अलविदा नेता जी, लेकिन आप हमेशा लोगों के दिल में रहेंगे। आपको भूलाना इसलिए भी मुश्किल है क्योंकि आप ही थे जो लोगों से सीधे उनका दिल का हाल पूछते थे। आप एसी कमरों और कार में बैठकर राजनीति करने में विश्वास नहीं करते थे। आप सीधे देश के लोगों से मिलते थे और उनकी बात सुनते थे। आप आज इस दुनिया से रूखसत हो गए हैं लेकिन आप सियासी अखाड़े के वो खिलाड़ी थे जिसने कई सरकारें बनाईं और बिगाड़ी।
मुलायम सिंह यादव बेहद शानदार पहलवान थे। मुलायम सिंह के बारे में कहा जाता है कि वह अखाड़े में शायद ही हारे। आज भी लोग इनके चर्खा दांव की बात करते हैं जो यह अपने सामने खड़े पहलवान पर लगाते थे। और अपने प्रतिद्वंदी को चारों खाने चित कर देते थे।
अध्यापक बनने के बाद मुलायम सिंह यादव ने पूरी तरह से पहलवानी छोड़ दी थी। पहलवानी छोड़ने के बाद जब इन्होंने राजनीति में कदम रखा तब भी इनके बारे में यही कहा गया कि, मुलायम सिंह यादब अखाड़े की ही तरह राजनीति के अखाड़े में भी अपने प्रतिद्वंदी को चारों खाने चित कर देते हैं।
मुलायम सिंह 1967 के चुनाव में जसवंतनगर विधानसभा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचने वाले उस दौर के सबसे कम उम्र के नेता थे। उस समय मुलायम की उम्र सिर्फ़ 28 साल थी। वो प्रदेश के इतिहास में सबसे कम उम्र के विधायक बने थे। उन्होंने विधायक बनने के बाद अपनी एमए की पढ़ाई पूरी की थी।
जब 1977 में उत्तर प्रदेश में रामनरेश यादव के नेतृत्व में जनता पार्टी की सरकार बनी, तो मुलायम सिंह को सहकारिता मंत्री बनाया गया। उस समय उनकी उम्र थी सिर्फ 38 साल थी।
मुख्यमंत्री की दौड़ में अजीत सिंह को हराया
चौधरी चरण सिंह मुलायम सिंह को अपना राजनीतिक वारिस और अपने बेटे अजीत सिंह को अपना क़ानूनी वारिस कहा करते थे। लेकिन जब अपने पिता के गंभीर रूप से बीमार होने के बाद अजीत सिंह अमरीका से वापस भारत लौटे, तो उनके समर्थकों ने उन पर ज़ोर डाला कि वो पार्टी के अध्यक्ष बन जाएँ। इसके बाद मुलायम सिंह और अजीत सिंह में प्रतिद्वंद्विता बढ़ी। लेकिन उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का मौक़ा मुलायम सिंह को मिला।
5 दिसंबर, 1989 को उन्हें लखनऊ के केडी सिंह बाबू स्टेडियम में मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई और मुलायम ने रुँधे हुए गले से कहा था, “लोहिया का ग़रीब के बेटे को मुख्यमंत्री बनाने का पुराना सपना साकार हो गया है।”
‘परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा’
मुख्यमंत्री बनते ही मुलायम सिंह ने उत्तर प्रदेश में तेज़ी से उभर रही भारतीय जनता पार्टी का मज़बूती से सामना करने का फ़ैसला किया। उस ज़माने में उनके कहे गए एक वाक्य “बाबरी मस्जिद पर एक परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा” ने उन्हें मुसलमानों के बहुत क़रीब ला दिया।
यही नहीं, जब दो नवंबर, 1990 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद की तरफ़ बढ़ने की कोशिश की, तो उन पर पहले लाठीचार्ज फिर गोलियाँ चली, जिसमें एक दर्जन से अधिक कार सेवक मारे गए। इस घटना के बाद से ही बीजेपी के समर्थक मुलायम सिंह यादव को ‘मौलाना मुलायम’ कह कर पुकारने लगे।
चार अक्तूबर, 1992 को उन्होंने समाजवादी पार्टी की स्थापना की। उन्हें लगा कि वो अकेले भारतीय जनता पार्टी के बढ़ते हुए ग्राफ़ को नहीं रोक पाएँगे। इसलिए उन्होंने कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी के साथ चुनावी गठबंधन किया। कांशीराम से उनकी मुलाक़ात दिल्ली के अशोक होटल में उद्योगपति जयंत मल्होत्रा ने करवाई थी।
1993 में हुए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में उनकी पार्टी को 260 में से 109 और बहुजन समाज पार्टी को 163 में से 67 सीटें मिलीं थीं। भारतीय जनता पार्टी को 177 सीटों से संतोष करना पड़ा था और मुलायम सिंह ने कांग्रेस और बीएसपी के समर्थन से राज्य में दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
मुलायम सिंह यादव का राजनीतिक सफ़र
1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के जसवंतनगर से विधायक बने
1996 तक मुलायम सिंह यादव जसवंतनगर से विधायक रहे
पहली बार वे 1989 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
1993 में वे दूसरी बार राज्य के मुख्यमंत्री बने
1996 में पहली बार मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा।
1996 से 1998 तक वे यूनाइटेड फ़्रंट की सरकार में रक्षा मंत्री रहे
उसके बाद मुलायम सिंह यादव ने संभल और कन्नौज से भी लोकसभा का चुनाव जीता
2003 में एक बार फिर मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने
मुलायम सिंह यादव 2007 तक यूपी के सीएम बने रहे
इस बीच 2004 में उन्होंने लोकसभा चुनाव भी जीता, लेकिन बाद में त्यागपत्र दे दिया
2009 में उन्होंने मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी
2014 में मुलायम सिंह यादव ने आज़मगढ़ और मैनपुरी दोनों जगह से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते भी।
बाद में उन्होंने मैनपुरी सीट छोड़ दी।
2019 में उन्होंने एक बार फिर मैनपुरी से लोकसभा चुनाव लड़ा और जीते
अब मुलायम सिंह यादव हमारे बीच नहीं हैं। लेकिन, उन्हें चाहने वालों का कहना है कि मुलायम सिंह यादव जैसा नेता होना मुश्किल है। क्योंकि वह लोगों के दिलों में रहते थे। यह बात अलग है कि राजनीति की विसात पर जो जीता वहीं सिकंदर की तर्ज पर वह राजनीति करते थे। यहीं वजह भी रही कि उनकी बहुत से नेताओं से पटरी मेल नहीं खायी। कई दोस्त बने, कई दोस्त बिछड़ भी गए। लेकिन सच यह भी है कि एक जमीनी नेता अब हमारे बीच नहीं है। और अब मुलायम सिंह यादव एक अनंत यात्रा की ओर निकल पड़े हैं।
साउथ ब्लॉक डिजिटल डॉट कॉम मुलायम सिंह यादव को श्रद्धा के पुष्प समर्पित करता है। अलविदा नेता जी।