Haryana: हरियाणा में 5 अक्टूबर 2024 को होने वाले विधानसभा चुनाव राजनीतिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण हैं। 90 सीटों के लिए हो रहे इस चुनाव में कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है। कांग्रेस 10 साल के लंबे अंतराल के बाद सत्ता में वापसी की उम्मीद कर रही है, जबकि बीजेपी अपने पिछले कार्यकाल में मिले विरोध और असंतोष का सामना कर रही है। इसके अलावा, इनेलो-बसपा, जेजेपी-आजाद समाज पार्टी गठबंधन, और आम आदमी पार्टी (आप) जैसे छोटे दल और स्वतंत्र उम्मीदवार भी किंगमेकर की भूमिका में नजर आ सकते हैं।
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Toggleकांग्रेस का संघर्ष और चुनौतियाँ
कांग्रेस पार्टी हरियाणा की राजनीति में कभी एक प्रमुख शक्ति रही है, लेकिन पिछले एक दशक में उसे सत्ता से बाहर रहना पड़ा है। 2014 और 2019 के चुनावों में उसे बीजेपी के हाथों हार का सामना करना पड़ा। हालांकि, 2024 के चुनाव में पार्टी अपनी रणनीति में बदलाव कर रही है और उसे उम्मीद है कि वह किसानों, युवाओं और खिलाड़ियों के मुद्दों को उठाकर सत्ता में वापसी कर सकती है। कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में इन वर्गों के लिए कई लोकलुभावन वादे किए हैं, जो उसे एक बार फिर से मतदाताओं के बीच लोकप्रिय बना सकते हैं।
कांग्रेस की मुख्य रणनीति बीजेपी सरकार के खिलाफ किसानों के मुद्दे, बेरोजगारी, महंगाई, और सामाजिक न्याय के प्रश्नों पर केंद्रित है। विशेष रूप से, हाल के वर्षों में किसानों के विरोध ने सरकार के खिलाफ असंतोष को और बढ़ाया है। कांग्रेस की एक और चुनौती छोटी पार्टियों और निर्दलीय उम्मीदवारों की बढ़ती संख्या है, जो उसके वोट बैंक को प्रभावित कर सकती है।
बीजेपी के सामने चुनौतियाँ | Haryana
पिछले 10 वर्षों में हरियाणा में बीजेपी ने शासन किया है, लेकिन इस दौरान कई मुद्दों ने उसे कमजोर किया है। किसानों का विरोध, अग्निवीर योजना को लेकर सेना में भर्ती की नई पद्धति, और खिलाड़ियों के साथ विवादित मामले जैसे मुद्दे उसके लिए सिरदर्द साबित हो सकते हैं। हरियाणा का बड़ा ग्रामीण तबका, खासकर जाट समुदाय, सरकार से नाराज है।
इसके बावजूद बीजेपी का दावा है कि उसने विकास और सुशासन के मोर्चे पर कई महत्वपूर्ण कार्य किए हैं। पार्टी का तर्क है कि छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार विपक्षी वोट बैंक को बांट सकते हैं, जिससे उसे फायदा हो सकता है। इसके अलावा, बीजेपी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के नेतृत्व में अपने पारंपरिक वोटरों, जैसे गैर-जाट समुदायों और शहरी मतदाताओं, पर भरोसा कर रही है।
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तीसरे मोर्चे और छोटे दलों की भूमिका | Haryana
हरियाणा में इस बार कई छोटे दल भी चुनावी मैदान में हैं, जो संभावित रूप से किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं। इनमें प्रमुख हैं इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) का गठबंधन, जननायक जनता पार्टी (जेजेपी)-आजाद समाज पार्टी का गठबंधन और आम आदमी पार्टी। इन छोटे दलों का मुख्य फोकस जाट, दलित और युवा वोटरों को अपनी ओर खींचना है, जो पारंपरिक रूप से कांग्रेस और बीजेपी के बीच बंटे रहते थे।
इनेलो-बसपा गठबंधन
इनेलो, जो हरियाणा की राजनीति में कभी प्रमुख खिलाड़ी था, पिछले कुछ चुनावों में अपनी स्थिति खो चुका है। हालांकि, इस बार पार्टी जाट समुदाय के बीच अपनी पुरानी पकड़ को फिर से मजबूत करने की कोशिश कर रही है। इसके साथ बसपा का गठबंधन, जो दलित वोटरों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, इनेलो के लिए एक रणनीतिक कदम हो सकता है। अगर ये दल जाट और दलित वोटरों को साथ ला पाने में सफल होते हैं, तो वे कांग्रेस और बीजेपी दोनों के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकते हैं।
जेजेपी-आजाद समाज पार्टी गठबंधन
जेजेपी, जो दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व में बीजेपी के साथ गठबंधन में सत्ता में थी, इस बार अपनी खोई हुई राजनीतिक जमीन वापस पाने की कोशिश कर रही है। हालांकि, जाट समुदाय के भीतर उसकी पकड़ कमजोर हो चुकी है। वहीं, आजाद समाज पार्टी दलित वोटरों को अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है। यह गठबंधन बीजेपी के लिए विशेष रूप से चुनौती बन सकता है, क्योंकि यह पारंपरिक रूप से जाट और दलित वोटरों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
आम आदमी पार्टी
इस बार के चुनावों में एक और नया खिलाड़ी है, आम आदमी पार्टी (आप)। आप, जो दिल्ली में सफलतापूर्वक शासन कर रही है, ने हरियाणा में भी अपने कदम जमाने की कोशिश की है। हालांकि, पार्टी के पास राज्य में ज्यादा मजबूत आधार नहीं है, लेकिन वह दिल्ली के अपने मॉडल को प्रचारित कर वोटरों को आकर्षित कर रही है। यदि आप कुछ सीटें जीतने में सफल होती है, तो वह भविष्य में राज्य की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
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उम्मीदवारों की संख्या और वोटों का विभाजन
हरियाणा के पिछले दो चुनावों में मतदाताओं ने बिखरा हुआ जनादेश दिया था। 2009 के विधानसभा चुनाव में 1,222 उम्मीदवार मैदान में थे, जो प्रति सीट 13.6 उम्मीदवार होते हैं। 2014 में यह संख्या बढ़कर 1,351 हो गई, यानी प्रति सीट 15 उम्मीदवार थे। हालांकि, 2019 में यह घटकर 1,169 पर आ गई, और 2024 के चुनाव में 1,051 उम्मीदवार मैदान में हैं, यानी प्रति सीट 11.7 उम्मीदवार होंगे। इससे स्पष्ट होता है कि इस बार प्रतिस्पर्धा पहले के मुकाबले कुछ कम हो सकती है, लेकिन छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवार फिर भी अहम भूमिका निभा सकते हैं।
पिछले चुनावों में, 2009 और 2014 के चुनावों में 61 सीटों पर दूसरे स्थान पर रहने वाले उम्मीदवारों ने विजयी उम्मीदवारों से ज्यादा मत प्राप्त किए थे। यह संख्या 2019 में घटकर 53 पर आ गई, फिर भी यह 60% सीटों को प्रभावित करता है। इससे पता चलता है कि हरियाणा की राजनीति में तीसरे स्थान पर आने वाले दलों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है, जो 2024 के चुनावों में भी जारी रह सकती है।
संभावित चुनाव परिणाम
हरियाणा के चुनावी परिणाम कई कारकों पर निर्भर करेंगे। अगर कांग्रेस सही रणनीति बनाती है और अपने मुद्दों पर केंद्रित रहती है, तो उसके लिए सत्ता में वापसी की संभावना बनी रह सकती है। वहीं, बीजेपी अपने पारंपरिक वोटरों और सुशासन के मुद्दे पर मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश करेगी।
छोटे दल और स्वतंत्र उम्मीदवार किंगमेकर की भूमिका निभा सकते हैं, खासकर जब मतदाता त्रिशंकु जनादेश देते हैं। इनेलो-बसपा, जेजेपी-आजाद समाज पार्टी, और आम आदमी पार्टी जैसी पार्टियां यदि कुछ सीटें जीतने में सफल होती हैं, तो वे सरकार गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि इस बार का चुनाव बेहद दिलचस्प होने वाला है। कांग्रेस और बीजेपी के बीच मुख्य मुकाबला होगा, लेकिन छोटे दल और निर्दलीय उम्मीदवारों की भूमिका को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। जनता किसे अपना नेता चुनती है, यह तो चुनाव परिणाम के बाद ही स्पष्ट होगा, लेकिन एक बात तय है कि हरियाणा की राजनीति इस बार नए समीकरणों और गठबंधनों के आधार पर आकार लेगी।
हरियाणा की राजनीति में इस बार ‘हाथ’ (कांग्रेस) या किंगमेकर (छोटे दल और निर्दलीय) की भूमिका निर्णायक होगी। जनता के सामने अब यह चुनौती है कि वे किसे अपना समर्थन देते हैं और कौन उनके भविष्य को सही दिशा में ले जा सकता है।