Tuesday, September 17, 2024
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Jammu – Kashmir : बीजेपी ने जम्मू – कश्मीर विधानसभा चुनाव के लिए रणनीति के तहत बांटे हैं टिकट

Jammu – Kashmir: जम्मू और कश्मीर में 90 विधानसभा सीटों के लिए आगामी चुनावों में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने 51 उम्मीदवारों की घोषणा कर दी है। यह चुनाव 10 साल बाद होने जा रहे हैं, और बीजेपी ने पूरी ताकत के साथ मैदान में उतरने का फैसला किया है। इस बार पार्टी की रणनीति में मुस्लिम उम्मीदवारों पर विशेष जोर है, खासकर कश्मीर क्षेत्र में। बीजेपी की सूची में कई मुस्लिम चेहरों को जगह दी गई है, जो पार्टी की इस क्षेत्र में पकड़ मजबूत करने की योजना का हिस्सा है।

बीजेपी की रणनीति और मुस्लिम उम्मीदवारों का चयन

बीजेपी ने इस चुनाव में मुस्लिम समुदाय के उम्मीदवारों को तरजीह देकर कश्मीर की सत्ता पर काबिज होने की तैयारी की है। पार्टी का यह कदम इस तथ्य पर आधारित है कि कश्मीर में मुस्लिम मतदाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 2014 के चुनाव में भी बीजेपी ने 31 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया था, जिनमें से केवल अब्दुल गनी ही जीत दर्ज कर पाए थे। इस बार पार्टी ने कश्मीर के प्रमुख विधानसभा क्षेत्रों जैसे पंपोर, राजपोरा, शोपियां, अनंतनाग, और श्रीगुफवाड़ा बिजबेहरा में मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है।

प्रमुख मुस्लिम उम्मीदवार

  1. पंपोर – इंजीनियर सैयद शौकत गयूर अंद्राबी
  2. राजपोरा – अर्शीद भट्ट
  3. शोपियां – जावेद अहमद कादरी
  4. अनंतनाग पश्चिम – मोहम्मद रफीक वानी
  5. अनंतनाग – अधिवक्ता सैयद वजाहत
  6. श्रीगुफवाड़ा बिजबेहरा – सोफी यूसुफ
  7. इन्दरवल – तारिक कीन
  8. बनिहाल – सलीम भट्ट
  9. लाल चौक – इंजीनियर ऐजाजा हुसैन
  10. ईदगाह – आरिफ रजा
  11. खानसाहिब – अली मोहम्मद मीर
  12. चरार-ए-शरीफ – ताहिद हुसैन
  13. गुलाबगढ़ – मोहम्मद अकरम चौधरी
  14. बुधल – चौधरी जुल्फीकर अली
  15. थन्नामंडी – मोहम्मद इकबाल मलिक
  16. सुरनकोटे – सैयद मुश्ताक अहमद बुखारी
  17. पुंछ हवेली – चौधरी अब्दुल गनी
  18. मेंढर – मुर्तजा खान

बीजेपी की चुनावी गणना

बीजेपी को सत्ता में आने के लिए 90 में से 46 सीटों पर जीत दर्ज करनी होगी। पार्टी का मुख्य फोकस जम्मू क्षेत्र पर है, जहां कुल 43 सीटें हैं। 2014 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जम्मू क्षेत्र की अधिकतर सीटों पर जीत दर्ज की थी और वह पीडीपी के बाद दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी थी। इस बार भी पार्टी का लक्ष्य जम्मू क्षेत्र की 35 से 37 सीटों पर जीत दर्ज करना है।

बीजेपी ने अपनी सियासी गणना में यह भी ध्यान रखा है कि जम्मू और कश्मीर के बीच में परिसीमन के बाद सीटों की संख्या में बदलाव आया है। जम्मू क्षेत्र की सीटें 37 से बढ़कर 43 हो गई हैं, जबकि कश्मीर क्षेत्र में सिर्फ एक सीट का इजाफा हुआ है, जिससे वहां की सीटें 46 से 47 हो गई हैं। इस बदलाव का फायदा उठाने के लिए पार्टी ने जम्मू क्षेत्र पर विशेष ध्यान दिया है, जहां हिंदू वोटर्स का प्रभाव अधिक है।

मुस्लिम उम्मीदवारों पर दांव क्यों?

कश्मीर रीजन में बीजेपी का परंपरागत रूप से समर्थन बहुत कम रहा है। कश्मीर में बीजेपी का आधार बहुत मजबूत नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में पार्टी ने यहां अपना कैडर बढ़ाया है। मुस्लिम वोटर इस क्षेत्र में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, और बीजेपी ने इसी को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम उम्मीदवारों को अधिक टिकट दिए हैं। पार्टी की रणनीति यह है कि मुस्लिम उम्मीदवारों के माध्यम से कश्मीर के मुस्लिम बहुल इलाकों में अपनी पैठ बनाई जाए।

बीजेपी ने पंचायत चुनावों में भी इस रणनीति का सफल प्रयोग किया था। कश्मीर के कई मुस्लिम बहुल इलाकों में बीजेपी ने मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर अच्छी सफलता प्राप्त की थी। अब विधानसभा चुनावों में भी पार्टी उसी रणनीति को दोहराने की कोशिश कर रही है।

बीजेपी की चुनौती

जम्मू-कश्मीर में बीजेपी का मुकाबला पीडीपी, नेशनल कॉन्फ्रेंस (एनसी), और कांग्रेस के गठबंधन से है। यह गठबंधन कश्मीर में मजबूत स्थिति में है, लेकिन बीजेपी को उम्मीद है कि मुस्लिम उम्मीदवारों के माध्यम से वह कश्मीर में अपनी स्थिति को सुधार सकती है।

इसके अलावा, धारा 370 के हटने के बाद से जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के प्रति ध्रुवीकरण का एक नया दौर शुरू हुआ है। परिसीमन के बाद जम्मू क्षेत्र में सीटों की संख्या में बढ़ोतरी ने बीजेपी को नए अवसर प्रदान किए हैं। कश्मीर क्षेत्र में मुस्लिम उम्मीदवारों के जरिए मतदाताओं को लुभाने की बीजेपी की रणनीति सफल होती है या नहीं, यह देखने वाली बात होगी।

जम्मू और कश्मीर में बीजेपी की चुनावी रणनीति मुस्लिम उम्मीदवारों के जरिए कश्मीर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत करने पर केंद्रित है। पार्टी का मुख्य लक्ष्य जम्मू क्षेत्र में पहले से मौजूद अपनी स्थिति को बरकरार रखते हुए, कश्मीर में नए अवसरों को भुनाना है। यह देखना दिलचस्प होगा कि बीजेपी की यह रणनीति चुनावी नतीजों में कितनी सफल होती है, खासकर जब राज्य की राजनीति के समीकरण पहले से कहीं अधिक जटिल हो चुके हैं।

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