Recently updated on July 25th, 2024 at 12:41 pm
One Nation One Election : केंद्र की मोदी सरकार देश को लगातार प्रगति की दिशा में लेकर जा रही है। ” एक देश एक चुनाव ” (वन नेशन वन इले्शन) की पहल कर केंद्र की मोदी सरकार ने फिर एक बार बड़ा कदम उठाया है। एक देश एक चुनाव को लेकर समिति का गठन इस दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम है। ” एक देश एक चुनाव ” जैसे महत्वपूर्ण कार्य काफी पहले ही होने चाहिए थे पर पहले की सरकारों ने अपने स्वार्थ और अपने वोट बैंक की राजनीति को अहमियत देते हुए इसे तवज्जों नहीं दी। लेकिन अब जब देश में एक मजबूत और दृढ़ इच्छाशक्ति वाली सरकार है तो ये कार्य भी सबके सहयोग से आसानी से हो जाएगा। ” वन नेशन वन इलेक्शन ” को लेकर समिति का गठन कर दिया गया है और देश के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को इसका अध्यक्ष बनाया गया है। एक देश एक चुनाव (वन नेशन वन इले्शन) आज के समय की मांग है। मोदी सराकार के हर फैसले की तरह ही विपक्ष को इससे ऐतराज है और विपक्ष ने इसका विरोध करना भी शुरू कर दिया है। ये तो होना ही था क्योकि मोदी सरकार का कोई भी फैसला जो देशहित में होता है वो विपक्ष को नागवार गुजरता है। इसके पिछे केवल और केवल राजनीति ही नजर आती है। मोदी सरका ने चाहें जम्मू कश्मीर से धारा 370 को हटाया हो या फिर नोटबंदी की हो या फिर कोरोना के समय दुनिया के कई देशों को मुफ्त वैक्सीन दी हो ये सभी फैसले विपक्ष की वोटबैंक की राजनीति में फिट नहीं बेठते थे। इसलिए उन्होंने इसका विरोध किया। अब जब मोदी सरकार ने ” एक देश एक चुनाव ” की ओर अपना कदम बढ़ाया है तो इसके विरोध में भी विपक्ष उतर गया है। लेकिन दोस्तों हमें देश का एक जिम्मेदार नागरिक होने की नाते राजनीति से परे हटकर ये जरूर जानना चाहिए की आखिर ” एक देश एक चुनाव ” से क्या फायदा होगा।
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इस बात में कोई शंका किसी को नहीं होनी चाहिए की ” एक देश एक चुनाव ” आज के समय की मांग है। ये कदम देश के हित में है। दोस्तों, अगर ” एक देश एक चुनाव ” होता है तो इसका सबसे बड़ा फायदा ये होगा इससे धन की बचत होगी। इसके साथ ही इससे समय की बचत और परेशानियां भी कम होंगी। रिपोर्टों के अनुसार, 2019 के लोकसभा चुनावों में 60,000 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे। इस राशि में चुनाव लड़ने वाले राजनीतिक दलों द्वारा खर्च की गई राशि और चुनाव आयोग ऑफ इंडिया द्वारा चुनाव कराने में खर्च की गई राशि शामिल है। दोस्तों, थोड़ा पीछे चलते हैं और बात करते हैं साल 1951-1952 में हुए लोकसभा चुनाव की। 1951 -1952 में लोकसभा चुनाव के दौरान 11 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इस तरह अगर देशे में एक साथ चुनाव विधानसभा और लोकसभा चुनाव कराए जाते हैं तो इन खर्चों को कम किया जा सकता है और देश के विकास मे लगाया जा सकता है। इसके अलावा, एक साथ चुनाव कराने का एक फायदा ये है कि इससे पूरे देश में प्रशासनिक व्यवस्था में दक्षता भी बढ़ेगी। दोस्तों, अगर गौर करें तो अलग-अलग मतदान के दौरान प्रशासनिक व्यवस्था की गति काफी धीमी हो जाती है। साथ ही सामान्य प्रशासनिक कर्तव्य चुनाव से प्रभावित होते हैं क्योंकि अधिकारी मतदान कर्तव्यों में संलग्न होते हैं।
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इतना ही नहीं अगर ” एक देश एक चुनाव” होता है तो इससे केंद्र और राज्य सरकारों की नीतियों और कार्यक्रमों में निरंतरता सुनिश्चित करने में भी मदद मिलेगी। दोस्तों, आपने देखा होगा की वर्तमान में, जब भी चुनाव होने वाले होते हैं तो आदर्श आचार संहिता लागू की जाती है। इससे उस अवधि के दौरान लोक कल्याण के लिए नई परियोजनाओं के शुरू पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। ऐसे में अगर ” एक देश एक चुनाव ” होता है तो इससे विकास कार्यों पर असर नहीं पड़ेगा और देश उतनी ही तीव्र गति से विकास करेगा जैसा की सामान्य दिनों में करता है।माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मौदी कई मौकों पर ये इस बात का जिक्र कर चुकें हैं कि ” एक देश एक चुनाव ” से देश के संसाधनों की बचत होगी। इसके साथ ही विकास की गति भी धीमी नहीं पड़ेगी। इस तरह एक देश एक चुनाव के कई अन्य फायदे हैं जो देश को आगे ले जाने में मददगार साबित होंगे। लेकिन विपक्षी दलों की आदत सरकार के हर फैसले का विरोघ करने की हो गई है। दल से बड़ा देश होता है और हम सब की जिम्मेदारी है की हम राजनीति और आत्म स्वार्थ से उपर उठकर देश के बारे में सोचें। एक देश एक चुनाव देश के हित में है और ये आज के समय की मांग है।