Kangna Ranaut: कंगना रनौत, जो बीजेपी की सांसद भी हैं, ने हाल ही में एक बयान दिया जिसमें उन्होंने कहा कि किसानों से जुड़े तीन कृषि कानूनों को फिर से लागू किया जाना चाहिए। उनके अनुसार, ये कानून किसानों के फायदे के लिए थे, और उन्होंने किसानों से अपील की कि वे खुद इन कानूनों की पुनः बहाली की मांग करें। हालांकि, कंगना ने यह भी स्वीकार किया कि उनका यह बयान विवादित हो सकता है, फिर भी उन्होंने अपनी राय खुलकर व्यक्त की।
कंगना रनौत ने क्या कहा ?
2021 में तीन कृषि कानूनों की वापसी ने भारतीय राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर गहरा प्रभाव छोड़ा। इन कानूनों को लेकर किसान समुदाय और विभिन्न राजनीतिक दलों के बीच लंबे समय से विरोध हो रहा था, जो अंततः सरकार को उन्हें वापस लेने पर मजबूर कर गया। लेकिन हाल ही में, मंडी से बीजेपी सांसद और प्रसिद्ध अभिनेत्री कंगना रनौत ने किसानों से जुड़े इन कानूनों की फिर से बहाली की बात कहकर एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
कंगना का यह बयान ऐसे समय में आया है जब 2021 में किसानों के भारी विरोध के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने तीन कृषि कानूनों को वापस ले लिया था। इन कानूनों के कारण देशभर में किसानों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया, जिसमें कई किसानों की जान भी गई। इस विरोध के बीच, सरकार को अंततः कानूनों को रद्द करना पड़ा।
कांग्रेस ने कंगना के बयान पर केंद्र सरकार को घेरा | Kangna Ranaut
कंगना रनौत के बयान के बाद, कांग्रेस ने इस पर तुरंत प्रतिक्रिया दी और बीजेपी और नरेंद्र मोदी सरकार को निशाने पर लिया। कांग्रेस ने आरोप लगाया कि बीजेपी सरकार किसानों के साथ अन्याय कर रही है और यह तीनों कानून किसानों के हितों के खिलाफ थे। कांग्रेस प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने भी कंगना के बयान की आलोचना करते हुए कहा कि जिन कानूनों के कारण 750 से अधिक किसानों की जान गई, उन्हें फिर से लागू करने की कोशिश करना सरासर अन्याय है। उन्होंने हरियाणा का जिक्र करते हुए कहा कि सबसे पहले हरियाणा इस मुद्दे पर जवाब देगा।
कांग्रेस ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर भी इस मुद्दे पर टिप्पणी की, जहां उन्होंने किसानों के समर्थन में अपनी बात रखी। कांग्रेस ने कहा, “हम किसानों के साथ खड़े हैं, और इन काले कानूनों की वापसी अब कभी नहीं होगी। चाहे नरेंद्र मोदी और उनके सांसद कितनी भी कोशिश कर लें, हम ऐसा नहीं होने देंगे।”
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जानिए क्या हैं तीन कृषि कानून ?
विवाद के केंद्र में तीन कृषि कानून थे, जिन्हें 2020 में सरकार द्वारा पास किया गया था। इन कानूनों का उद्देश्य कृषि क्षेत्र में सुधार लाना था, ताकि किसानों को मंडियों के बाहर भी अपनी फसल बेचने की आजादी मिले। हालांकि, किसान संगठनों ने इन कानूनों का विरोध किया, यह कहते हुए कि इससे बड़े कॉर्पोरेट्स को फायदा होगा और मंडी प्रणाली तथा न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) खत्म हो जाएगी।
- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) अधिनियम, 2020 – इस कानून का उद्देश्य किसानों को एपीएमसी मंडियों के बाहर अपनी उपज बेचने की अनुमति देना था। हालांकि, किसानों को यह चिंता थी कि इससे मंडी प्रणाली और MSP खतरे में पड़ सकती है।
- कृषक (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 – यह कानून अनुबंध खेती को प्रोत्साहित करता था, जिससे किसान निजी कंपनियों के साथ सीधे समझौते कर सकते थे। किसानों को डर था कि बड़े कॉर्पोरेट्स इस कानून का फायदा उठाकर उन्हें शोषण का शिकार बना सकते हैं।
- आवश्यक वस्तु (संशोधन) अधिनियम, 2020 – इस कानून के तहत आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दालें, आलू, प्याज आदि को हटाने का प्रावधान किया गया था, जिससे भंडारण की सीमा समाप्त हो गई थी। किसानों का मानना था कि इससे जमाखोरी बढ़ेगी और उन्हें उचित मूल्य नहीं मिलेगा।
किसानों का आंदोलन और कानूनों की वापसी
2020 में जब ये कानून पारित किए गए, तब से ही किसानों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया था। विशेषकर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों ने बड़े पैमाने पर प्रदर्शन किए। ये प्रदर्शन तब और भी बड़े हो गए जब किसानों ने दिल्ली की सीमाओं पर डेरा डाल दिया। यह आंदोलन लगभग एक साल तक चला और इस दौरान कई दौर की बातचीत के बावजूद सरकार और किसानों के बीच कोई ठोस सहमति नहीं बन पाई।
आखिरकार, 19 नवंबर 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने देश के नाम अपने संबोधन में घोषणा की कि सरकार तीनों कृषि कानूनों को वापस लेगी। यह घोषणा गुरु नानक जयंती के दिन की गई, और इसके बाद संसद में औपचारिक रूप से कानूनों को रद्द कर दिया गया।