तमिलनाडु के परंपरागत खेल जल्लीकट्टू को लेकर गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया। कोर्ट ने जल्लीकट्टू को सही माना है और इस पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। शीर्ष अदालत के द्वारा तमिलनाडु सरकार के उस कानून को वैध करार दिया है, जिसमें जलीकट्टू को खेल के रूप में मान्यता दी गई है। कोर्ट ने कहा कि तमिलनाडु का जानवरों के साथ क्रूरता कानून (संशोधन), 2017 जानवरों को होने वाले दर्द और पीड़ा को काफी हद तक कम कर देता है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में जल्लीकट्टू में हिस्सा लेने वाले बैलों के साथ क्रूरता करने का हवाला देते हुए कानून को रद्द करने की मांग की गई थी। तमिलनाडु के कानून को संसद से पास पशु क्रूरता निरोधक कानून का उल्लंघन बताया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नए कानून पशुओं के प्रति क्रूरता को काफी हद तक कम करते हैं। यह खेल सदियों से तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा है। ऐसे में इसे बाधित नहीं किया जा सकता। अगर कोई पशुओं से क्रूरता करें, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जाए।
आपको बता दें कि 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने पशु कल्याण विभाग और ए नागराज के केस में जल्लीकट्टू पर बैन लगाया था। हालांकि इसके बाद राज्यों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद कानून में संशोधन कर दिया था। कानून में संशोधन को चुनौती देते हुए याचिका दाखिल की गई थी, जिसे अब सुप्रीम कोर्ट के द्वारा खारिज कर दिया गया है।
क्या है जल्लीकट्टू?
जल्लीकट्टू बैलों और इंसानों के बीच खेला जाने वाला खेल है, जिसका आयोजन पोंगल में फसलों की कटाई के दौरान किया जाता है। इसका इतिहास बेहद ही पुराना है। जलीकट्टू खेल प्राचीन काल से चला आ रहा है। बताया जाता है कि प्राचीनकाल में महिलाएं इस खेल के माध्यम से अपने पति को चुना करती थीं। तमिल में जली का अर्थ है सिक्के की थैली और कट्टू का अर्थ है बैल का सींग। इस खेल परंपरा को करीब ढाई हजार साल पुराना बताया जाता है।
जल्लीकट्टू में होता ये है कि गांव के तीन बैलों को छोड़ा जाता है, जिनको कोई नहीं पकड़ता। बैलों को गांव की शान के तौर पर देखा जाता है। फिर शुरू होता है जल्लीकट्टू का खेल। इस खेल में बैलों के सींगों पर सिक्कों की थैली बांधी जाती है। फिर उनको भड़काकर भीड़ की तरफ छोड़ा जाता है। इस खेल में लोगों को बैलों को पकड़कर उसकी सींगों से सिक्कों की थैली लेनी होती है। जो व्यक्ति बैल को कंट्रोल करता है, उसे इनाम मिलता है। वहीं जो बैल जल्दी कंट्रोल में आ जाता है उसे कमजोर मानकर खेतीबाड़ी के काम में लगा दिया जाता है। वहीं जो बैल पकड़ में नहीं आते उनको ताकतवर समझा जाता है और नश्ल बढ़ाने के लिए रख लिया जाता है।
प्राचीन समय में होता ये था कि जल्लीकट्टू के खेल में जो व्यक्ति ने बैलों को काबू पा लेता था उसको एक योद्धा समझा जाता था और महिलाएं उनको अपने पति के रूप मे चुनती थीं। लंबे समय तक बैल को काबू रखने वाले व्यक्ति को सिकंदर की उपाधि मिलती है। ये करीब 2000 साल पुराना खेल है जो संस्कृति से जुड़ा है।
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क्यों हुआ जल्लीकट्टू पर विवाद?
हालांकि जल्लीकट्टू को लेकर विवाद भी होता है। इस खेल के दौरान साल 2010 से 2014 के बीच 17 लोगों की जान गई थी, जबकि 1100 से अधिक लोग जख्मी हुए थे। साथ ही जल्लीकट्टू के लिए बैलों को प्रताड़ित करने की बात भी सामने आती है। इसकी वजह से इसे बैन करने की मांग उठी। साल 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने प्रिवेंशन ऑफ क्रूअलटी टू एनिमल एक्ट के तहत इस खेल को बैन कर दिया था। वहीं 2017 में तमिलनाडु सरकार ने क्रूरता कानून (संशोधन) से जल्लीकट्टू को राज्य में मान्यता दे दी। इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई लेकिन अब कोर्ट ने जल्लीकट्टू का मान्यता दे दी है।