गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर एक बड़ा फैसला सुनाया है। इस निर्णय के तहत अब इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष या सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता और मुख्य न्यायधीश (CJI) का पैनल करेगा। अदालत के आदेश के अनुसार ये कमेटी नामों की सिफारिश राष्ट्रपति को करेगी, जिसके बाद वो इस पर अपनी मुहर लगाएंगें।
‘चुनाव में निष्पक्षता जरूरी’
उच्च न्यायलय द्वारा स्पष्ट किया गया कि जब तक संसद द्वारा कोई कानून पारित नहीं किया जाता, तब तक मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्त की नियुक्ति को लेकर ये प्रक्रिया ही लागू रहेगी। आपको बता दें कि कोर्ट ने चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर अपना फैसला सुनाया है। मामले की सुनवाई कर रही बेंच ने कहा है कि लोकतंत्र में चुनाव की पवित्रता बनाए रखना जरूरी होना है, नहीं तो इसके परिणाम काफी खतरनाक होते हैं। अदालत ने ये भी कहा कि लोकतंत्र लोगों की इच्छा से जुड़ा है। निश्चित रूप से चुनाव निष्पक्ष होने चाहिए।
अब तक क्या थी नियुक्ति की प्रक्रिया?
चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया की बात करें तो इसको लेकर देश में कोई कानून नहीं है। अभी तक नियुक्ति की पूरी प्रक्रिया में केंद्र सरकार की भूमिका ही अहम होती थी। इनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल की सिफारिश के बाद राष्ट्रपति की ओर से की जाती है। आमतौर पर देखा गया है कि इस सिफारिश को राष्ट्रपति की मंजूरी मिल ही जाती है। इस प्रक्रिया में पूरा रोल सरकार का ही होता है। यही कारण है कि चुनाव आयुक्त की नियुक्त पर अक्सर ही सवाल उठते रहते हैं।
आपको बता दें कि चुनाव आयुक्त का एक तय कार्यकाल होता है। इसके तहत ये नियुक्ति द्वारा छह वर्ष के कार्यकाल के लिए या 65 वर्ष की आयु, जो भी पहले हो, तब तक के लिए की जाती है। कार्यकाल पूरा होने से पहले चुनाव आयुक्त इस्तीफा भी दे सकते हैं या फिर उनको हटाया जा सकता है, जिसकी शक्ति संसद के पास है।