व्रत के दौरान मखाना एक खास आहार माना जाता है। मखाना खाना सेहत के लिए भी गुणकारी माना जाता है। मखाने में प्रचूर मात्रा में प्रोट्रीन और अन्य पोषक तत्व पाये जाते हैं। साथ ही मखाने को धार्मिक दृष्टि से शुद्ध माना जाता है। और यही कारण है कि मखाने को हिन्दु धर्म के अलावा भी और दूसरे धर्मों के लोग भी व्रत आहार में प्रयोग करते हैं। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि मखाना आखिरकार बनता कैसे है?
मखाना तलाब में उगाया जाता है
जी हां, मखाने के पौधों को तलाब में लगाया जाता है। पौधों में जब फूल आता है। फूल से मखाने का बीज बनता है। बीज जब पूरी तरह से पक जाता है या यूं कहें कि तैयार हो जाता है तब इसे बेहद सावधानी से तालाव में उतकर निकाला जाता है। यह प्रक्रिया काफी कठिन होती है। क्योंकि तालाव में उतरकर पौधों को एक टोकरी की मदद से बीजों को छानकर निकाला जाता है जो बेहद मशक्कत का काम माना जाता है।
बीज निकालने के बाद इन्हें एकत्र किया जाता है। बीज एकत्र करने के बाद इन बीजों की साफ सफाई की जाती है। बीज जब साफ हो जाते हैं तब इन बीजों को सुखाकर रख लिया जाता है।
मखाना ऐसे किया जाता है तैयार
मखाने की बीज जब सूख जाते हैं तब इन बीजों को भूना जाता है। भूनने से यह बीज मखाने में बदल जाते हैं। यह पूरी प्रक्रिया पॉप कोर्न जैसी ही है। फर्क सिर्फ इतना है कि वहां मक्का के बीजों को भूना जाता है और यहां मखाने के बीजों को भूना जाता है। इसके अलावा एक बुनियादी फर्क इसकी खेती का है। मक्का की खेती करना आसान है जबकि मखाने की खेती करना कठिन और मेहनत का काम है।
मखाने को क्योंकि व्रत और त्यौहारों के दौरान पूजा की सामग्री और व्रत आहार में प्रयोग किया जाता है, इसलिए इसका महत्व और बढ़ जाता है। साथ ही यह पोषक तत्वों से तो भरपूर है ही। तो अगली बार जब आप मखाना खरीदें या इसका सेवन करें तो एकबार यह जरूर सोचिएगा कि यह आपकी थाली में आने से पहले कितना लंबा सफर तय कर चुका है।