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Ratan Tata : रतन टाटा, भारत के विख्यात उद्योगपति, एक ऐसी शख्सियत हैं जिन्होंने अपने जीवन में असाधारण सफलता और समाज सेवा को एक अद्वितीय रूप में ढाला। 86 वसंत देख चुके रतन टाटा ने अपने जीवन में न केवल कारोबार की ऊंचाइयों को छुआ, बल्कि एक मानवतावादी दृष्टिकोण से देश और समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी को भी बखूबी निभाया। उनके जीवन में सफलता का यह सफर उनके पिता, नवल टाटा के बिना अधूरा है, जिनका जीवन संघर्ष और समर्पण का एक अद्भुत उदाहरण है। नवल टाटा का जीवन, संघर्ष, और टाटा समूह से जुड़ाव अपने आप में एक दिलचस्प कहानी है, जो किसी प्रेरणादायक उपन्यास से कम नहीं।
प्रारंभिक जीवन और संघर्ष: नवल टाटा की कहानी
30 अगस्त 1904 को नवल टाटा का जन्म मुंबई में हुआ। उनके पिता होर्मुसजी टाटा, अहमदाबाद स्थित एडवांस मिल्स में स्पिनिंग मास्टर के तौर पर काम करते थे, लेकिन टाटा परिवार से उनका कोई सीधा संबंध नहीं था। जब नवल सिर्फ चार वर्ष के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया, जिससे उनका परिवार गंभीर आर्थिक संकट में घिर गया। उनकी मां ने गुजर-बसर के लिए कपड़ों की कढ़ाई का एक छोटा काम शुरू किया, जिससे परिवार की जरूरतें बमुश्किल पूरी होती थीं। बढ़ती उम्र के साथ नवल की मां को उनकी पढ़ाई और भविष्य की चिंता सताने लगी।
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अनाथालय में पलटी किस्मत
नवल की मां ने अपने बेटे के उज्ज्वल भविष्य के लिए उन्हें जेएन पेटिट पारसी अनाथालय भेजने का फैसला किया। इस अनाथालय में पढ़ाई के दौरान 1917 में उनकी जिंदगी में एक बड़ा बदलाव आया। सर रतन टाटा की पत्नी नवाजबाई एक दिन अनाथालय में आईं और नवल पर उनका ध्यान गया। नवाजबाई नवल से इतनी प्रभावित हुईं कि उन्होंने उसे गोद लेने का निश्चय किया। इस तरह नवल टाटा परिवार का हिस्सा बन गए और उनका नाम ‘नवल टाटा’ के रूप में प्रतिष्ठित हुआ।
टाटा समूह से जुड़ाव और करियर का आगाज
टाटा परिवार से जुड़ने के बाद नवल टाटा ने बॉम्बे यूनिवर्सिटी से इकोनॉमिक्स में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की और फिर लंदन जाकर अकाउंटिंग की पढ़ाई की। लौटकर 1930 में उन्होंने टाटा संस में क्लर्क-कम-असिस्टेंट सेक्रेटरी के पद से अपना करियर शुरू किया। मेहनत और काबिलियत के बल पर वे तेजी से प्रगति करते गए और जल्द ही टाटा एविएशन डिपार्टमेंट के सेक्रेटरी बने। 1939 में उन्हें टाटा मिल्स का जॉइंट मैनेजिंग डायरेक्टर बनाया गया और 1941 में टाटा संस का डायरेक्टर बना दिया गया। टाटा इलेक्ट्रिक कंपनी और टाटा संस के डिप्टी चेयरमैन जैसे उच्च पदों पर उन्होंने अपनी कुशल नेतृत्व क्षमता का प्रदर्शन किया।
टाटा ट्रस्ट और समाज सेवा
1965 में नवल टाटा को सर रतन टाटा ट्रस्ट के चेयरमैन के रूप में चुना गया, जहाँ उन्होंने समाजसेवा के कई कार्यों का संचालन किया। अपने अनुभव को याद करते हुए नवल टाटा ने एक बार कहा था, “मैं भगवान का आभारी हूं कि उन्होंने मुझे गरीबी की पीड़ा का अनुभव करने का अवसर दिया। इसने मेरे जीवन के बाद के वर्षों में मेरे चरित्र को किसी भी चीज़ से अधिक आकार दिया।” नवल टाटा का यह कथन उनके संवेदनशील और मानवीय पक्ष को दर्शाता है, जिसे वे अपने जीवन में अत्यंत मूल्यवान मानते थे।
निजी जीवन में उतार-चढ़ाव
नवल टाटा ने दो शादियां की। पहली पत्नी सूनी कॉमिस्सैरिएट से उनके दो बच्चे रतन टाटा और जिमी टाटा हुए। लेकिन 1940 में उनका तलाक हो गया। इसके बाद 1955 में नवल ने स्विट्जरलैंड की व्यवसायी सिमोन डुनोयर से शादी की, जिससे उन्हें नियोल टाटा नामक पुत्र की प्राप्ति हुई। कैंसर से पीड़ित होने के बाद 5 मई 1989 को नवल टाटा का निधन हो गया, लेकिन उनका जीवन और उनके आदर्श आज भी प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
रतन टाटा की जन्म और बचपन
28 दिसंबर 1937 को रतन टाटा का जन्म नवल टाटा और सूनी कॉमिस्सैरिएट के घर हुआ। नवल टाटा के कठिन संघर्ष ने रतन टाटा के जीवन पर गहरा प्रभाव डाला। एक संजीदा और संवेदनशील व्यक्ति होने के नाते रतन टाटा ने अपने पिता से सीखे आदर्शों और नैतिक मूल्यों को अपने जीवन का आधार बनाया। नवल टाटा के मार्गदर्शन में रतन टाटा ने कारोबार की दुनिया में अपनी अलग पहचान बनाई और टाटा समूह को नई ऊंचाइयों तक पहुँचाया।
रतन टाटा की प्रमुख उपलब्धियाँ
रतन टाटा ने टाटा ग्रुप के चेयरमैन रहते हुए कई अंतरराष्ट्रीय स्तर के व्यवसायिक समझौतों को अंजाम दिया। उनका उदार और जनकल्याणकारी दृष्टिकोण उन्हें एक आदर्श व्यवसायी और समाजसेवी बनाता है। उन्होंने टाटा समूह के विकास और विविधीकरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। खासकर 2008 में टाटा मोटर्स द्वारा ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर का अधिग्रहण एक ऐतिहासिक कदम था। उनके नेतृत्व में टाटा समूह ने समाज सेवा, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं में भी अभूतपूर्व कार्य किए।
रतन टाटा और नवल टाटा की जीवन यात्रा हमें यह सिखाती है कि कठिनाइयों से भागने के बजाय उनका सामना करके ही एक सच्ची सफलता प्राप्त की जा सकती है। नवल टाटा का जीवन संघर्ष और रतन टाटा का कारोबार के प्रति दृष्टिकोण यह साबित करता है कि एक सच्चा व्यवसायी केवल मुनाफा नहीं, बल्कि समाज का उत्थान भी सोचता है।