Himachal Pradesh: हिमाचल प्रदेश में वर्तमान समय में जो आर्थिक संकट उत्पन्न हुआ है, वह राज्य के लिए एक गंभीर चिंता का विषय बन गया है। राज्य के इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ है कि सरकारी कर्मचारियों का वेतन महीने की पहली तारीख को नहीं मिल सका। यह स्थिति स्पष्ट रूप से राज्य के वित्तीय हालातों को दर्शाती है और यह भी कि राज्य को आने वाले दिनों में आर्थिक प्रबंधन को लेकर गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
वेतन और पेंशन की समस्या
हिमाचल प्रदेश सरकार को हर महीने सरकारी कर्मचारियों को वेतन और पेंशन के रूप में लगभग 2,000 करोड़ रुपये की जरूरत होती है। इसमें से 1,200 करोड़ रुपये वेतन के लिए और 800 करोड़ रुपये पेंशन के लिए खर्च होते हैं। हालाँकि, अगस्त 2024 में कर्मचारियों को वेतन 5 सितंबर के बाद ही मिल पाएगा क्योंकि राज्य सरकार की ट्रेजरी में रेवेन्यू डिफिसिट ग्रांट (राजस्व घाटा अनुदान) के 520 करोड़ रुपये 5 सितंबर को ही आने की उम्मीद है। इस स्थिति ने Himachal Pradeshसरकारी कर्मचारियों और पेंशनरों के बीच चिंता की लहर पैदा कर दी है।
आर्थिक संकट की उत्पत्ति | Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश में वर्तमान आर्थिक संकट के पीछे कई कारक हैं। सबसे प्रमुख कारणों में से एक है रेवेन्यू डिफिसिट ग्रांट में टेपर फॉर्मूला का प्रयोग। इस फॉर्मूले के तहत केंद्र से मिलने वाली ग्रांट हर महीने कम होती जा रही है। इसके अलावा, राज्य की लोन लिमिट में भी कटौती की गई है, जिससे सरकार के पास आवश्यक वित्तीय संसाधनों की कमी हो रही है।
वित्तीय वर्ष 2024-25 में रेवेन्यू डिफिसिट ग्रांट में लगभग 1,800 करोड़ रुपये की कटौती हुई है। इस कटौती का असर राज्य की वित्तीय स्थिरता पर पड़ा है और भविष्य में यह समस्या और बढ़ सकती है।
ओल्ड पेंशन स्कीम की बहाली | Himachal Pradesh
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा ओल्ड पेंशन स्कीम (OPS) की बहाली भी आर्थिक संकट को बढ़ाने वाला एक महत्वपूर्ण कारण है। OPS की बहाली के कारण नई पेंशन स्कीम के तहत राज्य सरकार को मिलने वाला 2,000 करोड़ रुपये का लोन अब नहीं मिल पा रहा है। इस स्थिति ने राज्य के खजाने पर और अधिक बोझ डाल दिया है।
राज्य की लोन लिमिट और कर्ज का बोझ
हिमाचल प्रदेश में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू की सरकार के कार्यकाल के दौरान 15 दिसंबर 2022 से लेकर 31 जुलाई 2024 तक राज्य ने कुल 21,366 करोड़ रुपये का कर्ज लिया। हालांकि, इसमें से 5,864 करोड़ रुपये का कर्ज वापस भी किया गया है। इसके अलावा, राज्य सरकार ने जीएफ के तहत भी 1 जनवरी 2023 से 31 जुलाई 2024 तक 2,810 करोड़ रुपये का लोन लिया है।
अब हिमाचल प्रदेश के कर्ज का कुल बोझ एक लाख करोड़ रुपये के पार जाने की कगार पर है। राज्य सरकार को हर महीने टैक्स और नॉन टैक्स रेवेन्यू से लगभग 1,200 करोड़ रुपये की कमाई होती है, जो कि वेतन और पेंशन देने के लिए पर्याप्त नहीं है। आने वाले महीनों में यह समस्या और गंभीर हो सकती है।
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आने वाले वक्त की चुनौतियां
हिमाचल प्रदेश सरकार के पास इस वित्त वर्ष में दिसंबर तक लोन लिमिट 6,200 करोड़ रुपये है, जिसमें से 3,900 करोड़ रुपये का लोन पहले ही लिया जा चुका है। अब केवल 2,300 करोड़ रुपये की लोन लिमिट बची है, जिससे राज्य सरकार को दिसंबर महीने तक के खर्चों का प्रबंधन करना होगा। दिसंबर से लेकर मार्च तक की वित्तीय तिमाही के लिए केंद्र से अलग लोन लिमिट सैंक्शन की जाएगी, लेकिन तब तक राज्य सरकार को वेतन और पेंशन देने के लिए गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
हिमाचल प्रदेश में मौजूदा आर्थिक संकट ने राज्य सरकार की वित्तीय प्रबंधन क्षमताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं। कर्मचारियों को वेतन समय पर न मिलना और पेंशन वितरण में देरी राज्य सरकार के वित्तीय संकट को स्पष्ट रूप से दर्शाता है। राज्य सरकार के लिए यह समय गंभीर वित्तीय नीतियों और अनुशासन को लागू करने का है, ताकि भविष्य में इस प्रकार की स्थिति से बचा जा सके।
आने वाले समय में, हिमाचल प्रदेश सरकार को राजस्व घाटे को कम करने के लिए कठोर कदम उठाने होंगे। सरकार को राज्य की वित्तीय स्थिति को स्थिर करने के लिए नए स्रोतों से राजस्व जुटाने की दिशा में भी काम करना होगा। साथ ही, केंद्र सरकार के साथ समन्वय बढ़ाकर राज्य की वित्तीय जरूरतों को पूरा करने के लिए अनुदान और लोन की सीमाओं में विस्तार की मांग करनी होगी।
इसके अतिरिक्त, सरकार को राजस्व में सुधार लाने के लिए सार्वजनिक वित्तीय प्रबंधन को मजबूत करना होगा। राज्य में निवेश और औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत सुधार भी आवश्यक होंगे।
अंततः, हिमाचल प्रदेश में वर्तमान आर्थिक संकट एक गंभीर चुनौती है, जिसका प्रभाव राज्य के समग्र विकास और जनता की भलाई पर पड़ सकता है। इसे दूर करने के लिए सभी संबंधित पक्षों को मिलकर काम करना होगा और राज्य को वित्तीय स्थिरता की दिशा में अग्रसर करना होगा।