कांग्रेस नेता राहुल गांधी को उनके 2019 में “मोदी सरनेम” वाले बयान को लेकर मानहानि केस में गुरुवार को सूरत की एक कोर्ट ने दोषी करार दिया। इसके लिए राहुल को दो साल की जेल की सजा भी सुनाई गई। हालांकि इनके लिए राहत की बात ये रही कि राहुल को तुरंत ही कोर्ट से बेल भी मिल गई। कांग्रेस नेता को 30 दिनों के लिए जमानत देते हुए इस फैसले के खिलाफ उच्च न्यायलय में अपील करने की अनुमति दी गई है।
आपको बता दें कि ये मामला अप्रैल 2019 में राहुल के एक बयान से जुड़ा है, जिसको लेकर बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया था। राहुल गांधी के अपमानजनक बयान से जुड़ी शिकायत की सुनवाई गुरुवार को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट एचएच वर्मा की सूरत कोर्ट में हुई। इस दौरान कोर्ट में पेश होने के लिए राहुल गांधी पहुंचे थे। बता दें कि बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 499 और 500 के तहत मुकदमा दायर किया।
सुनवाी के दौरान राहुल ने जज के सामने कहा कि उनका इरादा गलत नहीं था। मैंने तो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाई थी। वहीं राहुल के वकील ने जज से अपील की कि उनके बयान से किसी को नुकसान नहीं पहुंचा। ऐसे में उनको इस मामले में कम से कम सजा सुनाई जाए। जबकि शिकायतकर्ता पूर्णेश मोदी ने मामले में राहुल गांधी को अधिकतम सजा और जुर्माना देने की मांग की।
क्या है मामला?
ये मामला 2019 लोकसभा चुनाव की है, जब राहुल गांधी ताबड़तोड़ रैली करते हुए पीएम मोदी पर लगातार निशाना साध रहे थे। इसी दौरान एक रैली को संबोधित करते हुए कांग्रेस नेता ने कहा था कि “कैसे सभी चोरों का उपनाम मोदी है?” इस दौरान उन्होंने पीएम मोदी के साथ भगोड़े नीरव मोदी और ललित मोदी के नामों का भी जिक्र किया था।
राहुल के इसी बयान को लेकर बीजेपी विधायक और गुजरात के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने शिकायत दर्ज कराई थी। पूर्णेश ने कहा था कि राहुल ने अपने बयान के जरिए पूरे मोदी समुदाय को बदनाम किया है।
जमानत की प्रक्रिया क्या है?
जमानत की अवधारणा भारतीय आपराधिक कानून का एक मूलभूत घटक होता है। ज़मानत एक व्यक्ति की हिरासत से रिहाई हासिल करने के लिए कानूनी शब्द है। एक आरोपी व्यक्ति की जेल से अस्थायी रिहाई इस शर्त के तहत कि वे अपने मुकदमे या अन्य कानूनी प्रक्रियाओं के लिए फिर से अदालत में पेश होगा, कानूनी संदर्भ में जमानत के रूप में संदर्भित किया जाता है।
जमानत का विचार नियमित जमानत, अंतरिम जमानत, डिफ़ॉल्ट जमानत और विशेष जमानत इसके कई प्रकार हैं। अग्रिम ज़मानत तब होती है जब एक व्यक्ति जो किसी ऐसे अपराध के लिए गिरफ्तारी की संभावना होती है जिसके लिए ज़मानत की अनुमति नहीं है। गिरफ्तारी से पहले, अग्रिम जमानत के लिए अनुरोध प्रस्तुत किया जा सकता है और अगर अदालत निश्चित है कि आवेदक को किसी ऐसे अपराध के लिए हिरासत में लिया जाएगा जो जमानत के अधीन नहीं है, तो वह अनुरोध को स्वीकार कर सकता है।
दोषी पाए जाने और सजा मिलने के बाद अपील दायर करने के लिए किसी व्यक्ति को जमानत दी जा सकती है। अपीलीय अदालत या निचली अदालत ऐसा कर सकती है। क्रिमिनल प्रोसेस कोड का 1973 का संस्करण ऐसे खंडों को संबोधित करता है।
Cr.P.C की धारा 389 (1) और (2) उस परिस्थिति से निपटना जिसमें एक सजायाफ्ता (सजा पाने वाला) व्यक्ति आपराधिक अपील दायर करने के बाद अपीलीय अदालत से जमानत प्राप्त कर सकता है। धारा 389 (3) एक ऐसी परिस्थिति से संबंधित है जिसमें ट्रायल कोर्ट एक सजायाफ्ता अभियुक्त को जमानत दे सकता है, जिससे उसे अपील दायर करने की अनुमति मिल सकती है और इस उदाहरण में ट्रायल कोर्ट के पास अनुरोधित जमानत देने का अधिकार है। लेकिन अपराधी को “अधिकार के अनुसार” ज़मानत पर मुक्त होने के लिए पहले ज़मानत प्राप्त करने के लिए अपनी पात्रता स्थापित करनी होगी; इस खंड का प्राथमिक उद्देश्य दोषी को अपीलीय न्यायालय में अपील करने की अनुमति देना है।
आपको बता दें कि धारा 389 (3) कुछ मामलों में जमानत देने के लिए दोषी ठहराने वाले न्यायालय की शक्ति से संबंधित है। यहां सजायाफ्ता, दोषी ठहराने वाले न्यायालय को संतुष्ट करता है कि वह अपील दायर करना चाहता है। ट्रायल कोर्ट के पास सजा को निलंबित करने का अधिकार भी हो सकता है। बहरहाल, सजा की अवधि तीन साल से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके अलावा, प्रतिवादी को अपील के तहत अदालत में अपील दायर करने की अपनी इच्छा का प्रदर्शन करना चाहिए। फैसले के दिन दोषी पक्ष को बॉन्ड पर बाहर होना चाहिए।