Friday, November 22, 2024
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Old Pension Scheme: क्या ओपीएस चुनावी समीकरण बनाने और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा

Old Pension Scheme: हरियाणा में आगामी विधानसभा चुनाव के संदर्भ में ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) का मुद्दा राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। ओपीएस एक ऐसा मुद्दा बन गया है, जो न केवल कर्मचारियों के बीच चर्चा का विषय है, बल्कि राजनीतिक दलों के लिए भी एक प्रमुख चुनावी एजेंडा बन चुका है। केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नई यूनाइटेड पेंशन स्कीम (यूपीएस) ने इस मुद्दे को और भी गरम कर दिया है, जिससे कर्मचारी वर्ग और विपक्षी दल दोनों ही सरकार के खिलाफ एकजुट हो गए हैं।

ओल्ड पेंशन स्कीम (ओपीएस) की अहमियत

ओल्ड पेंशन स्कीम, जिसे ओपीएस के नाम से जाना जाता है, कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षा का प्रतीक रही है। इस योजना के तहत कर्मचारियों को सेवानिवृत्ति के बाद नियमित पेंशन मिलती है, जो उनकी पूरी सेवा अवधि के दौरान उनके वेतन पर आधारित होती है। यह योजना कर्मचारियों को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती है और उन्हें अपने बुढ़ापे के लिए चिंतामुक्त करती है। दूसरी ओर, नई पेंशन स्कीम (एनपीएस) में पेंशन राशि बाजार के उतार-चढ़ाव पर निर्भर करती है, जिससे कर्मचारियों के बीच असुरक्षा की भावना उत्पन्न होती है। यही कारण है कि कर्मचारी ओपीएस की बहाली के लिए लगातार संघर्ष कर रहे हैं।

Old Pension Scheme

केंद्र सरकार की नई पहल: यूनाइटेड पेंशन स्कीम | Old Pension Scheme

हाल ही में, केंद्र सरकार ने नई यूनाइटेड पेंशन स्कीम (यूपीएस) को पेश किया है, जिसे एनपीएस में सुधार के रूप में देखा जा रहा है। हालांकि, सरकार इसे एक बेहतर विकल्प के रूप में पेश कर रही है, लेकिन कर्मचारियों और विपक्षी दलों का मानना है कि यह केवल एक छलावा है। कर्मचारियों का कहना है कि यदि एनपीएस वास्तव में अच्छा होता, तो सरकार को यूपीएस लाने की आवश्यकता नहीं होती। यूपीएस को लेकर कर्मचारियों में व्यापक असंतोष है, और उनका स्पष्ट संदेश है कि उन्हें केवल ओपीएस चाहिए, कोई नई योजना स्वीकार्य नहीं है।

Old Pension Scheme

राजनीतिक दलों का क्या कहना हैं ? Old Pension Scheme

हरियाणा के आगामी विधानसभा चुनाव में ओपीएस का मुद्दा प्रमुख भूमिका निभा रहा है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) लोकसभा चुनाव में कर्मचारियों की नाराजगी का खामियाजा भुगत चुकी है, जहां उसे पांच सीटें गंवानी पड़ीं। इस बार भाजपा ने कर्मचारियों को खुश करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं, जैसे कि कैशलेस मेडिकल सुविधा और डीए में वृद्धि, लेकिन ओपीएस के मुद्दे पर पार्टी ने चुप्पी साध रखी है। भाजपा के नेता इस मुद्दे पर बोलने से बच रहे हैं और इसे केंद्र सरकार का मामला बता रहे हैं।

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वहीं, कांग्रेस पार्टी ने ओपीएस के मुद्दे को खुलकर अपनाया है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने वादा किया है कि यदि उनकी सरकार बनती है, तो पहली कलम से ओपीएस को बहाल किया जाएगा। हिमाचल प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी कांग्रेस ने इसी मुद्दे पर चुनाव जीते हैं और वहां की सरकारों ने ओपीएस को बहाल भी किया है। इससे कांग्रेस को उम्मीद है कि हरियाणा में भी यह मुद्दा चुनावी जीत का कारण बनेगा।

कर्मचारियों का आंदोलन और रणनीति

कर्मचारी संगठनों ने ओपीएस की बहाली के लिए बड़े पैमाने पर आंदोलन शुरू किया है। 1 सितंबर को पंचकूला में राज्यस्तरीय विरोध रैली का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें राज्य के सभी जिलों से कर्मचारी भाग लेंगे। इससे पहले दिल्ली और पंचकूला में भी बड़ी रैलियों का आयोजन किया जा चुका है। कर्मचारियों ने साफ कर दिया है कि जब तक ओपीएस बहाल नहीं होगी, वे चैन से नहीं बैठेंगे। कर्मचारियों का यह भी कहना है कि यूपीएस के नाम पर उन्हें गुमराह करने की कोशिश की जा रही है, लेकिन वे सरकार की मंशा को अच्छी तरह समझते हैं।

राजनीतिक परिणाम

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में ओपीएस का मुद्दा महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा। कर्मचारी वर्ग, जो एक बड़ा वोट बैंक है, ओपीएस के समर्थन में खड़ा है और भाजपा के खिलाफ खुलकर विरोध करने की तैयारी में है। भाजपा के लिए यह एक गंभीर चुनौती है, क्योंकि लोकसभा चुनाव में भी कर्मचारियों की नाराजगी के कारण पार्टी को नुकसान उठाना पड़ा था।

कांग्रेस, जो इस मुद्दे पर खुलकर कर्मचारियों के साथ खड़ी है, को उम्मीद है कि वह इस बार भी कर्मचारियों के समर्थन से चुनाव जीतने में सफल होगी। भूपेंद्र सिंह हुड्डा द्वारा की गई ओपीएस बहाली की घोषणा ने कांग्रेस के पक्ष में माहौल बना दिया है, और यदि कांग्रेस सरकार बनाने में सफल होती है, तो ओपीएस की बहाली सुनिश्चित हो सकती है।

हरियाणा के विधानसभा चुनाव में ओपीएस का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए एक प्रमुख चुनावी एजेंडा बन गया है। भाजपा जहां इस मुद्दे पर बचाव की मुद्रा में है, वहीं कांग्रेस ने इसे अपने पक्ष में भुनाने की पूरी कोशिश की है। कर्मचारियों का आंदोलन और उनकी एकजुटता इस मुद्दे को और भी गरम बनाएगी, जिससे विधानसभा चुनाव के परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। कर्मचारियों का समर्थन किस दल को मिलता है, यह देखना दिलचस्प होगा, क्योंकि ओपीएस के मुद्दे पर चुनावी समीकरण बनते और बिगड़ते नजर आ रहे हैं।

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