छत्तीसगढ़ के कोंडागांव से देश के किसानों के लिए एक अच्छी खबर आ रही है। दरअसल, यहां केवल केरल की फसल माने जाने वाली बहुमूल्य हर्बल पिपली खेती में सफलता मिली है। ये कारनामा कर दिखाया है, नित नए सफल कृषि नवाचारों के लिए देश विदेश जाने जाने वाले कोंडागांव बस्तर छत्तीसगढ़ के किसान डॉ. राजाराम त्रिपाठी के नेतृत्व में उनकी मां दंतेश्वरी हर्बल समूह की टीम ने। बात अगर पिपली की करे तो पिपली जमीन पर ही फैलने वाली बहुवर्षीय लतावर्गीय बहुउपयोगी वनौषधि है। इसके फलों को सुखा कर उपयोग किया जाता है, जिसे पिपली,पिप्पली अथवा लेंडी पीपल के नाम से भी जाना जाता है।
काली मिर्च की तरह दिखते हैं इसके पौधे
इसके पत्ते भी काली मिर्च तथा पीपल की तरह ही दिखाई देते हैं, पर आकार में छोटे होते हैं। मुख्य रूप से इसे अब तक केरल तथा उत्तर पूर्वी राज्यों के कुछ क्षेत्रों में ही उगाया जाता रहा है। माना जाता था कि अन्य क्षेत्रों में इसकी खेती हो ही नहीं सकती। इसी मान्यता के कारण इसे केरल से कोंडागांव आने में हजारों साल लग गए। इससे सैकड़ों तरह की आयुर्वेदिक दवाइयां हजारों साल से बनती रही हैं।
मानी जाती है रामबाण औषधी
यह बैक्टीरियारोधी तो है ही तथा हाल के ही शोध में यह पाया गया कि इसमें पिपरलीन पाया जाता है जो कि मलेरिया रोधी भी है (डां पीसी दास)। जबकि ए०के० भार्गव तथा श्री एस०सी० चौहान ने इसमें बैक्टीरिया रोधी गुण पाए हैं । यह पेट की बीमारियों, फेफड़ों की बीमारियों सहित कई रोगों में की रामबाण औषधि मानी जाती है। इसके कई औद्योगिक उपयोग भी हैं। बीयर बनाने में इसका महत्व पूर्ण उपयोग होता है। इसकी विशेष रोगप्रतिरोधक क्षमता को देखते हुए कोरोना के बाद इसकी मांग भी बहुत बढ़ गई है।