Friday, November 22, 2024
MGU Meghalaya
HomeराजनीतिJammu Kashmir Vidhasabha Election: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दिखेगी रिश्तो में जंग, चाचा-भांजा...

Jammu Kashmir Vidhasabha Election: जम्मू-कश्मीर विधानसभा में दिखेगी रिश्तो में जंग, चाचा-भांजा होंगे आमने-सामने

Jammu Kashmir Vidhasabha Election: जम्मू-कश्मीर की राजनीति में विधानसभा चुनाव एक बार फिर से चर्चा में हैं, और इस बार यह न केवल राजनीतिक विचारधाराओं के बीच की लड़ाई है, बल्कि परिवारों के भीतर भी राजनीतिक संघर्ष देखने को मिलेगा। इस बार के चुनाव में रिश्तेदारों के बीच कड़ी टक्कर दिखाई दे रही है, जहां चाचा-भतीजा और मामा-भांजा आमने-सामने चुनावी मैदान में हैं। इससे इस चुनाव की विशेषता और भी बढ़ गई है।

बुद्धल विधानसभा क्षेत्र: चाचा-भांजा की जंग

बुद्धल विधानसभा क्षेत्र में इस बार एक अनोखी राजनीतिक लड़ाई देखने को मिलेगी। यहां भाजपा ने चौधरी जुल्फिकार अली को टिकट दिया है, जो नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) के उम्मीदवार जावेद इकबाल चौधरी के चाचा हैं। जुल्फिकार अली अपने भांजे के खिलाफ मैदान में हैं, और दोनों ही उम्मीदवार एक दूसरे पर गंभीर आरोप लगा रहे हैं।

चौधरी जुल्फिकार अली, नेकां और पीडीपी पर जम्मू-कश्मीर के संसाधनों को लूटने का आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि ये पार्टियां सिर्फ वोट बैंक की राजनीति करती हैं और लोगों के साथ छलावा करती हैं। इसके विपरीत, जावेद इकबाल चौधरी भाजपा पर धार्मिक आधार पर राजनीति करने और लोगों को बांटने के आरोप लगा रहे हैं। उनका कहना है कि भाजपा विकास के झूठे वादे कर रही है और लोगों को भ्रमित कर रही है।

ये भी पढ़ें : Jharkhand: विधानसभा चुनाव से पहले झारखंड में हो गया खेल, भाजपा में जल्द शामिल होंगे चंपई सोरेन

कालाकोट विधानसभा क्षेत्र: चाचा-भतीजे के बीच कड़ी टक्कर

कालाकोट विधानसभा क्षेत्र में भी कुछ ऐसा ही संघर्ष देखने को मिलेगा, जहां भाजपा ने ठाकुर रणधीर सिंह को टिकट दिया है और उनके खिलाफ नेकां ने उनके भतीजे ठाकुर यशुवर्धन सिंह को मैदान में उतारा है। यह चुनावी मुकाबला इस बात से और भी दिलचस्प हो गया है कि यशुवर्धन और रणधीर सिंह पहले एक ही पार्टी में थे और नेकां के लिए मिलकर वोट मांगते थे, लेकिन अब वे एक दूसरे के खिलाफ खड़े हैं।

रणधीर सिंह ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के नारे के साथ मतदाताओं को लुभा रहे हैं, जबकि यशुवर्धन सिंह अनुच्छेद 370 को वापस लाने और जम्मू-कश्मीर को फिर से राज्य का दर्जा दिलाने का वादा कर रहे हैं। इस तरह, इस बार का चुनाव केवल राजनीतिक विचारधाराओं के बीच ही नहीं, बल्कि पारिवारिक संबंधों के बीच भी संघर्ष का मैदान बन गया है।

चिनाब वेली की छह सीटों पर कड़ी टक्कर

जम्मू-कश्मीर के चिनाब वेली में स्थित छह विधानसभा सीटें इस बार के चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा में हैं। ये सीटें हैं डोडा, डोडा पश्चिम, भद्रवाह, किश्तवाड़, पाड्डर नागसेनी और इंदरवाल। इन सीटों पर चार मुख्य राजनीतिक दलों—भाजपा, कांग्रेस, पीडीपी और नेकां—के बीच कड़ी टक्कर होगी।

डोडा सीट पर नेशनल कांफ्रेंस ने खालिद नजीब सोहरवर्दी को मैदान में उतारा है, जो इस सीट से लगातार तीन बार चुनाव हार चुके हैं। भाजपा ने यहां से गजय सिंह राणा को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने अब्दुल मजीद वानी को उतारा है। भद्रवाह सीट पर कांग्रेस ने नदीम शरीफ को उम्मीदवार बनाया है, नेकां ने पूर्व पीडीपी नेता मेहबूब इकबाल को, और भाजपा ने दलीप परिहार को फिर से मौका दिया है, जिन्होंने 2014 में यहां से चुनाव जीता था।

किश्तवाड़ सीट पर नेकां ने सजाद किचूल को, पीडीपी ने फिरदोस टाक को, और भाजपा ने युवा चेहरे शगुन परिहार को मैदान में उतारा है। इस सीट पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार नहीं उतारा। 2014 में यहां से भाजपा के सुनील शर्मा जीते थे। इंदरवाल सीट पर भाजपा के तारिक कीन, कांग्रेस के शेख जफरुल्लाह, और पीडीपी के शेख नासिर हुसैन के बीच मुकाबला होगा, जबकि नेकां ने यहां से कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है।

पाडर नागसेनी, जो परिसीमन के बाद अस्तित्व में आई, इस बार पहली बार चुनाव में हिस्सा ले रही है। इस सीट पर नेकां ने पूजा ठाकुर को, भाजपा ने सुनील शर्मा को, और पीडीपी ने संदेश महाजन को उम्मीदवार बनाया है। डोडा पश्चिम सीट पर भाजपा नेता शक्ति राज परिहार, कांग्रेस के प्रदीप भगत, पीडीपी के मंसूर अहम भट और आम आदमी पार्टी के महराज मलिक के बीच मुकाबला होगा।

चुनावी राजनीति के बदलते रिश्ते

जम्मू-कश्मीर के इस चुनावी माहौल में पारिवारिक रिश्तों में बिखराव और नए समीकरण देखने को मिल रहे हैं। जहां पहले यशुवर्धन सिंह और रणधीर सिंह ने साथ मिलकर नेकां के लिए वोट मांगे थे, अब वे एक दूसरे के धुर विरोधी बन गए हैं। इस बार का चुनावी संघर्ष न केवल राजनीतिक मुद्दों पर केंद्रित है, बल्कि व्यक्तिगत और पारिवारिक रिश्तों की भी परीक्षा ले रहा है।

इस प्रकार, जम्मू-कश्मीर की चुनावी राजनीति इस बार पारंपरिक मुद्दों के अलावा व्यक्तिगत और पारिवारिक संघर्षों का भी गवाह बनेगी। इन सीटों पर मतदाताओं का फैसला किसके पक्ष में जाएगा, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन इतना तय है कि इस बार का चुनाव कई नई कहानियों और संघर्षों को जन्म देगा।

- Advertisment -
Most Popular