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Supreme Court: बंधुआ मजदूरों और बाल मजदूरों की वित्तीय सहायता में देरी पर सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी

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Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने बंधुआ मजदूरों और बाल तस्करी से संबंधित मामलों में राज्यों और केंद्र सरकार की उदासीनता पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि केंद्र सरकार राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के साथ बैठक कर, अंतरराज्यीय मानव तस्करी और बचाए गए मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता देने के लिए ठोस प्रस्ताव तैयार करे। यह मामला तब सामने आया जब यूपी में बचाए गए 5262 बंधुआ मजदूरों में से केवल 1101 को ही वित्तीय सहायता मिली, जबकि 4167 मजदूर अभी भी सहायता के इंतजार में हैं।

यूपी की स्थिति पर कोर्ट की चिंता

जस्टिस बीआर गवई की अगुवाई वाली सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यूपी की स्थिति को “बेहद गंभीर” बताया। कोर्ट ने कहा कि बंधुआ मजदूरों को तत्काल वित्तीय सहायता देना जरूरी है और इसमें किसी भी प्रकार की देरी अनुचित है। कोर्ट ने कहा कि बचाए गए मजदूरों को राहत देने के लिए एक सरल प्रक्रिया और प्रभावी तंत्र बनाया जाए।

केंद्र को राज्यों के साथ मिलकर समाधान तैयार करने का निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव को निर्देश दिया कि वे सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के अधिकारियों के साथ बैठक करें और इस समस्या का समाधान निकालें। इस बैठक में अंतरराज्यीय बाल तस्करी, रिहाई प्रमाण पत्र जारी करने की प्रक्रिया को तेज करना और बचाए गए मजदूरों को वित्तीय सहायता देने की प्रणाली को सरल बनाने पर जोर दिया गया।

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बिहार की रिपोर्ट का हवाला

याचिकाकर्ताओं की ओर से एडवोकेट अभिषेक जेबराज ने बिहार की रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया कि 2016 में गया के जिला मजिस्ट्रेट ने हरदोई के जिला मजिस्ट्रेट से 126 बंधुआ मजदूरों के लिए सही प्रारूप में रिहाई प्रमाण पत्र प्रदान करने का अनुरोध किया था, जो अब तक लंबित है। कोर्ट ने इसे मानवाधिकारों का उल्लंघन बताते हुए यूपी और अन्य राज्यों में बंधुआ मजदूरों की पहचान के लिए सर्वेक्षण कराने पर बल दिया।

NHRC की सिफारिशें

राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की ओर से सीनियर एडवोकेट एचएस फूलका ने कोर्ट को बताया कि 2017 में एक मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) तैयार की गई थी, जिसमें बचाए गए मजदूरों की पहचान और सहायता का काम तीन महीने में पूरा करने का निर्देश था। लेकिन यह प्रक्रिया अब तक प्रभावी रूप से लागू नहीं हो सकी है। उन्होंने बताया कि 11,000 बचाए गए बच्चों को भी अब तक वित्तीय सहायता नहीं दी गई।

याचिकाकर्ताओं की मांग

याचिकाकर्ताओं ने वित्तीय सहायता में देरी रोकने के लिए सामान्य दिशानिर्देश जारी करने की मांग की। उन्होंने जोर दिया कि मजदूरों की पहचान के लिए राज्य स्तर पर सर्वेक्षण किया जाना चाहिए और सभी संबंधित एजेंसियों को मिलकर काम करना चाहिए।

सुप्रीम कोर्ट की सिफारिशें

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह मामला गंभीर है और इसमें त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है। कोर्ट ने कहा कि बचाए गए मजदूरों को जल्द से जल्द राहत देने के लिए एक प्रभावी और समयबद्ध प्रणाली लागू होनी चाहिए। इसके साथ ही, एनएचआरसी को इस प्रक्रिया में सक्रिय रूप से शामिल करने और यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया है कि बंधुआ मजदूरों के पुनर्वास में कोई भी देरी न हो।

बंधुआ मजदूरों की समस्या न केवल एक सामाजिक कलंक है, बल्कि यह मानवाधिकारों का भी बड़ा उल्लंघन है। सुप्रीम कोर्ट की यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है जो इस गंभीर मुद्दे पर प्रशासन की जवाबदेही तय करेगी। अंतरराज्यीय मानव तस्करी और मजदूरों के पुनर्वास की प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाना सरकार और न्यायपालिका दोनों की प्राथमिकता होनी चाहिए।