लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर गुजरात उच्च न्यायलय ने एक केस की सुनवाई करते हुए प्रेमिका की कस्टडी मांगने को लेकर बड़ी बात कही। गुजरात उच्च न्यायालय का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप के समझौते के आधार पर अपनी विवाहिता प्रेमिका की कस्टडी मांगने का कोई अधिकार नहीं है। इस केस में याचिकाकर्ता पर इसके लिए पांच हजार रूपये का जुर्माना लगाया है।
दरअसल, भारत के संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत बंदी प्रत्यक्षीकरण की एक याचिका में 6 मार्च, 23 को गुजरात उच्च न्यायालय से जस्टिस विपुल पंचोली और हेमंत प्रच्छक की खंडपीठ के फैसले में कहा कि याचिकाकर्ता जो अपनी प्रेमिका की कस्टडी का अनुरोध कर रहा है वो विवाहित थी। वो अपने पति के साथ रहती थी लेकिन बाद में अपने वैवाहिक घर को छोड़कर याचिकाकर्ता के साथ स्वेच्छा से रहने लगी और लिव-इन रिलेशनशिप के एक समझौते में प्रवेश किया।
वहीं याचिकाकर्ता का आरोप है कि उसकी मर्जी के खिलाफ जबरन शादी की गई थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया था कि वह दो कारणों से अपनी प्रेमिका की कस्टडी चाहता था। पहला, उस पर शादी के लिए दबाव डाला गया और वह चली गई और दूसरा, उन्होंने लिव-इन रिलेशनशिप का समझौता किया था। याचिकाकर्ता की याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कहा कि लड़की पहले से ही शादीशुदा है और अपने पहले पति को तलाक नहीं दिया है और इस तरह उसके पहले पति के साथ हिरासत को अवैध नहीं कहा जा सकता है और याचिकाकर्ता के पास समझौते के आधार पर वर्तमान याचिका दायर करने का कोई अधिकार नहीं है।