World News : भारतीय मूल के कनाडाई सांसद चंद्रा आर्य ने बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, और ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के मुद्दे पर जोरदार आवाज उठाई है। उनका यह बयान एक ऐसे समय में आया है जब बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता के चलते अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जा रहा है। चंद्रा आर्य ने अपनी चिंता जाहिर करते हुए कहा कि बांग्लादेश में हिंसा का शिकार खासतौर पर हिंदू समुदाय हो रहा है, और यह चिंता का एक गंभीर विषय है।
बांग्लादेश में हिंदुओं की स्थिति
बांग्लादेश के इतिहास में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा कोई नई बात नहीं है। 1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता के बाद से ही वहां के अल्पसंख्यक समुदाय, विशेषकर हिंदू समुदाय, को हिंसा और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है। चंद्रा आर्य ने इस बात को रेखांकित किया कि जैसे ही बांग्लादेश में राजनीतिक अस्थिरता बढ़ती है, वहां रह रहे हिंदुओं पर हमले बढ़ जाते हैं। बांग्लादेश के कट्टरपंथी तत्व अक्सर राजनीतिक परिवर्तनों के समय अल्पसंख्यक समुदायों को निशाना बनाते हैं।
हाल ही की घटनाओं में, जब बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरी, तो अल्पसंख्यकों पर हमलों की संख्या में तेजी आई। रिपोर्ट्स के अनुसार, बांग्लादेश के 27 जिलों में हिंदू परिवारों पर हमले हुए, उनके घरों में लूटपाट की गई, आगजनी की गई, और उनके मंदिरों में तोड़फोड़ की गई। मंदिरों को लगातार निशाना बनाया जाता रहा है, और यह हिंसा उन पर विशेष रूप से केंद्रित रही है, जो समाज के निचले स्तर के धार्मिक अल्पसंख्यकों से संबंधित हैं।
शेख हसीना की सरकार के पतन के बाद, इस्लामी जमात के नेताओं ने भी स्वीकार किया कि हिंसा विशेष रूप से अल्पसंख्यकों के खिलाफ निर्देशित है। हालांकि, सरकार के साथ जुड़े कुछ लोगों पर भी हमले हुए, लेकिन इन हमलों का मुख्य केंद्र हिंदू अल्पसंख्यक रहे।
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कनाडाई हिंदू समुदाय की चिंता | World News
चंद्रा आर्य ने यह भी बताया कि कनाडा में रह रहे बांग्लादेशी मूल के हिंदू परिवार बांग्लादेश में अपने रिश्तेदारों की सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं। इन परिवारों के सदस्यों को अपनी संपत्ति और जीवन की सुरक्षा को लेकर गंभीर आशंका है। इस चिंतनशील वातावरण में, बांग्लादेशी मूल के कनाडाई हिंदू, बौद्ध और ईसाई समुदाय के लोग 23 अगस्त को एक रैली निकालने की योजना बना रहे हैं, जिसका मुख्य उद्देश्य बांग्लादेश में हो रही हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना है। इस रैली में विभिन्न समुदायों के लोग शामिल होंगे, जो बांग्लादेश में धार्मिक अल्पसंख्यकों की दयनीय स्थिति को उजागर करेंगे और अंतरराष्ट्रीय समुदाय से मदद की मांग करेंगे।
हिंदू अल्पसंख्यकों की घटती संख्या | World News
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति विशेष रूप से चिंताजनक है। 1971 में स्वतंत्रता के समय, बांग्लादेश की जनसंख्या में हिंदुओं का हिस्सा लगभग 13% था, लेकिन अब यह संख्या घटकर 8% से भी कम हो गई है। इसका मुख्य कारण हिंसा, उत्पीड़न, और धार्मिक असहिष्णुता है, जिसके चलते हिंदू समुदाय के लोग या तो पलायन कर गए हैं या फिर उन पर हुए हमलों में उनकी जान चली गई है।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या का समाधान केवल राजनीतिक स्थिरता से ही संभव है, क्योंकि हर बार जब बांग्लादेश में राजनीतिक तनाव बढ़ता है, इसका खामियाजा हिंदू, बौद्ध, और ईसाई जैसे अल्पसंख्यकों को भुगतना पड़ता है। शेख हसीना की सरकार के गिरने के बाद से इस तरह के हमलों में तेजी आई है। कट्टरपंथी ताकतें, जो धार्मिक विभाजन को बढ़ावा देती हैं, अक्सर इस अस्थिरता का फायदा उठाती हैं और समाज में विभाजन को और गहरा करती हैं।
चंद्रा आर्य का व्यक्तित्व और कर्नाटक से संबंध
चंद्रा आर्य का जन्म भारत के कर्नाटक राज्य के तुमकुर जिले में हुआ था। उनके भारतीय जड़ों के बावजूद, उन्होंने कनाडा में अपने लिए एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। वह ओंटारियो क्षेत्र से चुनाव जीतकर कनाडा की संसद के निचले सदन हाउस ऑफ कॉमन्स में सदस्य बने। उनके व्यक्तित्व का एक महत्वपूर्ण पहलू उनकी मातृ भाषा के प्रति गहरा लगाव है। दो साल पहले, उनका एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें उन्होंने कनाडाई संसद में कन्नड़ भाषा में बात की थी।
कनाडा के राजनीतिक परिदृश्य में चंद्रा आर्य एक प्रमुख भारतीय मूल के राजनेता हैं, जो न केवल कनाडा के भारतीय समुदाय के लिए बल्कि वैश्विक भारतीय समुदाय के मुद्दों पर भी सक्रिय रूप से काम कर रहे हैं। उनकी आवाज़ अल्पसंख्यकों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक मजबूत और प्रभावशाली भूमिका निभा रही है, विशेष रूप से ऐसे समय में जब दुनिया भर में कई अल्पसंख्यक समुदायों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भूमिका
चंद्रा आर्य के बयान ने बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों के खिलाफ हो रही हिंसा के मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर लाने का प्रयास किया है। उनका मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इस समस्या को गंभीरता से लेना चाहिए और बांग्लादेश सरकार पर दबाव बनाना चाहिए ताकि वहां के अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके।
बांग्लादेश की सरकार के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि वह अल्पसंख्यकों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ठोस कदम उठाए। चंद्रा आर्य जैसे राजनेता इस मुद्दे पर वैश्विक समुदाय का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं, जो यह दर्शाता है कि यह समस्या केवल बांग्लादेश तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव कनाडा और अन्य देशों में भी महसूस किया जा रहा है, जहां बांग्लादेशी मूल के लोग रहते हैं।
चंद्रा आर्य ने बांग्लादेश में हिंदू, बौद्ध, और ईसाई समुदायों के खिलाफ हो रही हिंसा की निंदा करते हुए अंतर्राष्ट्रीय मंच पर इस मुद्दे को उजागर किया है। उनका यह कदम इन अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण पहल है। बांग्लादेश में अल्पसंख्यक समुदायों के प्रति हो रहे अत्याचार और हिंसा के मुद्दे को गंभीरता से लेकर, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को इसमें हस्तक्षेप करने की आवश्यकता है।
चंद्रा आर्य का यह कदम उनके मजबूत नेतृत्व और भारतीय मूल के लोगों के हितों की रक्षा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।