Thursday, November 21, 2024
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Gurmeet Ram Rahim : फिर पेरोल पर बाहर आया दुष्कर्म का आरोपी गुरमीत राम रहीम, हरियाणा चुनाव है नजदीक

Gurmeet Ram Rahim: गुरमीत राम रहीम सिंह, जो कि डेरा सच्चा सौदा का प्रमुख है, एक बार फिर जेल से रिहा हुआ है। यह कोई नई बात नहीं है क्योंकि पिछले 4 सालों में यह 10वीं बार है जब उसे जेल से बाहर आने का मौका मिला है। राम रहीम को 2017 में साध्वियों से दुष्कर्म और पत्रकार राम चंद्र छत्रपति की हत्या के जुर्म में सजा सुनाई गई थी, जिसके बाद से वह जेल में बंद है। लेकिन, उसकी बार-बार जेल से रिहाई ने कई सवाल खड़े किए हैं, खासकर चुनावी परिदृश्य में।

राम रहीम की जेल से रिहाई का सबसे प्रमुख कारण उसके समर्थकों द्वारा डेरा सच्चा सौदा की पकड़ को चुनावों में भुनाने का प्रयास माना जाता है। डेरा सच्चा सौदा, विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा, और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में एक मजबूत सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव रखता है। पंजाब और हरियाणा के विभिन्न विधानसभा क्षेत्रों में डेरे का दबदबा है, और राम रहीम के अनुयायी एक संगठित और प्रतिबद्ध वोट बैंक के रूप में कार्य करते हैं। यही कारण है कि चुनाव से पहले उसकी रिहाई का समय संदेहास्पद है।

 

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नेता और ‘गॉडमैन की छवि

2017 में जब राम रहीम को जेल भेजा गया था, तो वह अपने अनुयायियों के बीच एक प्रमुख नेता और ‘गॉडमैन’ था। इसके बाद से, उसकी जेल से रिहाई के हर मौके का कुछ न कुछ राजनीतिक महत्व रहा है। 2022 में पंजाब विधानसभा चुनाव से पहले उसकी पैरोल ने साफ संकेत दिया कि उसका प्रभाव अभी भी कायम है।राम रहीम को दी जाने वाली पैरोल और फरलो भारतीय कानूनी व्यवस्था का हिस्सा हैं, लेकिन जब उनका इस्तेमाल बार-बार और योजनाबद्ध ढंग से किया जाता है, तो यह एक मुद्दा बन जाता है। पैरोल और फरलो के बीच में एक महत्वपूर्ण अंतर है, जिसे समझना जरूरी है।

पैरोल एक अस्थायी रिहाई होती है जो एक कैदी को खास परिस्थितियों में दी जाती है, जैसे किसी व्यक्तिगत या पारिवारिक समस्या के समाधान के लिए। वहीं, फरलो एक प्रकार की छुट्टी होती है जो एक कैदी को उसकी सजा के दौरान अच्छे चाल-चलन के आधार पर दी जाती है। पैरोल के दौरान बिताए गए समय को सजा में नहीं जोड़ा जाता, जबकि फरलो को सजा के समय में शामिल किया जाता है।

राम रहीम की रिहाई और चुनावी कनेक्शन

राम रहीम की रिहाई के समय का चुनावी महत्व समझने के लिए 2022 और 2023 के विभिन्न चुनावी परिदृश्यों को देखना जरूरी है। 2022 में जब राम रहीम को पैरोल दी गई, तब पंजाब विधानसभा चुनाव की शुरुआत हो रही थी। इसका सीधा असर चुनावों में देखा गया, जहां डेरा सच्चा सौदा के प्रभाव ने कई सीटों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसी तरह, हरियाणा में निकाय चुनाव और हिमाचल प्रदेश के विधानसभा चुनावों के दौरान भी राम रहीम को पैरोल दी गई, जिसके दौरान उसने अपने अनुयायियों के लिए ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया।

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राम रहीम की पैरोल का समय और चुनावी मौसम का मेल दिखाता है कि उसकी रिहाई का संबंध न केवल उसकी व्यक्तिगत आवश्यकताओं से है, बल्कि उससे अधिक राजनीतिक रणनीतियों से भी है। उसके अनुयायियों की संख्या और संगठनात्मक क्षमता उसे एक महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी बनाती है, जो चुनावों में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।

पहले कांग्रेस फिर बीजेपी में रहा राम रहीम

राम रहीम का समर्थन पहले कांग्रेस और फिर बीजेपी के लिए रहा है। 2007 में पंजाब विधानसभा चुनावों के दौरान उसने कांग्रेस का समर्थन किया था, लेकिन बाद में, जब मोदी सरकार आई, तो उसने नोटबंदी का समर्थन कर बीजेपी का समर्थन किया। 2024 के लोकसभा चुनावों में भी राम रहीम ने बीजेपी के लिए सक्रिय रूप से प्रचार किया और अपनी 15 लोगों की टीम को चुनाव में उतारा।

राम रहीम की गतिविधियाँ जेल से बाहर आने के बाद अक्सर चर्चा का विषय रही हैं। वह अपने अनुयायियों के लिए सत्संग और प्रवचन करता है, म्यूजिक वीडियो बनाता है और यहां तक कि फिल्मों का निर्माण भी करता है। उसकी जेल से रिहाई के बाद की गतिविधियाँ उसे उसके अनुयायियों के बीच जीवित रखने और उसकी छवि को बनाए रखने का तरीका हो सकती हैं।

बार – बार रिहाई पर उठते सवाल

राम रहीम की बार-बार की रिहाई ने उसे एक विवादास्पद शख्सियत बना दिया है, जिसका प्रभाव केवल धार्मिक या सामाजिक क्षेत्रों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका गहरा राजनीतिक महत्व भी है। हर चुनाव से पहले उसकी रिहाई न केवल उसकी व्यक्तिगत स्थिति का संकेत देती है, बल्कि यह भी बताती है कि उसका डेरा सच्चा सौदा अब भी एक महत्वपूर्ण राजनीतिक खिलाड़ी है, जो आने वाले चुनावों में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

अंततः, राम रहीम की रिहाई और उसकी गतिविधियों का चुनावों पर प्रभाव एक जटिल मुद्दा है। उसकी बार-बार की रिहाई भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में धर्म, राजनीति और न्यायपालिका के बीच के जटिल संबंधों को उजागर करती है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि आने वाले चुनावों में यह प्रभाव किस तरह से और बढ़ेगा, और क्या राम रहीम की रिहाई का यह चक्र जारी रहेगा।

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