Friday, November 22, 2024
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Pension : केंद्र और राज्य में आखिर कौन उठा रहा है पेंशन का ज्यादा बोझ?

Pension: भारत में पेंशन योजना, सरकारी कर्मचारियों और उनके परिवारों के लिए एक महत्वपूर्ण वित्तीय सुरक्षा है। यह योजना एक कर्मचारी के सेवा से सेवानिवृत्त होने के बाद उसके जीवन को आर्थिक रूप से सुरक्षित बनाती है। हालांकि, पेंशन के वित्तीय बोझ को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच हमेशा से ही एक बहस रही है कि इस बोझ का बड़ा हिस्सा कौन उठाता है। इस लेख में हम केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा पेंशन योजनाओं के तहत उठाए जा रहे वित्तीय बोझ का विश्लेषण करेंगे और यह जानने की कोशिश करेंगे कि कौन अधिक दबाव में है।

क्या हैं पेंशन प्रणाली

स्वतंत्रता के बाद से ही भारत में पेंशन प्रणाली की शुरुआत हो गई थी। 1950 के दशक में सरकार ने अपने कर्मचारियों के लिए पुरानी पेंशन योजना (OPS) शुरू की थी, जिसमें सरकार द्वारा वित्त पोषित पेंशन का प्रावधान था। इस योजना के तहत, सरकारी कर्मचारी के सेवा सेवानिवृत्ति के बाद उसे जीवनभर पेंशन दी जाती थी, जो उसकी अंतिम वेतन का एक निश्चित प्रतिशत होता था।

हालांकि, 2004 में केंद्र सरकार ने पुरानी पेंशन योजना को बंद कर दिया और नई पेंशन योजना (NPS) को लागू किया। नई पेंशन योजना में पेंशन का बोझ आंशिक रूप से कर्मचारी और आंशिक रूप से सरकार द्वारा वहन किया जाता है। इस योजना के अंतर्गत सरकार द्वारा एक निश्चित प्रतिशत राशि कर्मचारी के पेंशन खाते में जमा की जाती है, जबकि एक निश्चित राशि कर्मचारी के वेतन से काटी जाती है।

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केंद्र सरकार का पेंशन बोझ |Pension

केंद्र सरकार के तहत कार्यरत कर्मचारी, जैसे कि सशस्त्र बल, केंद्रीय पुलिस बल, रेलवे, और अन्य केंद्रीय सरकारी विभागों के कर्मचारियों के पेंशन का वित्तीय बोझ केंद्र सरकार पर आता है। 2004 में नई पेंशन योजना (NPS) की शुरुआत के बावजूद, जो लोग पहले से OPS के तहत थे, उन्हें अभी भी पुरानी पेंशन योजना के तहत पेंशन मिल रही है। इस कारण से, केंद्र सरकार पर पेंशन का बोझ बहुत अधिक है।

वित्तीय वर्ष 2023-24 के बजट के अनुसार, केंद्र सरकार ने पेंशन के लिए लगभग 2.10 लाख करोड़ रुपये का प्रावधान किया था। यह राशि बजट का एक बड़ा हिस्सा है और सरकार की वित्तीय स्थिति पर एक बड़ा प्रभाव डालती है। विशेष रूप से, रक्षा पेंशन का बोझ बहुत अधिक है, क्योंकि सशस्त्र बलों के लिए पेंशन का प्रावधान एक बड़ी राशि लेता है।

राज्य सरकारों का पेंशन बोझ | Pension

राज्य सरकारों के कर्मचारियों के पेंशन का बोझ भी भारी है। जबकि कुछ राज्यों ने नई पेंशन योजना को अपनाया है, कुछ ने इसे अस्वीकार कर दिया है और अब भी पुरानी पेंशन योजना का पालन कर रहे हैं। ऐसे राज्यों में पुरानी पेंशन योजना के तहत पेंशन का बोझ राज्य सरकारों पर आता है, जो उनकी वित्तीय स्थिति को प्रभावित करता है।

राज्यों का पेंशन खर्च उनके बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, और राजस्थान जैसे बड़े राज्यों का पेंशन खर्च उनके कुल बजट का 10-15% तक होता है। यहां तक कि छोटे राज्यों, जैसे हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में भी, पेंशन खर्च उनकी वित्तीय स्थिति पर बड़ा प्रभाव डालता है।

केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद

पेंशन के बोझ को लेकर केंद्र और राज्य सरकारों के बीच विवाद हमेशा से रहा है। राज्य सरकारें अक्सर यह तर्क देती हैं कि केंद्र सरकार ने नई पेंशन योजना लागू करके अपने पेंशन खर्च को कम किया है, जबकि राज्य सरकारों को अभी भी पुराने पेंशन योजना के तहत अधिक खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, राज्य सरकारों का कहना है कि केंद्र सरकार ने राज्यों को अपने कर्मचारियों के पेंशन खर्च में हिस्सा नहीं दिया है, जिससे उनका वित्तीय बोझ बढ़ गया है।

वहीं, केंद्र सरकार का कहना है कि उसने नई पेंशन योजना के तहत राज्य सरकारों को भी राहत देने का प्रयास किया है, लेकिन कुछ राज्यों ने इसे अपनाने में रुचि नहीं दिखाई। इसके अलावा, केंद्र सरकार यह भी तर्क देती है कि राज्यों को अपनी वित्तीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपने पेंशन खर्च को नियंत्रित करना चाहिए।

वित्तीय स्थिरता और समाधान

पेंशन का बोझ सरकारों की वित्तीय स्थिरता के लिए एक बड़ी चुनौती है। यदि पेंशन खर्च को समय पर नियंत्रित नहीं किया गया तो यह भविष्य में सरकारों की वित्तीय स्थिति को और अधिक कठिन बना सकता है। इसके लिए, केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर समाधान तलाशने की जरूरत है।

कुछ संभावित समाधान निम्नलिखित हो सकते हैं:

नई पेंशन योजना का अधिकतम विस्तार: राज्य सरकारों को नई पेंशन योजना को अपनाना चाहिए और कर्मचारियों को इसमें शामिल होने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इससे पेंशन का बोझ कम हो सकता है।

पेंशन फंड का निर्माण: केंद्र और राज्य सरकारों को एक पेंशन फंड का निर्माण करना चाहिए, जहां पेंशन के लिए अलग से धनराशि जमा की जा सके, जिससे पेंशन भुगतान के लिए वित्तीय संकट का सामना न करना पड़े।

संविधानिक संशोधन: केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पेंशन के बोझ को विभाजित करने के लिए एक संवैधानिक संशोधन किया जा सकता है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि दोनों सरकारें अपने-अपने हिस्से के बोझ को उचित रूप से वहन करें।

पेंशन योजना की पुन: समीक्षा: पेंशन योजना की समीक्षा करते हुए नई वित्तीय योजनाओं का प्रस्ताव रखा जा सकता है, जिससे पेंशन का बोझ नियंत्रित किया जा सके।

केंद्र और राज्य सरकारों के बीच पेंशन का बोझ एक विवादित मुद्दा है। दोनों ही सरकारों पर पेंशन का बड़ा बोझ है, लेकिन इसे संतुलित करने के लिए आवश्यक है कि वे मिलकर समाधान तलाशें। नई पेंशन योजना का अधिकतम विस्तार, पेंशन फंड का निर्माण, और पेंशन योजना की पुन: समीक्षा जैसे उपायों से इस वित्तीय बोझ को नियंत्रित किया जा सकता है। अंततः, पेंशन एक कर्मचारी के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, और इसे सुनिश्चित करना सरकारों की प्राथमिक जिम्मेदारी है।

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