महिला अधिकार संगठन और सामाजिक कार्यकर्ता इस बात पर जोर दे रहे हैं कि कानून को समय के साथ बदलना चाहिए और महिलाओं के साथ होने वाली किसी भी तरह की हिंसा को बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए।

इसके अलावा, कुछ मामलों में अदालतों ने भी इस मुद्दे को उठाया है और इसे महिलाओं के मौलिक अधिकारों के खिलाफ माना है। दिल्ली हाई कोर्ट और कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसलों ने इस मुद्दे को और अधिक प्रमुखता दी है, जिसके बाद से इसे लेकर सार्वजनिक और कानूनी बहसें भी बढ़ गई हैं।

मैरिटल रेप का मुद्दा भारतीय समाज और कानून के सामने एक गंभीर चुनौती के रूप में उभरा है। एक तरफ, इसे वैवाहिक संबंधों के निजी पहलुओं में हस्तक्षेप के रूप में देखा जाता है, तो दूसरी तरफ, इसे महिला अधिकारों और उनकी सुरक्षा से जुड़ा हुआ माना जाता है। सुप्रीम कोर्ट का इस मामले पर आने वाला फैसला देश के कानूनी ढांचे और महिलाओं की सुरक्षा के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होगा।

सरकार का कहना है कि इस विषय पर व्यापक विचार-विमर्श की आवश्यकता है, और यह संभव है कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद इस पर गंभीरता से चर्चा की जाएगी। मैरिटल रेप को लेकर भारत में जो भी कानूनी बदलाव होंगे, वे न केवल समाज में महिलाओं की स्थिति को प्रभावित करेंगे, बल्कि विवाह और परिवार के संस्थागत ढांचे पर भी दूरगामी प्रभाव डालेंगे।

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