Monday, October 14, 2024
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HC के जजों की नियुक्ति कॉलेजियम की सिफारिश के बावजूद क्यों है पेंडिग, केंद्र ने बताई इसकी वजह

केंद्र सरकार ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि विभिन्न उच्च न्यायालयों में मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में हो रही देरी का एक प्रमुख कारण कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिशों से संबंधित “संवेदनशील सामग्री” है। यह जानकारी केंद्र की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी द्वारा दी गई, जो अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल की याचिका के जवाब में पेश की गई। याचिका में यह मांग की गई थी कि सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित न्यायाधीशों की नियुक्तियों को एक निश्चित समयसीमा के भीतर अधिसूचित किया जाए।

याचिका का मुख्य उद्देश्य 

अधिवक्ता हर्ष विभोर सिंघल की याचिका में यह मुद्दा उठाया गया कि यदि कोई आपत्ति नहीं उठाई जाती है या नियुक्तियों को निर्दिष्ट अवधि के भीतर अधिसूचित नहीं किया जाता है, तो उन्हें स्वत: ही पुष्टि माना जाना चाहिए। यह याचिका न्यायपालिका में खाली पदों को जल्द से जल्द भरने की मांग पर आधारित है, जिससे न्यायिक प्रणाली में विलंब और लंबित मामलों की संख्या को कम किया जा सके।

हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट की पीठ के समक्ष यह स्पष्ट किया कि इस मामले में कुछ संवेदनशील और गोपनीय जानकारी है, जिसे सार्वजनिक डोमेन में रखना उचित नहीं होगा। उनका कहना था कि ऐसी सामग्री का खुलासा करना न्यायिक संस्थान और इसमें शामिल न्यायाधीशों के सर्वोत्तम हित में नहीं होगा। उन्होंने इस गोपनीय जानकारी को रिकॉर्ड में रखने की इच्छा भी व्यक्त की।

नियुक्तियों में देरी का कारण

भारत में न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में सरकार और कॉलेजियम के बीच के संवाद और उसके कारण उत्पन्न होने वाले विवाद पहले भी चर्चा में रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा अनुशंसित नामों को केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद ही अंतिम रूप दिया जाता है। हालांकि, इस प्रक्रिया में कभी-कभी विलंब होता है, जो न्यायपालिका में खाली पदों के बढ़ने का कारण बनता है।

केंद्र सरकार द्वारा सौंपी गई जानकारी के अनुसार, कॉलेजियम की अनुशंसाओं पर प्राप्त संवेदनशील सामग्री के कारण उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी हो रही है। हालांकि, अटॉर्नी जनरल ने स्पष्ट किया कि इस संवेदनशील जानकारी को सार्वजनिक करने से न केवल न्यायपालिका को, बल्कि इसमें शामिल न्यायाधीशों को भी नुकसान हो सकता है। इसलिए, यह मामला अभी सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन है।

मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्तियों की स्थिति

जुलाई 2023 में सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने विभिन्न उच्च न्यायालयों में आठ मुख्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की सिफारिश की थी। इसमें निम्नलिखित न्यायाधीशों के नाम शामिल थे:

  1. न्यायमूर्ति मनमोहन: उन्हें दिल्ली उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश से पदोन्नति देकर दिल्ली उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
  2. न्यायमूर्ति एमएस रामचंद्र राव: उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय से झारखंड उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया गया।
  3. न्यायमूर्ति राजीव शकधर: उन्हें हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
  4. न्यायमूर्ति सुरेश कैत: उन्हें जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में प्रस्तावित किया गया।
  5. न्यायमूर्ति गुरमीत सिंह संधावालिया: उन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
  6. न्यायमूर्ति नितिन जामदार: उन्हें केरल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।
  7. न्यायमूर्ति केआर श्रीराम: उन्हें मद्रास उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में प्रस्तावित किया गया।
  8. न्यायमूर्ति ताशी रबस्तान: उन्हें मेघालय उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने की सिफारिश की गई।

नियुक्तियों में देरी के परिणाम

भारत में उच्च न्यायालयों और सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीशों के रिक्त पदों का सीधा असर न्यायिक प्रणाली पर पड़ता है। वर्तमान में, न्याय विभाग के आंकड़ों के अनुसार, देश के विभिन्न उच्च न्यायालयों में 365 न्यायाधीशों के पद रिक्त हैं, जबकि सुप्रीम कोर्ट में भी एक पद खाली है। यह स्थिति न केवल लंबित मामलों की संख्या को बढ़ाती है, बल्कि न्याय प्रदान करने की गति को भी धीमा कर देती है।

सुप्रीम कोर्ट की आलोचना और केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया

पिछले साल, सुप्रीम कोर्ट की एक पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति एसके कौल शामिल थे, ने न्यायाधीशों की नियुक्ति में देरी के लिए केंद्र सरकार की कड़ी आलोचना की थी। सरकार पर आरोप लगाया गया था कि वह जानबूझकर न्यायाधीशों की नियुक्तियों में विलंब कर रही है, जिसके कारण उच्च न्यायालयों में पद रिक्त रहते हैं। इन आलोचनाओं के बाद, सरकार ने कई न्यायाधीशों की नियुक्तियों को मंजूरी दी, जिससे उच्च न्यायालयों में कुछ हद तक खाली पदों को भरा जा सका।

हालांकि, वर्तमान में जिस तरह से केंद्र सरकार और कॉलेजियम के बीच संवाद और नियुक्तियों की प्रक्रिया में देरी हो रही है, वह न्यायिक प्रक्रिया के लिए एक गंभीर चिंता का विषय है। सरकार की ओर से प्रस्तुत की गई संवेदनशील सामग्री के बावजूद, सुप्रीम कोर्ट यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि न्यायपालिका में रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाए ताकि न्यायिक व्यवस्था सही ढंग से काम कर सके।

अगले कदम

इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 20 सितंबर 2023 को अगली सुनवाई की तारीख तय की है। इस दौरान, अटॉर्नी जनरल द्वारा प्रस्तुत संवेदनशील जानकारी पर विचार किया जाएगा और यह देखा जाएगा कि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में क्या कदम उठाए जा सकते हैं। उम्मीद की जा रही है कि इस सुनवाई के बाद नियुक्तियों में आ रही बाधाओं का समाधान हो सकेगा और न्यायपालिका में खाली पदों को भरने की प्रक्रिया तेज होगी।

न्यायाधीशों की नियुक्तियों में देरी एक गंभीर मुद्दा है, जो न्यायपालिका की कार्यक्षमता और मामलों के निपटान की गति को प्रभावित करता है। केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच संवाद और गोपनीय जानकारी का मुद्दा इस देरी के पीछे एक प्रमुख कारण है। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर सक्रिय रूप से विचार कर रहा है और उम्मीद है कि जल्द ही कोई समाधान निकल सकेगा, जिससे न्यायिक प्रणाली को मजबूत बनाया जा सकेगा।

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