Supreme Court collegium के सामने एक महत्वपूर्ण सवाल सामने आया जहां मुख्य न्यायाधीश ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया। चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाला कॉलेजियम अब ऐसे लोगों के नामों को आगे बढ़ाने से परहेज करेगा, जिनकी परिजन या रिश्तेदार पहले से हाई कोर्ट या फिर उससे उच्चतम न्यायालय के जज हों। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि एक आम धारणा है कि इन वकीलों को पहली पीढ़ी के वकीलों की तुलना में जज बनने की प्रक्रिया में प्राथमिकता मिलती है।
‘जज का बेटा अह जज नहीं बनेगा’ ?
टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर के मुताबिक कॉलेजियम में कुछ जजों की तरफ से कहा गया कि हाईकोर्ट जज बनने के लिए कुछ ऐसे योग्य उम्मीदवार भी हैं जो वर्तमान या पूर्व सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों के करीबी रिश्तेदार हैं। ऐसे उम्मीदवार जज बनने से चूक सकते हैं। उन्हें लगता है कि इससे इन जज बनने के उम्मीदवारों को कोई नुकसान नहीं होगा।
ऐसा इसलिए क्योंकि वो पहले से ही एक सफल वकील हैं और एक वकील के तौर पर काफी नाम कमाने के साथ-साथ खूब पैसा भी कमा रहे हैं। हालांकि, रिपोर्ट में यह नहीं बताया गया है कि पूर्व जजों के रिश्तेदारों को नई लिस्ट में शामिल किया गया है या नहीं।
पहली बार जूनियर जजों और वकीलों से सिफासिश
लीग से हटते हुए पहली बार हाईकोर्ट कॉलेजियम की सिफारिश वाले जूनियर जजों और वकीलों से मिला। जिसके बाद ऐतिहासिक फैसला लिया गया। इससे नए जजों को आगे आने का मौका मिलेगा। मालूम हो कि यह पहला मौका है जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने हाईकोर्ट के कॉलेजियम द्वारा जज बनने के लिए सिफारिश कर भेजे गए वकीलों और जिला जजों के साथ बातचीत की है।
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