Jammu Kashmir Vidhansabha Election: जम्मू-कश्मीर के नए विधानसभा चुनावों के संदर्भ में राजनीतिक दलों की गतिविधियां तेज़ हो गई हैं। 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने और राज्य के पुनर्गठन के बाद, यह पहला मौका है जब यहां विधानसभा चुनाव हो रहे हैं। इन चुनावों में भाजपा, कांग्रेस, और नेशनल कॉन्फ्रेंस (नेकां) सहित सभी प्रमुख दल अपनी राजनीतिक स्थिति को मज़बूत करने के लिए सक्रिय हो गए हैं।
भाजपा की रणनीति और चुनौतियाँ
भाजपा ने चुनाव प्रभारी के रूप में राम माधव को नियुक्त किया है, जिन्होंने प्रदेश में आते ही अपनी रणनीतिक चालें चलनी शुरू कर दी हैं। 2015 में भाजपा-पीडीपी गठबंधन की सरकार बनाने में राम माधव की महत्वपूर्ण भूमिका थी, और इस बार भी भाजपा कश्मीर में अपनी पकड़ मज़बूत करने की योजना बना रही है।
राम माधव के श्रीनगर पहुंचने के बाद भाजपा नेताओं के साथ उनकी बैठक इस बात का संकेत है कि पार्टी कश्मीर संभाग में अपनी पकड़ मज़बूत करने पर अधिक ध्यान देगी। जम्मू और कश्मीर, दोनों संभागों में भाजपा की स्थिति को सुदृढ़ करना उनके लिए प्राथमिकता है। दो चुनाव प्रभारियों की नियुक्ति का उद्देश्य दोनों संभागों पर अधिक फोकस करना है, और संभवतः राम माधव का ध्यान कश्मीर पर अधिक होगा।
कश्मीर घाटी में, जहां परंपरागत रूप से भाजपा का समर्थन आधार कमज़ोर रहा है, पार्टी इस बार अपनी स्थिति को बेहतर करने की कोशिश कर रही है। पिछले कुछ वर्षों में भाजपा ने यहां पर अपने समर्थकों के बीच अपनी उपस्थिति को बढ़ाने के लिए कई कदम उठाए हैं। हालाँकि, कश्मीर में कई संवेदनशील मुद्दे भी हैं, जिनसे भाजपा को सावधानीपूर्वक निपटना होगा।
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस का गठबंधन | Jammu Kashmir Vidhansabha Election
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच संभावित गठबंधन ने भाजपा की चिंताएँ बढ़ा दी हैं। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी ने श्रीनगर में डेरा जमा लिया है, और माना जा रहा है कि वे नेकां के साथ गठबंधन को अंतिम रूप दे सकते हैं। इस गठबंधन का उद्देश्य कश्मीर में भाजपा को चुनौती देना है।
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस, दोनों ही दलों का मानना है कि गठबंधन के बिना भाजपा को हराना मुश्किल हो सकता है। 2024 के लोकसभा चुनावों के मद्देनज़र भी दोनों दलों का गठबंधन महत्वपूर्ण हो सकता है। कांग्रेस-नेकां गठबंधन जम्मू संभाग के कई विधानसभा क्षेत्रों में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकता है।
जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद से राजनीतिक परिदृश्य में कई बदलाव आए हैं। कांग्रेस-नेकां गठबंधन से कश्मीर में भाजपा के लिए स्थितियाँ चुनौतीपूर्ण हो सकती हैं। भाजपा पहले ही जम्मू संभाग में अपनी पकड़ को लेकर सतर्क है, और इस गठबंधन के बाद उसे कश्मीर में भी कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ सकता है।
भाजपा की चुनावी रणनीति और संभावनाएँ | Jammu Kashmir Vidhansabha Election
भाजपा की रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जम्मू संभाग में अपने परंपरागत वोट बैंक को बनाए रखना और कश्मीर में नए समर्थक जुटाना। पार्टी की ओर से किए गए हाल के कदमों में कश्मीरी पंडितों के लिए विशेष योजनाएं, विकास कार्यों का विस्तार, और सुरक्षा स्थिति में सुधार के दावे शामिल हैं।
भाजपा ने इस बार चुनावों के लिए स्थानीय नेताओं पर अधिक भरोसा करने का निर्णय लिया है, जो जमीनी हकीकत से भलीभांति परिचित हैं। कश्मीर में भाजपा की ओर से मुसलमान समुदाय को लुभाने के लिए भी विशेष प्रयास किए जा रहे हैं, जो कि घाटी में बहुसंख्यक हैं।
कांग्रेस-नेकां गठबंधन की संभावनाएँ
कांग्रेस और नेशनल कॉन्फ्रेंस के बीच गठबंधन की संभावनाएँ काफी मज़बूत हैं। दोनों दलों के लिए यह गठबंधन एक रणनीतिक कदम है, जिससे वे कश्मीर में भाजपा को चुनौती दे सकते हैं। राहुल गांधी और मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में कांग्रेस पार्टी नेशनल कॉन्फ्रेंस के साथ मिलकर चुनावी मैदान में उतरने की योजना बना रही है।
यह गठबंधन जम्मू संभाग के उन विधानसभा क्षेत्रों में भी प्रभावी हो सकता है, जहां परंपरागत रूप से कांग्रेस का अच्छा प्रदर्शन रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को जम्मू और उधमपुर संसदीय सीटों के कुछ विधानसभा क्षेत्रों में बढ़त मिली थी, और यह गठबंधन उन क्षेत्रों में अपनी स्थिति को और मज़बूत कर सकता है।
चुनावी समीकरण और संभावनाएँ
जम्मू-कश्मीर के नए विधानसभा चुनावों में सभी प्रमुख दल अपनी-अपनी रणनीतियों के साथ मैदान में उतरने की तैयारी कर रहे हैं। भाजपा की ओर से राम माधव की नियुक्ति और उनकी कश्मीर पर फोकस की रणनीति, कांग्रेस और नेकां के बीच संभावित गठबंधन, और जम्मू-कश्मीर के नए राजनीतिक परिदृश्य में ये चुनाव अत्यधिक महत्वपूर्ण साबित हो सकते हैं।
इन चुनावों में जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक दलों के लिए यह एक महत्वपूर्ण मौका है कि वे अपनी स्थिति को मज़बूत करें और अपनी नीतियों के माध्यम से जनता का समर्थन प्राप्त करें। सभी दलों की निगाहें कश्मीर पर टिकी हुई हैं, और यही कारण है कि इन चुनावों में कश्मीर की राजनीति पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है।
जैसे-जैसे चुनाव की तारीख़ें नज़दीक आएंगी, राजनीतिक दलों की गतिविधियाँ और तेज़ होंगी, और कश्मीर घाटी में राजनीतिक समीकरण और स्पष्ट हो जाएंगे। इन चुनावों का परिणाम न केवल जम्मू-कश्मीर की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि यह देश की राजनीतिक स्थिति पर भी महत्वपूर्ण असर डाल सकता है।