अगर आप देश के किसी भी अखाड़े में गए हैं तो आपने वहां हनुमान जी की मूर्ति अवश्य ही देखी होगी। यहां कसरत करने वाले युवान सबसे पहले बजरंगबली को प्रणाम करने के बाद अपनी कसरत आरंभ करते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी सोचा है कि अखाड़ों में हनुमान जी को किसने स्थापित किया और इसके पीछे की क्या कहानी है।
अखाड़ों में हनुमान जी की मूर्ति आपने देखी होगी। आपने सोचा होगा कि हनुमान जी क्योंकि सबसे ज्यादा बलशाली हैं इसलिए इनकी मूर्ति अखाड़ों में होती है। लेकिन, आपको यह जानकर हैरानी होगी कि 400 साल पहले हनुमान जी की मूर्ति अखाड़ों में नहीं होती थी।
जी हां, लगभग 400 साल पहले ‘अवधी’ नामक स्थानीय हिंदी बोली में रामचरितमानस लिखने से पहले, भगवान राम की कहानी को वाल्मीकि की रामायण के माध्यम से उत्तरी और मध्य भारत में संस्कृत में बड़े पैमाने पर पढ़ाया जाता था। लेकिन तुलसीदास ने संस्कृत के विद्वान होते हुए भी अवधी को चुना। उन्होंने इसे अयोध्या में लिखना शुरू किया और काशी (वाराणसी) में समाप्त किया।
तुलसीदास केवल एक लेखक ही नहीं थे बल्कि उन्होंने रामचरित मानस लिखने के अलावा स्वयं बड़ी संख्या में हनुमान मंदिरों की स्थापना की और बड़ी संख्या में ‘अखाड़े’ स्थापित किये। वह जो भी अखाड़ा स्थापित करते वहां बुद्धि और बल के देवता हनुमान जी की मूर्ति को भी स्थापित कर देते थे। इस तरह से अखाड़ों में मूर्ति की स्थापना का श्रेय तुलसीदास को ही जाता है।