Wednesday, November 20, 2024
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Gujrat : गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र में भारी बारिश की आशंका और चक्रवात असना का खतरा

Gujrat: गुजरात के कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र इस समय प्राकृतिक आपदाओं के दोहरे खतरे का सामना कर रहे हैं। पहले से ही बाढ़ और भारी बारिश की मार झेल रहे ये क्षेत्र अब एक चक्रवाती तूफान असना के खतरे के साये में हैं। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने इन क्षेत्रों के लिए रेड अलर्ट जारी कर दिया है, जिससे लोगों को सतर्क रहने और आवश्यक तैयारी करने की सलाह दी गई है।

चक्रवात असना का आगमन और उसकी संभावना

आईएमडी के अनुसार, सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्र के ऊपर बना गहरा दबाव क्षेत्र पश्चिम-दक्षिणपश्चिम की ओर बढ़ रहा है। यह दबाव क्षेत्र कच्छ और उससे सटे पाकिस्तान के तटों के पास उत्तर-पूर्व अरब सागर के ऊपर उभरने की संभावना है, और शुक्रवार को यह चक्रवाती तूफान में बदल सकता है। इस चक्रवाती तूफान का नाम ‘असना’ रखा जाएगा, जो पाकिस्तान द्वारा दिया गया है।

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गौरतलब है कि यह चक्रवात अगस्त महीने में विकसित हो रहा है, जो कि एक दुर्लभ घटना है। 1891 से लेकर 2023 तक के बीच अगस्त के महीने में अरब सागर में केवल तीन चक्रवाती तूफान विकसित हुए हैं। इस बार का चक्रवात 1976 के बाद अगस्त में अरब सागर के ऊपर बनने वाला पहला चक्रवाती तूफान होगा। 1976 में आखिरी बार चक्रवात ओडिशा में विकसित हुआ था, जो एक प्रमुख घटना थी।

चक्रवातों का दुर्लभ इतिहास और वर्तमान की स्थिति

अरब सागर में अगस्त महीने में चक्रवाती तूफानों का आना वास्तव में दुर्लभ है। 1944 का चक्रवात भी इसी महीने में उभरा था, जो बाद में समुद्र के मध्य में कमजोर हो गया था। इसके बाद 1964 में दक्षिण गुजरात तट के पास एक छोटा चक्रवात विकसित हुआ था, लेकिन यह तट पर पहुंचने से पहले ही कमजोर हो गया था।

पिछले 132 वर्षों के दौरान बंगाल की खाड़ी में अगस्त महीने में कुल 28 ऐसी परिस्थितियां बनी हैं, जहां चक्रवात उत्पन्न हुए हैं। मौजूदा चक्रवात के बारे में असामान्य बात यह है कि पिछले कुछ दिनों से इसकी तीव्रता में कोई कमी नहीं आई है। यह उष्णकटिबंधीय तूफान दो प्रतिचक्रवाती तूफानों के बीच फंसा हुआ है – एक तिब्बती पठार पर और दूसरा अरब प्रायद्वीप पर।

मौजूदा परिस्थिति और आईएमडी की चेतावनी

आईएमडी के अनुसार, इस साल 1 जून से 29 अगस्त के बीच सौराष्ट्र और कच्छ क्षेत्रों में 799 मिमी बारिश हुई है, जबकि इसी अवधि में सामान्य 430.6 मिमी बारिश होती है। यह दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में सामान्य से 86 प्रतिशत अधिक वर्षा हुई है।

आईएमडी ने इस स्थिति को देखते हुए मछुआरों को अगले कुछ दिनों तक समुद्र में न जाने की सलाह दी है। साथ ही, गुजरात और उत्तरी महाराष्ट्र के तटों के साथ-साथ समुद्री क्षेत्रों में अगले दो दिनों तक 60-65 किमी प्रति घंटे की तेज हवाएं चल सकती हैं। यह तेज हवाएं और भारी बारिश, दोनों ही मिलकर तटीय क्षेत्रों में भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।

क्षेत्रीय प्रभाव और संभावित नुकसान

कच्छ और सौराष्ट्र क्षेत्र में भारी बारिश की आशंका से बाढ़ का खतरा और भी बढ़ गया है। ये क्षेत्र पहले से ही बाढ़ और बारिश से जूझ रहे हैं, और अब चक्रवात असना के संभावित प्रभाव से स्थिति और भी गंभीर हो सकती है। बाढ़ की वजह से नदियों का जलस्तर बढ़ सकता है, जिससे आसपास के इलाकों में जलजमाव और लोगों के घरों में पानी घुसने की समस्या उत्पन्न हो सकती है।

गुजरात और उत्तरी महाराष्ट्र के तटों के साथ-साथ समुद्री क्षेत्रों में अगले दो दिनों तक चलने वाली तेज हवाएं मछली पकड़ने वाली नौकाओं और छोटे जहाजों के लिए बहुत बड़ा खतरा साबित हो सकती हैं। समुद्र में इन दिनों जाने पर नावें पलटने या डूबने का खतरा बढ़ सकता है, जिससे मछुआरों की जान पर बन सकती है।

ऐतिहासिक संदर्भ और वर्तमान स्थिति की तुलना

गुजरात में पहले भी चक्रवाती तूफान और बाढ़ का सामना करना पड़ा है, लेकिन इस बार की स्थिति कुछ अलग है। अरब सागर में अगस्त के महीने में चक्रवाती तूफान का विकास एक दुर्लभ घटना है, और इससे संभावित नुकसान का अनुमान लगाना मुश्किल है।

1976 में आए चक्रवात की तुलना में मौजूदा चक्रवात की स्थिति कुछ अलग है, क्योंकि इस बार यह तूफान दो प्रतिचक्रवाती तूफानों के बीच फंसा हुआ है। यह स्थिति इसे और भी खतरनाक बना सकती है, क्योंकि प्रतिचक्रवाती तूफान एक चक्रवात को कमजोर करने के बजाय उसे और भी तीव्र बना सकते हैं।

संभावित तैयारी और बचाव के उपाय

चक्रवात असना और भारी बारिश से निपटने के लिए सरकार और स्थानीय प्रशासन को विशेष तैयारी करनी होगी। रेड अलर्ट जारी होने के बाद लोगों को सतर्क रहने और सुरक्षित स्थानों पर जाने की सलाह दी गई है। इसके अलावा, बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में राहत और बचाव कार्यों को तेज करना होगा।

मछुआरों को समुद्र में न जाने की सलाह का पालन करना चाहिए, क्योंकि यह उनके जीवन की सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। साथ ही, तटीय क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को भी समय रहते सुरक्षित स्थानों पर शरण लेनी चाहिए।

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