Mount Everest height increasing: माउंट एवरेस्ट, दुनिया का सबसे ऊंचा पर्वत, जिसे फतह करने का सपना हजारों पर्वतारोही देखते हैं, एक अद्भुत प्राकृतिक संरचना है जो समय के साथ अपनी ऊंचाई बढ़ा रहा है। इस बात से बहुत से लोग अनजान हैं कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई हर साल थोड़ा बढ़ रही है। इस बढ़ती ऊंचाई के पीछे कई वैज्ञानिक कारण हैं, जिनमें टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियाँ, भूकंप और आईसोस्टैटिक रीबाउंड प्रमुख हैं। आइए, इस लेख में विस्तार से समझते हैं कि माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई आखिर क्यों बढ़ रही है।
टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियाँ: मुख्य कारण
पृथ्वी की सतह कई विशाल टेक्टोनिक प्लेटों से मिलकर बनी हुई है, जो लगातार गतिशील हैं। हिमालय पर्वतमाला का निर्माण भारतीय प्लेट और यूरेशियन प्लेट के टकराने से हुआ था। यह दोनों प्लेटें अभी भी धीरे-धीरे एक-दूसरे की ओर बढ़ रही हैं, जिसके कारण माउंट एवरेस्ट समेत पूरे हिमालय की ऊंचाई में लगातार वृद्धि हो रही है।
टेक्टोनिक प्लेटों की यह गतिविधि लाखों वर्षों से जारी है और यही कारण है कि हिमालय जैसे विशाल पर्वतों का निर्माण हुआ। चूंकि ये प्लेटें आज भी एक-दूसरे की ओर बढ़ रही हैं, इसलिए एवरेस्ट की ऊंचाई में प्रतिवर्ष थोड़ा इजाफा देखा जा सकता है।
भूकंप का प्रभाव
हिमालय क्षेत्र में भूकंप की संभावना अधिक होती है, जो माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई को प्रभावित कर सकता है। जब पृथ्वी की टेक्टोनिक प्लेटें अधिक तनाव झेलती हैं, तो भूकंप आते हैं, जिससे पर्वतों की ऊंचाई में बदलाव हो सकता है। भूकंप के दौरान प्लेटों के बीच होने वाली हलचल से माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई कुछ मिलीमीटर से लेकर कुछ सेंटीमीटर तक बढ़ सकती है।
वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप ने माउंट एवरेस्ट पर गहरा असर डाला था। उस समय, वैज्ञानिकों ने पाया कि भूकंप के कारण एवरेस्ट की ऊंचाई में मामूली बदलाव हुआ था। इस प्रकार, हिमालय क्षेत्र में होने वाले भूकंप भी माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में वृद्धि का एक कारण माने जा सकते हैं।
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आईसोस्टैटिक रीबाउंड का प्रभाव
आईसोस्टैटिक रीबाउंड एक भौगोलिक प्रक्रिया है जो माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में वृद्धि का कारण बन रही है। जब हिमालय क्षेत्र में बर्फ की मोटी परत जमी हुई थी, तो इसका भार पृथ्वी की पपड़ी पर दबाव डाल रहा था, जिससे पपड़ी नीचे की ओर धँसी हुई थी। लेकिन पिछले कुछ दशकों में ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालय की बर्फ तेजी से पिघल रही है।
बर्फ के पिघलने से पृथ्वी की पपड़ी पर दबाव कम हो रहा है, और इसके परिणामस्वरूप पपड़ी ऊपर की ओर उठ रही है। इस प्रक्रिया को आईसोस्टैटिक रीबाउंड कहते हैं। जब पृथ्वी की पपड़ी ऊपर उठती है, तो माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई भी थोड़ी-थोड़ी बढ़ रही है। हालांकि, यह प्रक्रिया बहुत धीमी है, लेकिन इसका प्रभाव लंबे समय तक माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में वृद्धि के रूप में देखा जा सकता है।
एवरेस्ट की ऊंचाई में वृद्धि का वैज्ञानिक मापन
वैज्ञानिक समय-समय पर माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का मापन करते रहते हैं। आधुनिक तकनीकों और सैटेलाइट डेटा का उपयोग करके पर्वत की ऊंचाई का बहुत सटीकता से पता लगाया जा सकता है। वर्ष 2020 में नेपाल और चीन के संयुक्त सर्वेक्षण के अनुसार, माउंट एवरेस्ट की आधिकारिक ऊंचाई 8,848.86 मीटर है, जो पिछली मापों की तुलना में थोड़ी अधिक है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि हर वर्ष माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में लगभग 3 से 4 मिलीमीटर की वृद्धि होती है। हालांकि, यह बहुत ही छोटा इजाफा है, लेकिन यह दर्शाता है कि पृथ्वी की प्राकृतिक प्रक्रियाएं कितनी सक्रिय हैं।
माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई में वृद्धि का मुख्य कारण टेक्टोनिक प्लेटों की गतिविधियाँ हैं, जिनके कारण हिमालय के पर्वत हर साल थोड़े ऊंचे हो रहे हैं। इसके अलावा, भूकंप और आईसोस्टैटिक रीबाउंड जैसी प्रक्रियाएँ भी एवरेस्ट की ऊंचाई में बदलाव ला सकती हैं। यह वृद्धि छोटे पैमाने पर होती है, लेकिन यह पृथ्वी के भूगर्भीय इतिहास और इसकी गतिशीलता का प्रतीक है।
इस प्रकार, माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई का बढ़ना पृथ्वी की निरंतर गतिशीलता का परिचायक है। यह हमें प्रकृति के बदलते स्वरूप और इसके प्रभावों की जानकारी देता है, जो कि विज्ञान और भूगोल के लिए अध्ययन का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र है।