Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक नेताओं द्वारा दिए जाने वाले भड़काऊ भाषणों पर रोक लगाने और गाइडलाइंस जारी करने की मांग वाली याचिका को खारिज कर दिया। प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई से इनकार करते हुए स्पष्ट किया कि नफरत फैलाने वाले भाषण (हेट स्पीच) और गलतबयानी (मिसस्टेटमेंट) के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता द्वारा इस अंतर को सही से समझे बिना याचिका दायर की गई है।
भड़काऊ भाषण और गलतबयानी में अंतर
अदालत ने स्पष्ट किया कि भड़काऊ भाषण वे होते हैं, जो जानबूझकर समाज में नफरत और वैमनस्य फैलाने के उद्देश्य से दिए जाते हैं। वहीं, गलतबयानी का तात्पर्य किसी बयान या दावे से है जो असत्य हो सकता है लेकिन जिसका उद्देश्य नफरत फैलाना न हो। अदालत ने कहा कि जनहित याचिका में हेट स्पीच के अपराध को गलत ढंग से प्रस्तुत किया गया है।
याचिका के मुख्य बिंदु
याचिकाकर्ता, ‘हिंदू सेना समिति’, ने तर्क दिया कि नेताओं के उत्तेजक भाषण अक्सर समाज में अशांति फैलाने का कारण बनते हैं। याचिका में ऐसे भाषणों को रोकने के लिए गाइडलाइंस तैयार करने और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालने वाले बयानों पर दंडात्मक कार्रवाई का आग्रह किया गया। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इसे संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत स्वीकार करने से इनकार कर दिया।
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अदालत का दृष्टिकोण
अदालत ने कहा कि वह याचिका के गुण-दोष पर टिप्पणी किए बिना इसे खारिज कर रही है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता को कानून के तहत उपलब्ध अन्य उपायों का उपयोग करने का सुझाव दिया। साथ ही, कोर्ट ने यह भी कहा कि वह इस मामले में नोटिस जारी करने के लिए इच्छुक नहीं है।