Karwa Chauth 2024 : करवा चौथ हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण और पवित्र पर्व है। हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को यह पर्व मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, अच्छे स्वास्थ्य और सुखी वैवाहिक जीवन के लिए निर्जला व्रत रखती हैं।
इस व्रत में दिनभर कुछ भी खाना-पीना वर्जित होता है और शाम को चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं अपना व्रत खोलती हैं। यह पर्व स्त्रियों के समर्पण, आस्था और प्रेम का प्रतीक माना जाता है, और पूरे भारत में इसे बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। इस साल, 20 अक्तूबर 2024 को करवा चौथ का पर्व पड़ रहा है।
हालांकि, करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों के लिए होता है और इसे करने के लिए कुछ विशेष नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। आमतौर पर सभी सुहागिन स्त्रियां यह व्रत करती हैं, लेकिन कुछ विशेष परिस्थितियों में स्त्रियों को यह व्रत करने से परहेज करना चाहिए। आइए जानते हैं, किन महिलाओं को करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए।
1. गर्भवती महिलाएं
गर्भवती महिलाओं के लिए करवा चौथ का व्रत रखने से परहेज करना चाहिए। गर्भावस्था में शरीर को अतिरिक्त पोषण की जरूरत होती है। इस स्थिति में निर्जला व्रत रखना, यानी बिना भोजन और पानी के पूरे दिन रहना, मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है। गर्भवती महिला को दिनभर पोषण मिलता रहना चाहिए ताकि बच्चे का विकास अच्छे से हो सके। भूखे रहने से कमजोरी और अन्य स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे मां और बच्चे दोनों को खतरा हो सकता है। अतः ऐसी महिलाओं को करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए।
2. कुंवारी लड़कियां
करवा चौथ का व्रत केवल सुहागिन स्त्रियों के लिए होता है। इस व्रत का उद्देश्य पति की लंबी आयु और सुखी जीवन की कामना करना होता है। चूंकि कुंवारी लड़कियों का अभी विवाह नहीं हुआ होता, इसलिए धार्मिक दृष्टिकोण से उनके लिए यह व्रत करना उचित नहीं माना जाता। कुछ जगहों पर अविवाहित लड़कियां यह व्रत करती हैं ताकि उन्हें अच्छे जीवनसाथी की प्राप्ति हो, लेकिन शास्त्रों में ऐसा कोई विधान नहीं बताया गया है। इसलिए परंपरागत रूप से कुंवारी लड़कियों को करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए।
3. रोगग्रस्त महिलाएं
यदि किसी महिला की तबीयत ठीक नहीं है, तो उसे भी करवा चौथ का व्रत करने से परहेज करना चाहिए। स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रही महिलाओं को पोषण और आराम की आवश्यकता होती है। बिना भोजन और पानी के पूरा दिन रहने से उनकी स्वास्थ्य स्थिति और भी खराब हो सकती है। विशेष रूप से मधुमेह, हृदय रोग, रक्तचाप और अन्य गंभीर बीमारियों से पीड़ित महिलाओं को यह व्रत नहीं करना चाहिए। ऐसे में व्रत करने की बजाय अपने स्वास्थ्य पर ध्यान देना ज्यादा महत्वपूर्ण है। यदि पति की लंबी आयु और सुख-शांति की कामना करनी है, तो स्वस्थ रहकर ही सही तरीके से पूजा और प्रार्थना कर सकती हैं।
4. वृद्ध महिलाएं
बुजुर्ग महिलाओं के लिए भी करवा चौथ का व्रत करना मुश्किल हो सकता है। उम्र बढ़ने के साथ शरीर की ऊर्जा और पोषण की जरूरतें बढ़ जाती हैं। बिना खाए-पिए रहना उनके स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। अगर बुजुर्ग महिलाएं व्रत करना चाहती हैं, तो उन्हें किसी अनुभवी व्यक्ति या परिवार के अन्य सदस्यों की सलाह लेकर ही यह व्रत करना चाहिए, और जरूरत महसूस हो तो थोड़े-बहुत आहार या पानी का सेवन भी कर सकती हैं। बुजुर्ग महिलाओं के लिए निर्जला व्रत करना अनिवार्य नहीं होता।
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5. हाल ही में प्रसव कराने वाली महिलाएं
जो महिलाएं हाल ही में मां बनी हैं और अपने शिशु को स्तनपान करा रही हैं, उन्हें भी करवा चौथ का व्रत नहीं करना चाहिए। प्रसव के बाद महिला का शरीर धीरे-धीरे अपने पुराने स्वास्थ्य में लौटने की प्रक्रिया में होता है, और इस समय पर्याप्त मात्रा में भोजन और पानी का सेवन जरूरी होता है। साथ ही, शिशु को दूध पिलाने के लिए भी मां के शरीर में पोषण होना आवश्यक होता है। ऐसे में भूखे रहने से मां और बच्चे दोनों की सेहत पर असर पड़ सकता है।
व्रत के दौरान जरूरी सावधानियां
यदि कोई महिला करवा चौथ का व्रत करना चाहती है और उसमें कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं है, तो उसे कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। व्रत से पहले पौष्टिक आहार लेना, चंद्र दर्शन के बाद व्रत खोलने पर हल्का और सुपाच्य भोजन करना, और व्रत के दौरान अत्यधिक परिश्रम या थकावट से बचना जरूरी है। यदि व्रत में कमजोरी महसूस हो, तो डॉक्टर की सलाह अवश्य लें।
करवा चौथ का व्रत सुहागिन स्त्रियों का एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो उनके पति के प्रति प्रेम, सम्मान और समर्पण का प्रतीक है। हालांकि कुछ स्थितियों में इस व्रत को करना उचित नहीं होता, जैसे गर्भवती महिलाएं, रोगग्रस्त महिलाएं, कुंवारी लड़कियां, वृद्ध महिलाएं, और हाल ही में प्रसव कराने वाली महिलाएं। सही समय पर अपने स्वास्थ्य और परिस्थिति को ध्यान में रखकर ही व्रत रखना चाहिए ताकि इस पवित्र व्रत का सार्थकता बनी रहे और परिवार में खुशहाली भी बनी रहे।