Public Accounts Committee Parliament: लोक लेखा समिति (PAC) भारत की संसद की एक महत्वपूर्ण संसदीय समिति है, जिसका मुख्य उद्देश्य सरकारी वित्तीय प्रबंधन पर निगरानी रखना है। यह समिति सरकार के खर्चों की जाँच करती है और इस बात को सुनिश्चित करती है कि जनता का धन ठीक प्रकार से उपयोग हो रहा है या नहीं। इसका गठन पहली बार 1921 में हुआ था और तभी से यह भारत के वित्तीय पारदर्शिता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती आ रही है।
लोक लेखा समिति का गठन और संरचना
लोक लेखा समिति का गठन भारतीय संविधान के अनुच्छेद 149 के तहत किया जाता है। यह एक स्थायी समिति है, जो हर वर्ष संसद के द्वारा पुनर्गठित की जाती है। लोक लेखा समिति में कुल 22 सदस्य होते हैं, जिनमें से 15 लोकसभा और 7 राज्यसभा से चुने जाते हैं। यह समिति अध्यक्ष लोकसभा द्वारा चुने गए सदस्यों में से ही एक सदस्य को बनाया जाता है, और प्रायः विपक्ष के सदस्यों में से अध्यक्ष चुना जाता है ताकि पारदर्शिता सुनिश्चित हो सके।
समिति का कार्यक्षेत्र | Public Accounts Committee Parliament
लोक लेखा समिति मुख्यतः भारत सरकार की लेखा और ऑडिट रिपोर्ट की जांच करती है, जिन्हें नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) के द्वारा संसद में पेश किया जाता है। CAG की रिपोर्टें सरकारी खर्चों में हुई त्रुटियों, अनियमितताओं, या भ्रष्टाचार की जानकारी प्रदान करती हैं, जिनकी जांच PAC के द्वारा की जाती है। इसके अतिरिक्त, PAC निम्नलिखित कार्यों को भी संपन्न करती है:
सार्वजनिक निधियों का उपयोग: समिति यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा संसद से स्वीकृत बजट और वित्त का उपयोग सही ढंग से हो रहा है और सरकारी योजनाओं पर खर्च किया जा रहा पैसा कानून और प्रावधानों के अनुसार ही हो रहा है।
लेखा और ऑडिट रिपोर्ट की जांच: लोक लेखा समिति का मुख्य कार्य नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) द्वारा तैयार की गई सरकारी लेखा रिपोर्टों की जांच करना है। यह रिपोर्टें सरकार के खर्चों में गड़बड़ियों या अनियमितताओं की जानकारी देती हैं। PAC इन रिपोर्टों का अध्ययन करती है और सरकार से आवश्यक स्पष्टीकरण मांगती है।
अनुचित व्यय की जाँच: PAC यह देखती है कि सरकारी विभागों ने बजट की सीमा के भीतर खर्च किया है या नहीं। यदि कोई विभाग बजट से अधिक खर्च करता है, तो समिति इसका विश्लेषण करती है और सरकार से स्पष्टीकरण मांगती है।
सरकारी योजनाओं की कार्यक्षमता की जांच: यह समिति यह सुनिश्चित करती है कि सरकारी योजनाएं सही दिशा में चल रही हैं और उनके लिए आवंटित राशि का सही तरीके से उपयोग हो रहा है।
जवाबदेही और पारदर्शिता: लोक लेखा समिति यह सुनिश्चित करती है कि सरकार अपने कार्यों के लिए जवाबदेह है और वित्तीय पारदर्शिता का पालन हो रहा है। यह समिति सरकार से सीधे प्रश्न पूछ सकती है और उससे सही जवाब मांग सकती है।
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समिति की कार्यप्रणाली:
लोक लेखा समिति का कार्य अत्यधिक तकनीकी और विस्तृत होता है। इसकी कार्यप्रणाली निम्नलिखित चरणों में बंटी होती है:
CAG की रिपोर्ट का अध्ययन: जब भी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक (CAG) अपनी रिपोर्ट संसद में पेश करते हैं, तो यह रिपोर्ट PAC को भेज दी जाती है। PAC इस रिपोर्ट का गहन अध्ययन करती है और जिन बिंदुओं पर उसे गड़बड़ी या अनियमितता नजर आती है, उन पर चर्चा करती है।
विभागों से स्पष्टीकरण: यदि किसी रिपोर्ट में किसी विभाग के वित्तीय लेन-देन में गड़बड़ी पाई जाती है, तो PAC उस विभाग के अधिकारियों को बुलाकर स्पष्टीकरण मांगती है। इस दौरान समिति सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों, वित्त मंत्रालय, और अन्य संबंधित विभागों से जानकारी लेती है।
सरकारी विभागों से पूछताछ: PAC के सामने संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित होकर समिति के प्रश्नों का उत्तर देते हैं। समिति द्वारा उठाए गए सवालों पर सरकार को संतोषजनक उत्तर देना पड़ता है।
रिपोर्ट तैयार करना: सभी आवश्यक जानकारी इकट्ठा करने और उसकी जांच करने के बाद, PAC अपनी रिपोर्ट तैयार करती है। यह रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत की जाती है, जिसमें सरकारी खर्चों की गड़बड़ियों और अनियमितताओं के बारे में विस्तृत जानकारी होती है। साथ ही, समिति सरकार को आवश्यक सुधारात्मक सुझाव भी देती है।
संसद में रिपोर्ट पेश करना: PAC द्वारा तैयार की गई रिपोर्ट संसद में पेश की जाती है। इसके बाद, संसद में उस पर चर्चा होती है और आवश्यक कार्रवाई के लिए सरकार से जवाब मांगा जाता है। सरकार को यह सुनिश्चित करना पड़ता है कि समिति द्वारा दिए गए सुझावों का पालन किया जाए।
समिति के अधिकार:
लोक लेखा समिति के पास कई महत्वपूर्ण अधिकार होते हैं, जिनके माध्यम से वह अपने कार्यों को प्रभावी रूप से संपन्न करती है। यह अधिकार निम्नलिखित हैं:
संसदीय विशेषाधिकार: लोक लेखा समिति को संसद के विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। इसके तहत, समिति सरकारी विभागों से आवश्यक दस्तावेज, रिकॉर्ड और जानकारी मांग सकती है।
अधिकारियों को तलब करना: समिति किसी भी सरकारी विभाग के अधिकारी या संबंधित व्यक्ति को तलब कर सकती है और उनसे वित्तीय गड़बड़ियों या अनियमितताओं के बारे में स्पष्टीकरण मांग सकती है।
सीधी कार्रवाई के सुझाव देना: PAC सरकारी योजनाओं और उनके खर्च में पाई गई गड़बड़ियों पर सीधी कार्रवाई करने का सुझाव दे सकती है। इसके तहत, यदि किसी योजना में भ्रष्टाचार या अनियमितता पाई जाती है, तो समिति कार्रवाई करने के लिए सरकार को कह सकती है।
सुधारात्मक कदम की सिफारिश: समिति केवल जांच ही नहीं करती, बल्कि वह सुधारात्मक कदम भी सुझाती है। यह सुनिश्चित करती है कि भविष्य में ऐसी वित्तीय गड़बड़ियों से बचा जा सके और सरकारी धन का सही उपयोग हो।
लोक लेखा समिति की सीमाएँ:
हालांकि PAC के पास कई महत्वपूर्ण अधिकार हैं, लेकिन इसकी कार्यक्षमता और प्रभावशीलता के कुछ सीमित पहलू भी हैं:
नीति संबंधी मामलों में हस्तक्षेप नहीं: PAC केवल सरकार के खर्च और लेखा की जांच करती है, लेकिन यह सरकार की नीतियों पर कोई टिप्पणी नहीं करती। इसका कार्य केवल व्यय के हिसाब से होता है, न कि नीतिगत निर्णयों की जांच करना।
न्यायिक शक्ति का अभाव: PAC को किसी भी प्रकार की न्यायिक शक्ति प्राप्त नहीं है। यह समिति केवल जांच कर सकती है और सुधारात्मक सुझाव दे सकती है, लेकिन यह खुद किसी अधिकारी या विभाग पर सीधी कार्रवाई नहीं कर सकती।
अनुपालन पर निर्भरता: PAC के दिए गए सुझावों और सिफारिशों का पालन करना अनिवार्य नहीं होता। सरकार इन सुझावों को मानने के लिए बाध्य नहीं होती, जिससे समिति की अनुशंसाओं का प्रभाव सीमित हो सकता है।
लोक लेखा समिति (PAC) भारतीय लोकतंत्र के वित्तीय पारदर्शिता और उत्तरदायित्व को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यह समिति सरकारी खर्चों की जांच कर यह सुनिश्चित करती है कि जनता का धन सही तरीके से उपयोग हो रहा है या नहीं। हालांकि इसके पास न्यायिक अधिकार नहीं हैं, लेकिन इसकी सिफारिशें सरकार को उत्तरदायी बनाती हैं और सार्वजनिक धन के सही उपयोग को सुनिश्चित करती हैं।
समिति की कार्यप्रणाली और अधिकार इसे सरकार की जवाबदेही तय करने के लिए एक सशक्त उपकरण बनाते हैं। लोक लेखा समिति का काम सरकारी खर्चों की जाँच और वित्तीय अनियमितताओं को उजागर करना है, जो किसी भी लोकतांत्रिक देश के सुशासन के लिए आवश्यक है।