Saturday, November 23, 2024
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Amrish Puri Death Anniversary: 40 की उम्र में मिली थी पहली फिल्म, हीरो की जगह विलेन बनकर कमाया था नाम

Amrish Puri Death Anniversary: बॉलीवुड के सबसे खूंखार विलेन में से एक अमरीश पुरी की आज 12 जनवरी को 18वीं डेथ एनिवर्सरी है। उनका निधन 2005 में मुंबई में हुआ था। एक दशक ऐसा भी था, जिसमें अमरीश पुरी के बिना कोई भी फिल्म अधूरी सी लगती थी। वह जब भी पर्दे पर विलेन बनकर आते थे, तो दर्शक उन की जबरदस्त एक्टिंग देख सच में डर जाते थे। फिल्मी दुनिया में वैसे तो अरीश पुरी भी हीरे बने का सपना ले कर आए थे लेकिन वो हीरो तो नहीं बन पाए लेकिन विलेन बनकर अपनी कामयाबी के झंडे बॉलीवुड में गाड़ दिए।

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40 की उम्र में मिली थी पहली फिल्म

कहा जाता है कि अमरीश भी हीरो बनने के लिए बॉलीवुड इंडस्ट्री में आए थे, लेकिन फिल्ममेकर्स ने उन्हें यह कहकर रिजेक्ट कर किया था कि उनका चेहरा पत्थर की तरह है। इंडस्ट्री से तो वह चले लेकिन उनके अंदर का जो कलाकार था उसे उन्होंने मरने नहीं दिया और थिएटर में काम करना शुरू किया। तकरीबन 40 की उम्र में उन्होंने दोबारा बॉलीवुड में किस्मत आजमाई और इस बार वे सफल भी हुए। 1971 में निर्देशक सुखदेव ने उन्हें रेश्मा और शेरा के लिए साइन किया और 1980 में आई “हम पांच” फिल्म से अमरीश ने बॉलीवुड में अपना सिक्का जमा लिया।

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फीस से समझौता नहीं करते थे पुरी साहब

बॉलीवुड इंडस्ट्री के सुपरहिट विलेन कहे जाने वाले अमरीश पुरी अपने काम की मुंह मांगी रकम लेते थे, अगर उन्हें वो रकम ना मिले तो वो फिल्म में काम करने के लिए साफ इनकार कर देते थे। उनका कहना था कि जब मै कभी अपने काम अपनी एक्टिंग के साथ कोई भी समझौता नहीं करता तो अपनी फीस के साथ कैसे करूं।

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इन डायलॉग्स को नहीं भूल पाएंगे आप

अमरीश पुरी की एक्टिंग के जितने लोग दिवाने थे, उतने ही उनके डायलॉग्स के भी। उनके डॉयलॉग्स में से कुछ-कुछ तो ऐसे हैं, जिन्हें भूल पाना नामुमकिन है।

  • फूल और कांटे में ‘जवानी में अक्सर ब्रेक फेल हो जाया करते हैं’।

 

  • वहीं तहलका मूवी में बोला गया उनका डायलॉग ‘डोंग कभी रॉन्ग नहीं होता’ कौन भूल सकता है।

 

  • मिस्टर इंडिया वाला डायलॉग ‘मोगैंबो खुश हुआ’ आज भी जुबान पर रहता है।

 

  • शहंशाह में उनका डायलॉग ‘जब मैं किसी गोरी हसीना को देखता हूं तो मेरे दिल में सैकड़ों काले कुत्ते दौड़ने लगते हैं.. तब मैं ब्लैक डॉग व्हिस्की पीता हूं’।

 

  • दामिनी का कोर्ट में बोला गया डायलॉग ‘ये अदालत है, कोई मंदिर या दरगाह नहीं जहां मन्नतें और मुरादें पूरी होती हैं। यहां धूप बत्ती और नारियल नहीं बल्कि ठोस सबूत और गवाह पेश किए जाते हैं’।

 

  • करन अर्जुन में अमरीश पुरी ने कहा था, ‘पैसों के मामले में मैं पैदाईशी कमीना हूं, दोस्ती और दुश्मनी का क्या, अपनों का खून भी पानी की तरह बहा देता हूं’।

 

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